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उत्तराखंड: क्लाइमेट चेंज के आकलन को पांच प्रोजेक्ट

देहरादून  वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बने जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के असर से 71 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड भी अछूता नहीं है। यह बदलाव इस मध्य हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिकी और वनस्पतियों के लिए खतरा साबित हो रहा है। क्लाइमेट चेंज से यहां ट्री लाइन (वह सीमा जिसके आगे अथवा ऊपर वृक्ष नहीं उगते) प्रभावित हुई है तो सदाबहार बांज के वनों में कार्बन अभिग्रहण क्षमता में कमी दर्ज की गई है।

राज्य वृक्ष बुरांश  के फूल वक्त से पहले खिलने लगे है। इन प्रभावों को देखते हुए वन महकमे ने इनके अध्ययन के लिए पांच प्रोजेक्ट तैयार किए हैं। वन संरक्षक, वन अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के निर्देश पर तैयार इन प्रोजेक्ट के प्रस्ताव अनुसंधान सलाहकार परिषद को अनुमोदन के लिए भेजे गए हैं।

उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जलवायु में बदलाव से यहां की पारिस्थितिकी और वन संपदा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसके गहराई से अध्ययन की जरूरत को देखते हुए वन विभाग ने विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है। इसमें राज्य वृक्ष बुरांश (रोडोडेंड्रोन) भी शामिल है। सूबे में इसकी सर्वाधिक विविधता है और यहां इसकी चार प्रजातियां हैं।

इसके सुर्ख फूल बेहद आकर्षक दिखते हैं। फूलों के जूस को हृदय रोग के उपचार में सहायक माना जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि का असर इस पर दिख रहा है और यह वक्त से पहले खिल रहा है। अध्ययन में इसके कारणों पर गौर किया जाएगा, जिसके लिए तीन क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं। इसमें तापमान व वर्षा के प्रभाव, फायर लाइन, पुष्पण के आंकड़े शामिल होंगे।

वातावरण में मौजूद कार्बन का प्राकृतिक रूप से जैविक, रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं में अभिग्र्रहण होता है। वनस्पतियां वायुमंडल से कार्बन डाई आक्साइड का अवशोषण करती हैं और इन्हें जलाने पर यह वापस वायुमंडल में आ जाती है। वैश्विक जलवायु को नियंत्रित करने में वनों की अहम भूमिका है। वन अधिक से अधिक कार्बन संचय कर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करते है। नैनीताल क्षेत्र में स्थित बांज वन कार्बन अभिग्रहण का बड़ा कारक हैं। बांज वनों द्वारा कार्बन अभिग्रहण में आ रहे बदलाव पर अध्ययन किया जाएगा।

भूमि संरक्षण में अहम हिसालू प्रजाति पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है। इसके फल, जड़ व तने का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है। 2500 से 7000 फीट की ऊंचाई पर मिलने वाले हिसालू में पुष्पण व फलन चक्र में बदलाव देखा गया है। विभाग इसके कारणों व खतरों का अध्ययन करेगा। वहीं, जलवायु परिवर्तन से वनों की वानस्पतिक रचना में भी नजर आ रहे बदलाव को खतरे की घंटी माना जा रहा है। इस बिंदु पर भी गहन अध्ययन होगा। यही नहीं उच्च हिमालयी क्षेत्र में बिगड़ रही ट्री लाइन के कारणों की पड़ताल कर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की रणनीति तैयार करेगा।

पांच साल में इन श्रेणियों में होगा अध्ययन

-नैनीताल में बुरांश का पुष्पण।

-रानीखेत में हिसालू पर असर।

-नैनीताल में बांज वन में कार्बन अभिग्र्रहण।

-रेखीय वृद्धि गाटा (एलआईपी) में वानस्पतिक रचना।

-उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्री लाइन।

 

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