राजनीति

डेमोक्रेसी समिट में पीएम मोदी की दुनिया से अपील, कहा- इंटरनेट मीडिया और क्रिप्टोकरेंसी पर बनें वैश्विक नियम ताकि मजबूत रहे लोकतंत्र

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को इंटरनेट मीडिया और क्रिप्टोकरेंसी पर मान्य अंतरराष्ट्रीय नियम बनाने की जरूरत बताई। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मेजबानी में आयोजित डेमोक्रेसी समिट को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने न सिर्फ भारत में लोकतंत्र की बेहद गहरी जड़ों के बारे में बताया बल्कि लोकतंत्र को और ज्यादा सफल बनाने का मंत्र भी दिया। उन्होंने कहा कि भारत के नागरिकों और यहां के समाज में लोकतंत्र की मूल भावना का वास है जो इसकी सफलता का कारण है।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल के दिनों में कई बार इंटरनेट मीडिया और अत्याधुनिक तकनीक के बढ़ते खतरे को लेकर आगाह किया है। एक दिन पहले भी डेमोक्रेसी समिट में शामिल होने वाले 12 शीर्ष देशों के प्रमुखों के साथ हुई बैठक में मोदी ने टेक्नोलोजी कंपनियों से आग्रह किया था कि वे लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद करें।

शुक्रवार को विश्व के 110 देशों के सामने अपने विचार रखते हुए मोदी ने कहा कि हमें मिलकर उभरती हुई टेक्नोलोजी जैसे इंटरनेट मीडिया और क्रिप्टोकरेंसी पर वैश्विक नियम बनाने चाहिए ताकि इनका इस्तेमाल लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए हो, न कि उसे कमजोर करने के लिए।

प्रधानमंत्री मोदी का यह वक्तव्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ दिनों में भारत में भी क्रिप्टोकरेंसी को नियमित करने को लेकर कानून बनाने का विधेयक संसद में पेश होने वाला है। सूचना है कि इस बारे में अंतिम फैसला करने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी को ही निभानी है। यह पिछले एक महीने में दूसरा मौका है जब प्रधानमंत्री मोदी ने क्रिप्टोकरेंसी का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया है। इसके पहले सिडनी डायलाग में भी उन्होंने इसी तरह से अपनी बात रखी थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें 2,500 साल पुरानी हैं तब भारत में लिच्छवी और शाक्य जैसे नगर गणराज्य विकसित हुए थे। इसी लोकतांत्रिक भावना का जिक्र 10वीं सदी के शिलालेख उत्तरामेरूर में भी है। सदियों की विदेशी सत्ता भी भारतीयों में लोकतंत्र की भावना को खत्म नहीं कर सकी। आजादी के बाद भारतीयों में यह भावना खूब देखने को मिली और इसने पिछले 75 वर्ष के दौरान लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने के अभूतपूर्व काम में मदद की है।

पीएम मोदी ने कहा कि भारत शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरे क्षेत्रों में लगातार सुधार कर रहा है। भारत ने दुनिया को साफ संदेश दिया है कि लोकतंत्र काम कर सकता है, लोकतंत्र ने काम किया है और यह आगे भी काम करता रहेगा।

बहुलवादी राजनीतिक दलों वाली व्यवस्था, स्वतंत्र न्यायपालिका और मुक्त मीडिया को उन्होंने लोकतंत्र के मूल तत्व के तौर पर चिह्नित करते हुए कहा कि लोकतंत्र सिर्फ जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा व्यवस्था ही नहीं है बल्कि यह जनता के साथ और जनता के बीच वाली व्यवस्था भी है। मोदी ने भारत की तरफ से दुनिया के दूसरे देशों के साथ लोकतंत्र के अपने अनुभव साझा करने की पेशकश की। खास तौर पर भारत स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने और डिजिटल माध्यम की मदद से गवर्नेंस सुधारने में दूसरे देशों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सदियों का औपनिवेशिक शासन भारतीय लोगों की लोकतांत्रिक भावना को दबा नहीं सका। इसने भारत की स्वतंत्रता के साथ फिर से पूर्ण अभिव्यक्ति पाई और पिछले 75 वर्षों में लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण में एक अद्वितीय कहानी रखी। बहुदलीय चुनाव, स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र मीडिया जैसी संरचनात्मक विशेषताएं लोकतंत्र के महत्वपूर्ण उपकरण हैं। हालांकि लोकतंत्र की मूल ताकत वह भावना और लोकाचार है जो हमारे नागरिकों और समाज में निहित है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों ने लोकतांत्रिक विकास के विभिन्न रास्तों का अनुसरण किया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। हम सभी को अपनी लोकतांत्रिक प्रथाओं और प्रणालियों में लगातार सुधार करने की आवश्यकता है। आज की सभा दुनिया के लोकतंत्रों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक सामयिक मंच प्रदान करती है। इसमें भारत को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और नवोन्मेषी, डिजिटल समाधानों के माध्यम से शासन के सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता बढ़ाने में अपनी विशेषज्ञता साझा करने में खुशी होगी।

पीएम मोदी ने कहा कि लोकतंत्र हमारे नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है और मानवता की लोकतांत्रिक भावना का जश्न मना सकता है। भारत इन नेक प्रयासों में साथी लोकतंत्रों के साथ शामिल होने के लिए तैयार है। इससे पहले पीएम मोदी ने गुरुवार को इस सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए तकनीकी कंपनियों से सहयोग की अपेक्षा जताते हुए सभी लोकतांत्रिक देशों को अपने संविधान में दिए गए लोकतांत्रिक मूल्यों के मुताबिक कदम उठाने की जरूरत बताई थी।

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