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केदारनाथ आपदा जैसे संकेत दे रहा गंगोत्री ग्लेशियर!

देहरादून : गंगोत्री ग्लेशियर में बन रही एक झील केदारनाथ जैसी भीषण आपदा के संकेत दे रही है। यह झील गोमुख के मुहाने पर बन रही है। जो गंगा का उद्गम स्थल है। चौराबाड़ी ग्लेशियर में बनी ऐसी ही एक झील के कारण 2013 में केदारनाथ सहित उत्तराखंड में प्रलय की स्थिति बन गई थी। 2004 में उस झील को लेकर भी इसी तरह की आशंका व्यक्त की गई थी। यदि समय रहते उचित कदम उठा लिए जाते तो अनेक जानें बचाई जा सकती थीं। अब एक बार फिर वही खतरा सामने है। आशंका जताई जा रही है कि गंगोत्री में बन रही झील उस झील की तुलना में चार गुना बड़ा आकार ले सकती है।

मलबे के कारण बन रही झील:

खतरे से आगाह करने वाला यह वही वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान है, जिसने 2004 में केदारनाथ आपदा से पहले भी इसी तरह चेताया था। इसके भू-विज्ञानियों ने कहा है कि गोमुख में बन रही झील को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी ने बताया कि इसी वर्ष जुलाई में आई बाढ़ के बाद गोमुख में झील का बनना शुरू हुआ है।

बाढ़ के कारण धारा के मुहाने पर करीब 30 मीटर ऊंचे मलबे का ढेर लग जाने से ऐसा हुआ। फिलहाल यहां करीब चार मीटर गहरी झील बन गई है। जो धारा पहले सीधे बहती थी, वह भी अब दायीं तरफ से बहने लगी है। यदि कभी यह बहाव भी रुक गया तो यहां 30 मीटर ऊंची, 50-60 मीटर लंबी और करीब 150 मीटर चौड़ी झील बन जाएगी। ऐसे में 30 मीटर ऊंचा मलबे का ढेर, जो बोल्डर, रेत और आइस ब्लॉक से बना है, एक झटके में टूट जाएगा।

सावधानी जरूरी:

डॉ. नेगी के मुताबिक सावधान हो जाने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है कि इस झील में चौराबाड़ी झील से कहीं अधिक पानी और मलबा जमा करने की क्षमता है। जबकि महज सात मीटर गहरी और 100 मीटर से भी कम चौड़ी चौराबाड़ी झील के फटने से केदारनाथ क्षेत्र में प्रलय की स्थिति आ गई थी।

क्या है उपाय:

नेगी कहते हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्र होने के कारण मलबे के ढेर से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। किया यही जा सकता है कि ऐहतिहात के तौर पर गोमुख के निचले क्षेत्रों जैसे गंगोत्री आदि में खतरे का आकलन कर सुरक्षा के सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए जाएं।

तब भी इसी तरह चेताया था:

केदारनाथ आपदा की चेतावनी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने नौ साल पहले दे दी थी। संस्थान ने स्पष्ट तौर पर चेताया था कि चौराबाड़ी ग्लेशियर पर बन रही झील कभी भी भयंकर तबाही मचा सकती है। और तो और, इस बार की तरह तब भी दैनिक जागरण ने संस्थान द्वारा दी गई चेतावनी को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। लेकिन प्रशासन ने उसे गंभीरता से नहीं लिया था। न तो संभावित खतरे का आकलन किया गया, न ही लोगों को खतरे वाली जगहों से हटाया गया और न ही बेतरतीब निर्माण पर रोक लगाई गई। एहतियात बरत लिया जाता तो अनेक जानें बच सकती थीं।

ये है सलाह:

-भू-विज्ञानियों ने दी हिदायत

-किया जाए खतरे का आकलन

-बचाव के लिए उठाए जाएं एहतियाती कदम

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