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एफआरआइ की रिपोर्ट: राष्ट्रपति भवन के 35 फीसद पेड़ खोखले

देहरादून : राष्ट्रपति भवन के 100 से अधिक पेड़ों की सेहत नासाज चल रही है। ये पेड़ दिनों-दिन खोखले होते जा रहे हैं। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के ताजा अध्ययन में यह चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। संस्थान के वैज्ञानिकों ने विभिन्न रोगों से ग्रस्त इन पेड़ों की जगह नए पौधे लगाने का सुझाव दिया है।

एफआरआइ की पैथोलॉजी (वन व्याधि) डिविजन ने जुलाई 2016 में एक परियोजना के तहत राष्ट्रपति भवन के पेड़ों की सेहत के आकलन पर काम शुरू किया था। डिविजन के पूर्व प्रमुख व ग्रुप कोर्डिनेटर रिसर्च डॉ. एनएसके हर्ष के मुताबिक दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन के परिसर में लगे खिरनी, करंज और इंडियन लॉरेल की हालत नाजुक है।

पेड़ों में प्रमुख रूप से हार्ट रॉट और रूट रॉट नामक रोग की पहचान की गई है। हार्ट रॉट के कारण ये लगातार खोखले होते जा रहे हैं, रूट रॉट बीमारी पेड़ों की जड़ों को कमजोर कर रही है। इसके अलावा कई पेड़ लिटिल लीफ बीमारी की चपेट में भी आ गए हैं और इससे इनकी पत्तियां छोटी होती जा रही हैं।

वहीं, कुछ हानिकारक कीटों का हमला भी पेड़ों पर हो रखा है। इनमें इन्सेक्ट्स बोरर्स पेड़ों में छेद कर रहे हैं और सैप सकिंग इन्सेक्ट्स पेड़ों का रस चूसकर उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

वन व्याधि रोग विशेषज्ञ डॉ. एनएसके हर्ष ने बताया कि करीब 300 पेड़-पौधों से भरे राष्ट्रपति भवन परिसर में लगभग 35 फीसद पेड़ों का खोखला होना चिंता की बात है। पेड़ों को जरूरी उपचार भी दिया गया है, लेकिन जिस तरह से रोग की चपेट में आ गए हैं, उससे देखते हुए ये लंबे समय सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। राष्ट्रपति भवन को सुझाव दिया गया है कि इनकी जगह नए पौधे लगाए जाने चाहिए।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब ने किया रिपोर्ट का विमोचन

24 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल की अंतिम संध्या पर राष्ट्रपति भवन में एफआरआइ के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट का विमोचन किया।

राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में रिपोर्ट के विमोचन के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी व एफआरआइ की निदेशक डॉ. सविता उपस्थित थे। निदेशक डॉ. सविता ने बताया कि संस्थान ने राष्ट्रपति भवन के पेड़ों के रोगों के अलावा उनकी उम्र का भी आकलन किया।

इसमें शीशम के पेड़ की उम्र सबसे अधिक 225 साल आंकी गई। रिपोर्ट में पेड़ों के रोग संबंधी समस्या, मृदा व सिंचाई परीक्षण आदि को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं।

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