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उत्तराखंड का माला गांव बना गंगा ग्राम, जानिए खासियत

ऋषिकेश : केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने पौड़ी जिले में यमकेश्वर प्रखंड के माला गांव को गंगा ग्राम के रूप में गोद लिया है। इसे नमामि गंगे परियोजना के तहत पंजाब के सीचेवाल गांव की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।

केंद्र ने इस योजना में देशभर से 400 गांवों को गोद लेने का निर्णय लिया है। पहले चरण में 15 गांव चयनित हुए हैं, जिनमें उत्तराखंड का यह एकमात्र गांव भी शामिल है।

मंत्रालय ने गंगा की निर्मलता एवं स्वच्छता के लिये बड़े पैमाने पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत देशभर में गंगा तट के करीब बसे 400 गांवों का सीचेवाल की तर्ज पर विकास होना है। इनमें से प्रथम चरण में चयनित 15 गांवों में उत्तराखंड के माला गांव को भी जगह मिली। हालांकि, इसके लिए 20 गांव दौड़ में शामिल थे।

स्वजल, पौड़ी गढ़वाल के परियोजना प्रबंधक रामेश्वर चौहान के मुताबिक गंगा ग्राम के लिये चयनित होने वाला माला गांव उत्तराखंड का इकलौता गांव है। शीघ्र ही केंद्र की टीम भौतिक सर्वे के लिए माला गांव आएगी। सीचेवाल मॉडल की तर्ज पर होने वाले कार्यों के लिए डीपीआर तैयार की जा रही है।

उन्होंने बताया कि केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता अभियान की ओर से संचालित स्वच्छता कार्यक्रम के साथ ही इस गांव में सगंध पौधों का रोपण, आर्गेनिक खेती को प्रोत्साहन, तालाबों को पुनर्जीवन, वर्षा जल व भूजल संरक्षण और विकास के अन्य कार्यक्रम संचालित किए जाएंगे।

बताया कि गंगा ग्राम में ठोस एवं तरल अवशिष्ट प्रबंधन के लिये ठोस उपाय किए जाएंगे। प्रत्येक घर की रसोई व शौचालय से निकलने वाले पानी को दोबारा उपयोग में लाने लायक बनाया जाएगा। गंगा ग्राम को इसके लिए पहले चरण में आठ लाख रुपये दिए जाने की योजना है।

माला गांव में खास 

यमकेश्वर प्रखंड का माला गांव ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर गंगा के बायीं ओर स्थित है। 220 परिवारों वाले इस गांव की वर्तमान में आबादी 1051 है। ग्रामीणों का मुख्य रोजगार कृषि व पर्यटन पर ही आधारित है।

माला गांव ग्राम पंचायत के दो खंड गांव पलेल व पस्तोड़ा हैं, जो आज तक सड़क से भी नहीं जुड़े। माला गांव तक पहुंचने के लिए आज भी मालाखुंटी से चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढऩी पड़ती है। वर्ष 2010 में माला व सिरासू गांव को जोड़ने वाले 16 किमी लंबे मार्ग का सर्वे हुआ था, मगर, अभी तक यह प्रस्ताव फाइलों में ही धूल फांक रहा है।

क्या है सीचेवाल मॉडल 

पंजाब की 160 किलोमीटर लंबी कालीबेई नदी में 40 गांवों की गंदगी मिलती थी। नतीजा यह नदी एक गंदे नाले में तब्दील हो गई। वर्ष 2000 में पर्यावरण कार्यकर्ता बलबीर सिंह सीचेवाल ने इस नदी को साफ करने की मुहिम छेड़ी। उन्होंने अपने साथी और सहयोगी स्वयंसेवकों के साथ मिलकर सबसे पहले इसके तटों का निर्माण किया और नदी के किनारे-किनारे सड़कें बनाई।

सीचेवाल ने लोगों के बीच जनजागृति अभियान चलाया। इसके तहत लोगों से अपने घर का कूड़ा-करकट कहीं और डालने को कहा गया। नदी में मिलने वाले गंदे नालों का रुख मोड़ा गया और सबसे बड़ी बात यह कि नदी के किनारे बसे लोगों को इसकी पवित्रता को लेकर जागरूक किया गया।

 

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