उत्तराखंड समाचार

उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव टलने के आसार, दो चरणों में हो सकते हैं

 

उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों का टलना तकरीबन तय हो गया है। नगर निकायों में सीमा विस्तार के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को सीमा विस्तार की कार्रवाई नए सिरे से करने को कहा है।

फैसले के बाद सरकारी मशीनरी प्रभावित नगर निकायों में सीमा विस्तार का शासनादेश नए सिरे से जारी करने में जुट गई है। इस पर नए सिरे से आपत्तियां मांग कर उनका निस्तारण किया जाएगा। इसके बाद सीमा विस्तार का अंतिम नोटिफिकेशन होगा। इस काम में समय लगना तय है, इस कारण चुनाव निर्धारित डेडलाइन चार मई तक होने मुमकिन नजर नहीं आ रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान’ ने प्रदेश में निकाय चुनाव टलने के संकेत पहले ही दे दिए थे। प्रदेश में मौजूदा निकायों का गठन चार मई, 2013 को किया गया था, इस कारण निर्वाचन आयोग को चार मई 2018 तक प्रदेश में सभी निकायों में नए चुनाव के बाद बोर्ड का गठन करना है।

तय डेडलाइन के भीतर चुनाव कराने की दिशा में काम करते हुए सरकार नगर निकायों में वार्डों का परिसीमन पूरा करते हुए आरक्षण घोषित करने के लिए होमवर्क पूरा कर चुकी है। लेकिन अब ऐन मौके पर हाईकोर्ट ने सीमा विस्तार पर आपत्ति दाखिल करने वाले निकायों में नए सिरे से सीमा विस्तार की कार्रवाई करने और फिर लोगों की आपत्तियों का समाधान करने के निर्देश दिए हैं। इस कारण एकाएक चुनावी प्रक्रिया रुक गई है। कोर्ट में सरकार ने शपथ पत्र देकर इन निकायों में फिर से लोगों की आपत्तियों को सुनने पर मंजूरी दी है।

तैयारियों में निकल जाएगी चुनाव की डेडलाइन

नियमानुसार सीमा विस्तार का प्रारंभिक शासनादेश जारी होने के बाद लोगों को एक सप्ताह के अंदर आपत्तियां दाखिल करने का वक्त दिया जाता है। इसके बाद जिला स्तर पर इन आपत्तियों की सुनवाई के बाद जिलों से संबंधित रिपोर्ट निदेशालय को भेजी जाएगी, इसके बाद शासन स्तर से सीमा विस्तार का अंतिम नोटिफिकेशन होगा। इसके बाद यदि किसी भी निकाय में सीमा विस्तार के स्वरूप में बदलाव नहीं हुआ तो फिर आरक्षण घोषित कर इन पर आपत्तियां मांगी जाएंगी। आरक्षण की आपत्तियां निपटाने में भी समय लगाना है। इस तरह व्यावहारिक तौर पर देखें तो पहले सीमा विस्तार और फिर आरक्षण पर आपत्तियां निपटाने में ही एक माह का समय निकल जाएगा। इसके बाद चुनाव नोटिफिकेशन से लेकर मतगणना तक के लिए भी कम से कम एक महीने का समय लगता है, इसलिए चुनाव चार मई की डेडलाइन से आगे जाने तय हैं।

एक भी गांव नहीं हटेगा सूची से 

शुक्रवार दोपहर बाद फैसला आने के बाद शहरी विकास विभाग में हड़कंप मचा रहा। आनन फानन में नए सिरे से प्रभावित निकायों में नए सिरे से सीमा विस्तार का शासनादेश निकालने की कार्रवाई शुरू की गई। सूत्रों के मुताबिक सरकार अब भी पूर्व में घोषित सभी गांवों को सीमा विस्तार के दायरे में रख रही है। चूंकि संबंधित शासनादेश अभी कुछ समय पहले ही तैयार हुआ है, इसलिए इसे मामूली बदलाव के साथ एक दो- दिन में सार्वजनिक कर लोगों की आपत्तियां मांगी जाएंगी। इसके बाद आपत्तियों पर सनुवाई के बाद सीमा विस्तार का अंतिम शासनादेश जारी होगा।

दो चरणों में हो सकते हैं निकाय चुनाव

प्रदेश में निकाय चुनाव पर असमंजस पैदा होने के बाद चुनाव दो चरणों में कराए जाने की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं। असल में प्रदेश में चुनाव से गुजरने वाले 88 में से 47 निकाय ऐसे हैं जहां सीमा विस्तार हुआ ही नहीं है। इस कारण यहां चुनाव कराने में किसी प्रकार की बाधा नहीं है। आयोग पहले चरण में इन निकायों में चुनाव करा कर, शेष निकायों में कुछ समय बाद चुनाव करा सकता है। दरअसल, चुनाव कराने के लिए कानूनी अड़चन को छोड़ दें तो सरकार और निर्वाचन आयोग अपना होमवर्क काफी हद तक पूरा कर चुके हैं। सरकार  ने जहां अब तक सभी निकायों में वार्ड परिसीमन पूरा कर लिया है, वहीं आरक्षण का होमवर्क तकरीबन पूरा हो गया है। वहीं निर्वाचन आयोग भी मतदाता सूची का प्रकाशन कर चुका है। इन दिनों मतदाता सूची पर आपत्तियां मांगी जा रही है। 18 मार्च को आयोग मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन करेगा। इस तरह आयोग को अब सिर्फ अधिसूचना जारी कर चुनाव का श्रीगणेश करना है। इसलिए आयोग सभी निकायों में चुनाव टालने के बजाय दो चरणों में चुनाव कराने का विकल्प भी तलाश रहा है। हालांकि अंतिम स्थिति कोर्ट में गए निकायों में सीमा विस्तार की कार्रवाई पर लगने वाले समय के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी। हालांकि अब तक प्रदेश में एक चरण में चुनाव होते रहे हैं। लेकिन इस बार विषय हालात के चलते दो चरणों में चुनाव का विकल्प आजमाया जा सकता है। हालांकि सरकार को अध्यक्ष पद पर आरक्षण तय करने में जरूर दिक्कत आ सकती है।

छह माह तक टालने का प्रावधान 

शासन और आयोग के सूत्रों का कहना है कि संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक निकायों में चुनाव तय समय पर कराए जाने जरूरी है। यदि कोई असाधारण परिस्थतियां पैदा होती हैं तो ही अधिकतम छह महीने के लिए चुनाव टालकर इस दौरान निकायों में प्रशासक की नियुक्ति की जा सकती है। निकायों में चुनाव टालने के लिए सरकार को विधानसभा से भी मंजूरी लेनी होगी।

कोर्ट के फैसले की प्रति अभी प्राप्त नहीं हुई है। इसलिए चुनाव पर क्या स्थिति बनेगी यह कहना मुमकिन नहीं है। जहां तक आयोग का सवाल है आयोग चुनाव को लेकर पूरी तरह तैयार है।
संपादक कविन्द्र पयाल

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