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भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का ‘द योग इंस्टीट्यूट’ के शताब्दी समारोह के अवसर पर सम्बोधन

नई दिल्ली: भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई ने राजनीति, शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, अध्यात्म और समाज-कल्याण के क्षेत्रोंमें भी अग्रणी योगदान दिया है। ‘द योग इंस्टीट्यूट’, मुंबई ने भी इस महानगर की परंपरा के अनुरूप, महत्वपूर्णयोगदान दिया है।

  1. आधुनिक भारत में लोकतान्त्रिक जागरूकता के पितामह माने गए, बुद्धिजीवी देश-भक्त, दादा भाई नौरोजी केनिवास पर इस इंस्टीट्यूट की शुरुआत की गई थी। तब से लेकर आज तक, योग के प्रसार में सौ वर्षों की अनवरतसेवा सम्पन्न करने के लिए, इस संस्थान से जुड़े सभी व्यक्ति प्रशंसा के पात्र हैं। यह खुशी की बात है कि अपनेयोगदान को आगे बढ़ाते हुए, यह संस्थान, हंसा जी के निर्देशन में, योग एवं समाज-कल्याण के क्षेत्र मेंउल्लेखनीय कार्य कर रहा है।
  2. आरंभ से ही ‘द योग इंस्टीट्यूट’ ने सामान्य घरेलू जीवन जीने वाले लोगों के लिए योग को सुलभ कराया है।महिलाओं के लिए उपयुक्त योगासनों पर 1934 में ही, इस संस्थान द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित की गई थी। इसीप्रकार, स्कूली बच्चों एवं दिव्यांग बच्चों के लिए और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष योग-पद्धतियों की शिक्षा दीजाती है। मुझे बताया गया है कि आपके संस्थान ने ट्रक चालकों की स्पाइन से जुड़ी तकलीफ को कम करने के लिए‘ट्रकासन विकसित किया है। मुझे जानकारी मिली है कि रोज लगभग दो हजार लोग इस संस्थान में आकर आपकीसेवाओं का लाभ उठाते हैं। मुंबई और आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के दौड़-भाग और तनाव भरे जीवनमें, संतुलन लाने के लिए योग-शिक्षा बहुत उपयोगी है।

