पर्यटन

गंगा के बाद अब ग्लेशियर, बुग्याल, वैटलैंड, जंगल को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा

हाइकोर्ट ने प्रदेश के ग्लेशियरों, झील, झरनों, घास के मैदान आदि को भी जीवित व्यक्ति (ज्यूरिस्टिक पर्सन) घोषित किया। पूर्व में कोर्ट ने ललित मिगलानी की याचिका पर गंगा और यमुना नदी को कोर्ट ने यह दर्जा दिया था।ललित मिगलानी की ओर से दिए गए प्रार्थना पत्र ही कोर्ट ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव सचिव सहित छह लोगों को अभिभावक नियुक्त किया। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश के ग्लेशियरों, वेटलैंड, घास के मैदान आदि को भी संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि गंगोत्री, यमुनोत्री सहित अन्य ग्लेशियरों, नदियों, जलधाराओं, जंगल, जलप्रपातों, झीलों, हवा, झरने, स्रोत, घास के मैदान आदि को वही अधिकार होंगे, जो एक जीवित व्यक्ति के होते हैं। उन्हें क्षति पहुंचाने पर उसी प्रकार का ट्रीटमेंट किया जाएगा, जो एक मानव को क्षति पहुंचाने पर किया जाना है।

कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव, निदेशक नमामी गंगे, गंगा स्वच्छता राष्ट्रीय मिशन के निदेशक ईश्वर सिंह, एकेडमिक निदेशक चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमिक डा. बलराम गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट एमसी मेहता तथा एडवोकेट जनरल उत्तराखंड को अभिभावक का दर्जा दिया है।

कोर्ट ने कहा कि इनके माध्यम से ग्लेशियरों सहित अन्यों की क्षति के खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रदेश के मुख्य सचिव प्रदेश के शहरों और कस्बों से सात प्रतिनिधियों को अभिभावकों में शामिल कर सकते हैं। कोर्ट ने यह निर्णय पूर्व में नदियों को संरक्षित करने संबंधित फैसले के याचिकाकर्ता ललित मिगलानी के प्रार्थना पर दिया।

कोर्ट ने कहा कि नदियों को जीवित व्यक्ति का अधिकार देने संबंधित फैसले में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि इस मामले को भी जीवित रखा जा रहा है, ताकि नए आदेश पारित किए जा सके

Related Articles

Back to top button