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जानिए कौन हैं हर्षवंती बिष्ट, जो बनीं आइएमएफ की पहली महिला अध्यक्ष; उनकी उपलब्धियों पर भी डालें नजर

अर्जुन पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध पर्वतारोही डा. हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) की अध्यक्ष चुनी गई हैं। बीते 20 नवंबर को हुए चुनाव में उन्हें 107 में से 60 मत मिले। विशेष यह कि 1958 में स्थापित आइएमएफ में पहली बार किसी महिला को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिली है। इससे उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में पर्वतारोहण व साहसिक पर्यटन को नया मुकाम मिलने की उम्मीद है। नवनिर्वाचित अध्यक्ष का कहना है कि उनका प्रयास साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में अधिक से अधिक बेटियों को आगे लाने का होगा। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए योजना तैयार की जाएगी।

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बीरोंखाल ब्लाक स्थित सुकई गांव निवासी 62-वर्षीय डा. हर्षवंती बिष्ट पीजी कालेज उत्तरकाशी से प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। नई जिम्मेदारी मिलने के बाद अब उनका मुख्य ध्येय देश में पर्वतारोहण को एक नया मुकाम देना है। विश्वभर के पर्वतारोही एवरेस्ट की ओर नहीं, बल्कि भारत में स्थित कठिन चोटियों के आरोहण के लिए आएं। यहां आरोहण के लिए खुद ही रोप बांधनी पड़ती है, खुद रास्ता बनाना पड़ता है। सही मायने में यही पर्वतारोहण है। एवरेस्ट में तो रोप बंधी होती है और आरोहण में शेरपा पूरा सहयोग करते हैं। ‘दैनिक जागरण’ से बातचीत में हर्षवंती ने कहा कि वह उत्तराखंड के पर्यटन मंत्रालय से भी राज्य में पर्वतारोहण व ट्रैकिंग को बढ़ावा देने के लिए सुझाव मांगेंगी। ताकि राज्य में पर्वतारोहण व साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।

हर्षवंती के नाम कीर्तिमान

1975 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का कोर्स करने के बाद हर्षवंती ने अनेक पर्वतारोहण अभियान सफलतापूर्वक पूरे किए। 1977 में गढ़वाल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विषय के प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के बाद भी उन्होंने पर्वतारोहण जारी रखा। 1981 में उन्होंने नंदा देवी पर्वत (7816 मीटर) के मुख्य शिखर का सफल आरोहण किया। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला। 1984 में वह एवरेस्ट अभियान दल की सदस्य भी रहीं। इसके बाद उन्होंने ‘सेव गंगोत्री’ प्रोजेक्ट की शुरुआत कर गंगोत्री से आगे भोजवासा में भोज के पौधों का रोपण किया। वहां करीब दस हेक्टेयर में लगाए गए 12500 पौधों में से करीब सात हजार जीवित हैं। 2013 में पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें सर एडमंड हिलेरी माउंटेन लिगेसी मेडल प्रदान किया गया।

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