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आसमान में दिखेगा अनोखा नजारा, होगी उल्काओं की बारिश

नैनीताल : मानसून सीजन में 12 अगस्त की रात उल्काएं भी जमकर बरसने जा रही हैं। इस रोमांचक खगोलीय घटना को आसमान में देखा जा सकेगा। माना जा रहा है कि इतनी बढ़ी संख्या में गिरती उल्काओं की अगली खगोलीय घटना 96 वर्ष बाद देखने को मिलेगी।

उल्काओं का पृथ्वी के आकर्षण में उसके वातावरण से टकराकर भस्म हो जाना सामान्य खगोलीय घटना है। आसमान में 80 से 90 किमी की ऊंचाई पर ऐसी घटनाएं अमूमन रोज ही होती है। परंतु वर्ष में चंद रोज ऐसे भी आते हैं, जब यह घटना जबर्दस्त रूपधारण कर लेती है। तब भारी संख्या में जलती उल्काएं आतिशबाजी के समान  नजर आती हैं।

भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक प्रो आरसी कपूर के अनुसार इस बार 12 अगस्त की रात इस तरह का संयोग बनने जा रहा है। जिसमें प्रति घंटा 100 से 200 तक उल्काएं पृथ्वी के वातावरण से टकराने जा रही हैं। परंतु चंद्रमा की रोशनी अत्यधिक होने के कारण इन्हें 50 से 60 प्रति घंटा की संख्या में ही देखे जाने का अनुमान है।

यह पर्शीड मेटियोर शॉवर कहलाता है। पर्शी तारा समूह से नजर आने के कारण इसे पर्शीड नाम दिया गया है। पर्शीड उल्कावृष्टि का जनक 109पी स्वीफ्ट टटल नामक धूमकेतु है। पिछली बार 1992 में यह धूमकेतु सौरमंडल के भीतर आया था और उल्काओं के रूप में ढेर सारा मलबा पृथ्वी के मार्ग में छोड़ गया था। जिस कारण जब भी पृथ्वी मलबे के इस ढेर से गुजरती है तो यह खगोलीय घटना होती है। इस धूमकेतु का भ्रमण काल 133 साल है।

मटर के दाने के बराबर होती हैं उल्काएं

उल्काएं अंतरिक्ष में विचरते कण हैं। जिनका आकार धूल के एक कण से लेकर मटर के ठोस दाने के बराबर होता है। जिनका भार अधिकतम 100 ग्राम तक हो सकता है। इनकी गति 20 से 40 किमी प्रति सेकेंड तक होती है। पृथ्वी के वातावरण में रगड़ खाते ही जलकर खाक हो जाते हैं। दुर्लभ ही कोई उल्का जमीन तक पहुंच पाती है।

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