उत्तर प्रदेश

फिल्म पद्मावती पर सेंसर बोर्ड के फैसले के बाद योगी सरकार लेगी अपना फैसला

लखनऊ   निर्माता-निर्देशक संजय लीला भांसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर चल रहे विवाद ने पद्मावती संबंधी किताबों की डिमांड बढ़ा दी है। इनमें इतिहास और साहित्य की पुस्तकें अधिक है। पद्मावती की रिलीज़ पर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि फिल्म के बारे में सेंसर बोर्ड के फैसले के बाद सरकार अपना फैसला लेगी। पद्मावती की क्लिपिंग लीक होने के बाद देश भर में फ़िल्म के खिलाफ जना क्रोश है। जनभावनाएं आहत हो रही हैं। फ़िल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ को लेकर जनभावना और इतिहास के साथ छेड़छाड़ गलत हैं।

महाकाव्य पद्मावत पर चर्चा बढ़ी

इस बीच फिल्म पद्मावती को लेकर छिड़े बवाल के बीच लोग इतिहास और साहित्य में रानी पद्मिनी की गौरव गाथा खंगाल रहे हैं। इसके लेकर साहित्य प्रेमियों में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत की मांग सबसे अधिक है। यही नहीं जिज्ञासु गूगल में लगातार पद्मावती से जुड़े टेक्स्ट और फोटो सर्च कर रहे हैं। पद्मावती फिल्म पर विवाद के बाद रानी पद्मावती से संबंधित पुस्तकों की मांग में इजाफा हुआ है। दरअसल पद्मावत वह पुस्तक है जिसमें अलाउद्दीन के दरबार में रानी पद्मावती का नखशिख वर्णन मर्यादाओं के करीब तक पहुंच कर किया गया है। यह प्रेम मार्ग को पुष्ट करने वाला महाकाव्य है जिसमें प्रेम को परमेश्वर के रूप में स्थापित कर दिया है। इस महाकाव्य का अध्ययन करने वाले राघवेद्र सिंह ने बताया कि जायसी का पद्मावत पढ़ने के बाद प्रेम परमेश्वर, मुहब्बत खुदा या लव इज गाड जैसे कथन सत्य के काफी करीब लगते हैं।

प्रेम-साधना का संदेश

इतिहास की शोध छात्रा अपूर्वा मिश्रा ने पद्मावती से जुड़े इतिहास और साहित्य पर विस्तार से जानकारी दी। उनके मुताबिक मलिक मोहम्मद जायसी सूफी संत थे। पद्मावत की रचना में उन्होंने नायक रतनसेन और नायिका पद्मिनी की प्रेमकथा के जरिए प्रेम-साधना का संदेश दिया है। रतनसेन चित्तौड़ का राजा है। पद्मावती उसकी वह रानी है जिसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन उसे प्राप्त करने के लिये चित्तौड़ पर आक्रमण करता है। यद्यपि युद्ध में विजय प्राप्त करता है तथापि पदमावती के जल मरने के कारण उसे नहीं प्राप्त कर पाता है।

पद्मावती और रतनसिंह का विवाह

पद्मिनी श्रीलंका के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी। उसके पास हीरामन नाम का एक तोता था। एक दिन पद्मावती की अनुपस्थिति में बिल्ली के आक्रमण से बचकर वह तोता भाग निकला और एक बहिलिए के जाल में फंसा गया। बहेलिए से उसे एक ब्राह्मण ने खरीद लिया जिसने चित्तौड़ आकर उसे राजा रतनसिंह के हाथ बेच दिया। इसी तोते से राजा ने पद्मिनी के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन सुना तो उसे प्राप्त करन के लिये योगी बनकर निकल पड़ा। जंगल और समुद्र पार कर वह  श्रीलंका (सिंहल द्वीप) पहुँचा। उसके साथ में वह तोता भी था। तोते के जरिए राजा ने पद्मावती के पास अपना संदेश भेजा। इसके बाद जब पद्मावती राजा से मिलने आई तो राजा उसे देखकर मूर्छित हो गया और पद्मावती उसे अचेत छोड़कर चली गई। जाते समय पद्मावती ने उसके हृदय पर चंदन से लिखा था कि उसे वह तब पा सकेगा जब वह सिंहलगढ़ पर चढ़कर आएगा। इसके बाद राजा ने तोते के बताए गुप्त मार्ग से सिंहलगढ़ में प्रवेश किया। यह सूचना मिलने पर गंधर्वसेन ने रतनसिंह को पकड़वाकर शूली पर चढ़ाने का आदेश दिया लेकिन जब हीरामन से रतनसिंह के बारे में पता चला तो उसने पद्मावती का विवाह उसके साथ कर दिया।

