उत्तराखंड विकास खण्ड

दुर्लभ कीड़ाजड़ी को बचाएगी देहरादून की दिव्या रावत की ‘कीड़ाजड़ी’

देहरादून : उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली शक्तिवर्धक कीड़ाजड़ी (कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस) तस्करों के निशाने पर है। इस वजह से इसके अस्तित्व पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

इस हिमालयी कीड़ाजड़ी को बचाने के लिए सरकार व वैज्ञानिक भले ही अभी कोई ठोस उपाय न तलाश पाए हों, लेकिन दून की दिव्या रावत ने अपने बूते हिमालयी कीड़ाजड़ी का विकल्प तलाशकर लैब में कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस नाम की कीड़ाजड़ी उगाने में सफलता हासिल कर ली है। लैब में यह कीड़ाजड़ी पांच इंच तक उग चुकी है और दिव्या का लक्ष्य इसका व्यावसायिक उत्पादन कर देश-विदेश में बिक्री करने का है।

दिव्या अप्रैल में ट्रेनिंग के लिए थाईलैंड गई थीं। वहां उन्होंने कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस का भारी मात्रा में उत्पादन होते देखा। साथ ही इसे लैब में उगाने की जानकारी भी जुटाई। देहरादून लौटकर उन्होंने मोथरोवाला में लैब तैयार कर इसे उगाना शुरू किया। दिव्या के मुताबिक कीड़ाजड़ी का टिश्यू कल्चर वह थाईलैंड से लाई थीं और फिर लैब में इसका स्पॉन तैयार किया, जो तरल होता है।

जून में 500 डिब्बों में निर्धारित प्रक्रिया के तहत 18 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान में इसे उगने के लिए लैब में रख दिया। दो सप्ताह की अवधि में उन्हें लैब से कीड़ाजड़ी मिलने लगी। दिव्या का कहना है, हो सकता है कि किसी वैज्ञानिक ने अनुसंधान के लिए कीड़ाजड़ी को उगाया हो, लेकिन व्यावसायिक उत्पादन की यह पहली लैब है। उन्होंने बताया कि अभी तक सबसे ज्यादा कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस का ही कृत्रिम उत्पादन हो रहा है।

लैब की क्षमता के अनुसार सालाना करीब छह करोड़ रुपये की कीड़ाजड़ी का उत्पादन होगा। साल में दो से तीन बार इसका उत्पादन हो सकता है। भारत की कई दवा कंपनी अब तक उनसे संपर्क कर चुकी हैं। दिव्या का मानना है कि लैब की कीड़ाजड़ी का प्रचलन बढ़ेगा तो निश्चय ही उच्च हिमालय की दुलर्भ कीड़ाजड़ी पर दबाव भी कम होगा।

करामाती है ये बूटी 

-शक्ति बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। कई देशों में एथलीट इसका प्रयोग करते हैं।

-फेफड़ों व किड़नी के उपचार के लिए जीवन रक्षक दवाएं भी तैयार होती हैं।

-इससे यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवा भी तैयार की जाती है।

680 प्रजाति हैं कीड़ाजड़ी की 

दिव्या रावत बताती हैं कि कीड़ाजड़ी की विश्व में 680 प्रजाति हैं। कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस का थाईलैंड के साथ वियतमान, चीन, कोरिया आदि देशों में ज्यादा उत्पादन होता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी मांग है। इससे पाउडर और कैप्सूल के साथ चाय भी तैयार की जाती है। बाजार में इस कीड़ाजड़ी का दाम दो लाख रुपये प्रति किलो है।

मशरूम उत्पादन में विशेष नाम

दिव्या रावत ने मोथरोवाला में चार साल पहले मशरूम उत्पादन शुरू किया था। वह मशरूम के क्षेत्र में विशेष स्थान बना चुकी हैं और तमाम महिलाओं के लिए रोल मॉडल भी हैं। मार्च में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार दिया, जिसे उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों ग्रहण किया था।

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