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अस्पताल ने प्रीमैच्योर नवजात को मृत घोषित किया, दफनाने से पहले खुल गया राज

 सफदरजंग अस्पताल और उसके गायनी विभाग का विवादों से पीछा नहीं छूट रहा है। अभी बच्चा बदले जाने के आरोप से छुटकारा भी नहीं मिला कि रविवार को गायनी विभाग के डॉक्टरों ने लापरवाही की हद पार कर दी।

असल में अस्पताल में जन्मे प्रीमैच्योर नवजात बच्चे को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया और उसे मृतक की तरह पॉलीथिन में सील करके परिजनों को सौंप दिया। परिजन जब घर पहुंचे तो देखा कि बच्चा जीवित है। इसके बाद परिजनों ने आनन-फानन में बच्चे को अस्पताल में दोबारा भर्ती कराया।

इसके अलावा पुलिस व अस्पताल प्रशासन से मामले की शिकायत की। अस्पताल प्रशासन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मेडिकल प्रोटोकॉल का हवाला देकर डॉक्टरों की गलती मानने से इन्कार किया है। हालांकि मामले की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी गई है।\

बच्चे के पिता रोहित का कहना है कि वह बदरपुर इलाके में रहता है। उनकी पत्नी 24 सप्ताह की गर्भवती थी। रोहित ने कहा कि रक्तस्राव के कारण पत्नी को सफदरजंग अस्पताल मे भर्ती कराया था। जहां रविवार सुबह उसे प्रसव हुआ। इसके बाद डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा जीवित नहीं है। नर्सिंग कर्मचारियो ने बच्चे को कपड़े में लपेटकर पॉलीथिन में सील करके हमें सौंप दिया।

रोहित ने बताया कि घर पहुंचने के बाद बच्चे को दफनाने जा ही रहा था कि पॉलीथिन में हलचल देख धड़कन की जांच की तो पाया कि बच्चे की धड़कन चल रही थी। इसके बाद बच्चे को सफदरजंग अस्पताल लाकर भर्ती कराया है। जहां उसका इलाज चल रहा है।

अस्पताल का कहना है कि यह मामल प्रसव का नहीं गर्भपात का है। यह महिला का तीसरा बच्चा है उसे पहले भी गर्भपात के लिए अस्पताल में लाया गया था। तब डॉक्टरों ने गर्भपात कराने से मना कर दिया था। क्योंकि कानूनन गर्भपात नहीं हो सकता था।

रक्तस्राव के कारण उसका गर्भपात हुआ है और बच्चे का वजन महज 460 ग्राम था। डब्ल्यूएचओ का दिशानिर्देश यह कहता है कि 500 ग्राम से कम वजन वाले बच्चे जीवित नहीं रह सकते। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एके रॉय ने कहा कि कमेटी मामले की जांच कर रही है और यह पता लगाया जाएगा कि किस परिस्थिति में बच्चे को मृत बताकर परिजनों को सौपा गया था।

 

 

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