रतनसिंह छल से बंदी

रतनसिंह पहले से विवाहित था और उसकी रानी का नाम नागमती था। रतनसेन के विरह में व्याकुल नागमती ने अपनी विरहगाथा रतनसिंह के पास भिजवाई तो रतनसिंह पद्मावती को लेकर चित्तौड़ लौट आया। यहां उसके दरबार में राघवचेतन नाम का एक तांत्रिक था जो असत्य भाषण के कारण रतनसिंह द्वारा निष्कासित होकर तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन की सेवा में चला गया था। उसने अलाउद्दीन से पद्मावती के सौंदर्य की बड़ी प्रशंसा की। अलाउद्दीन पद्मावती का सौंदर्य वर्णन सुनकर उसको पाने के लिए उत्सुक हो उठा और चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। लंबे समय तक चित्तौड़ पर घेरा डालने के बाद भी सफलता न मिलने पर उसने धोखे से रतनसिंह को बंदी करने का उपाय किया। उसने उसके पास संधि का संदेश भेजा, जिसे रतन सिंह राजपूत ने स्वीकार कर अलाउद्दीन को विदा करने के लिये गढ़ के बाहर निकला और अलाउद्दीन ने उसे बंदी बनाकर दिल्ली ले गया।

राजा रतनसिंह की मुक्ति

चित्तौड़ में पद्मावती पति को मुक्त कराने के लिए वह अपने सामंतों गोरा तथा बादल के घर गई। गोरा बादल ने रतनसिह को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया। उन्होंने सोलह सौ डोलियाँ सजाईं जिनके भीतर राजपूत सैनिकों को रखा और दिल्ली की ओर चल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने यह कहलाया कि पद्मावती अपनी चेरियों के साथ सुल्तान की सेवा में आई है। अंतिम बार अपने पति रतनसेन से मिलने के लिए आज्ञा चाहती है। सुल्तान ने आज्ञा दे दी। डोलियों में बैठे राजपूतों ने रतनसिंह राजपूत को बेड़ियों से मुक्त कराया और उसे लेकर निकल भागे। सुल्तानी सेना ने उनका पीछा किया किंतु रतन सिंह राजपूत सुरक्षित रूप में चित्तौड़ पहुंच ही गया।

राजा रतनसिंह की मौत

इतिहासकार बताते है कि जिस समय राजा रतनसिंह दिल्ली में बंदी था, कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पद्मावती के पास एक दूत भेजकर उससे प्रेमप्रस्ताव किया था। रतन सिंह राजपूत से मिलने पर जब पदमावती ने उसे यह घटना सुनाई, वह चित्तौड़ से निकल पड़ा और कुंभलनेर जा पहुंचा। वहां उसने देवपाल को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा। उस युद्ध में वह देवपाल से बुरी तरह आहत हुआ और यद्यपि वह उसको मारकर चित्तौड़ लौटा किंतु देवपाल से मिले घाव से घर पहुंचते ही मृत्यु हो गई। पद्मावती और नागमती ने उसके शव के साथ चितारोहण किया। अलाउद्दीन भी रतनसिंह राजपूत का पीछा करता हुआ चित्तौड़ पहुंचा लेकिन उसे पद्मावती की चिता की राख ही मिली।

Related Articles

Back to top button