  1. हम सभी जानते हैं कि एक सौ तिरानबे सदस्य-देशों की सहमति के साथ, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, प्रतिवर्ष ‘21 जून’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया था।अपने संकल्प में संयुक्त राष्ट्रमहासभा ने यह स्पष्ट किया था कि योगाभ्यास पूरे विश्व की जनसंख्या के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा। राष्ट्र-संघ ने समस्त विश्व को स्वस्थ बनाने की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया है।सन2015 से,‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के दिन, अधिकांश देशों में योगाभ्यास के आयोजन किए जाते हैं। मेरे विचारसे योग, भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण उदाहरण है।योग, आज पूरी मानवता की साझाधरोहर बन चुका है।
  2. इस वर्ष 21 जून को मनाए गए चौथे ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के दिन मैं सूरीनाम में था। मैंने सूरीनाम केराष्ट्रपति तथा वहाँ बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों के साथ योगाभ्यास किया। दो राष्ट्राध्यक्षों द्वारा एक साथयोगाभ्यास करने और ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने का वह अनोखा और ऐतिहासिक अवसर था। आज यहाँमंच पर आसीन स्वामी भारत भूषण जी ने ही वहाँ पर योगाभ्यास का संचालन कराया था।
  3. योग की अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता के अनेक प्रभावशाली उदाहरण हैं। इस वर्ष मार्च में सऊदी अरब की युवती, सुश्रीनौफ अल मरवाई को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनके ‘अरब योग फाउंडेशन’ के केंद्र आज सऊदी अरब केलगभग हर शहर में सक्रिय हैं। चीनी मूल की अमेरिकी नागरिक सुश्री चांग ह्वे लान ने चीन और अमेरिका में योगकी लोकप्रियता को नए आयाम दिए हैं। उन्हें वर्ष 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। ‘योग फेडरेशन ऑफयूरोप’ के अध्यक्ष, सर्बिया के श्री प्रेदराग निकिच ने यूरोप के अनेक बड़े शहरों में योग का प्रचार-प्रसार किया है।उन्हें भीवर्ष 2016 में पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। इस प्रकार पूरे विश्व में योग के प्रति उत्साह दिखाई दे रहाहै।
  4. ‘योग’ का अर्थ है ‘जोड़ना’। योग का अभ्यास व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा को जोड़ता है और स्वस्थ बनाताहै। इसी प्रकार, यह एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से, एक समुदाय को दूसरे समुदाय से और एक देश को दूसरे देशसे जोड़ सकता है।योग के पीछे जो सोच है, उसके अनुसार सारा संसार एक ही परिवार है जिसे हम सब ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’ कहते हैं।
  5. भारत की पहल पर,योग के प्रति विश्व समुदाय का सम्मान बढ़ा है। अतः इस क्षेत्र में हमारी ज़िम्मेदारी और भी बढ़जाती है। योग की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण कई ऐसे केंद्र भी सक्रिय हो गए हैं जिनमें योग-दर्शन तथायोगाभ्यास- पद्धति के बारे में समुचित ज्ञान और श्रद्धा का अभाव है। अतः योग-पद्धति को सही और सरल तरीकों सेजन-सुलभ बनाना योग से जुड़े अच्छे संस्थानों का दायित्व है।सबको मिलकर यह सुनिश्चित करना है कि योग केभली-भांति प्रशिक्षित ट्रेनर्स देश-विदेश में उपलब्ध हों।
  6. योग की वैज्ञानिकता के कारण इसका प्रभाव बढ़ रहा है। बहुत से लोगों को स्मरण होगा किभारत के पहले अन्तरिक्षयात्री राकेश शर्मा ने स्पेस-सिकनेस से बचाव के लिए अन्तरिक्ष यान में योगाभ्यास किया था। ‘इन्टरनेशनल स्पेसस्टेशन’ के अन्तरिक्ष यात्रियों ने भी योगाभ्यास किया था।
  7. योग की शिक्षा किसी संप्रदाय या पंथ से जुड़ी नहीं है।कुछ लोग, भ्रांति-वश योग को संप्रदाय से जोड़ते हैं। परंतु ऐसाबिलकुल नहीं है। योग तो स्वस्थ जीवन जीने का एक रास्ता है,जिसे अपनाने से मनुष्य के शरीर, मन, और पूरेव्यक्तित्व को लाभ मिलता है।डॉक्टर, सेहत सुधारने के लिए सवेरे टहलने और व्यायाम करने की सलाह देते हैं।लोग डॉक्टर की सलाह के मुताबिक जीवन-चर्या भी अपनाते हैं। उसी तरह योग भी एक स्वास्थ्य-प्रद पद्धति है। जबव्यक्ति स्वस्थ रहता है तो परिवार स्वस्थ रहता है। जब परिवार और समाज स्वस्थ रहते हैं तो देश स्वस्थ रहता है।सभी देशों के स्वास्थ्य के आधार पर पूरा विश्व स्वस्थ-जीवनका लाभ ले सकता है। ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ कीहमारी सोच का यही लक्ष्य है कि दुनिया के सभी लोग, स्वस्थ और रोग-मुक्त रहें। इस सोच को साकार करने मेंयोग का रास्ता बहुत उपयोगी है।
  8. Prevention is better than cure की नीति अधिक प्रभावी है, यह सभी मानते हैं। Prevention के लिएयोग बहुत उपयोगी माना जाता है।योगाभ्यास करने से हर व्यक्ति की इम्यूनिटी बढ़ती है। योग के अनेक प्रशिक्षक, प्राणायाम एवं योगासनों की उपयोगिता बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि किस प्रक्रिया को करने से किन-किन रोगोंका प्रतिरोध हो सकता है। आजकल, जीवन-चर्या से जुड़ी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। एक आकलन के अनुसार, भारत मेंबीस वर्ष से अधिक आयु-वर्ग की,लगभग एक चौथाई से अधिक आबादी हाई-ब्लड-प्रेशर से प्रभावित है। लगभगसाढ़े सात प्रतिशत आबादी डाइबिटीज़ से ग्रस्त है। ऐसी बीमारियों की रोकथाम में भी योग चिकित्सा को उपयोगीमाना जाता है।
  9. भारत में पंद्रह वर्ष से अधिक आयु की लगभग दो प्रतिशत आबादी दमा से प्रभावित है। इसके अलावा दमा सेप्रभावित बच्चों की भी बहुत बड़ी संख्या है। प्राणायाम और योग का बचपन से ही अभ्यास करने से बच्चों के फेफड़ेमजबूत होते हैं। इससे, वे दमा तथा अन्य कई बीमारियों से मुक्त रहते हैं। साथ ही, उनकी ऊर्जा और सक्रियता कास्तर भी अच्छा रहता है। योगासन और प्राणायाम से एकाग्रता भी बढ़ती है। स्कूलों और कॉलेजों में योगाभ्यासकराने से हमारे बच्चों और युवाओं के समग्र विकास में बहुत सहायता मिल सकती है।
  10. भविष्य के इतिहासकारों के लिए, अमेरिका के अटलांटा में स्थित ‘ओगलथोर्प यूनिवर्सिटी’ में सन 1940 से एक‘टाइम कैप्सूल’ रखा हुआ है। इसके पीछे यह सोच है कि छ: हजार वर्षों के बाद जब इसे खोला जाएगा तब, अध्ययन-कर्ताओं को बीसवीं सदी की मानव सभ्यता के विषय में जानकारी उपलब्ध रहेगी। इस ‘टाइम कैप्सूल’ मेंजो पुस्तकें चुनकर रखी गई हैं, उनमें ‘द योग इंस्टीट्यूट’ द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक भी शामिल है। यह तथ्यइसलिए महत्वपूर्ण है कि पूरी मानवता से जुड़े ज्ञान के इस संग्रह में योग को शामिल किया गया, और योग केविषय पर, इस संस्थान की पुस्तक को चुना गया।
  11. इस ऐतिहासिक संस्थान के शताब्दी समारोह के अवसर पर मैं एक बार फिर ‘द योग इंस्टीट्यूट’ से जुड़े प्रत्येकव्यक्ति को बधाई देता हूँ। मुझे विश्वास है कि आप सभी योग के प्रचार-प्रसार तथा जन-कल्याण के अपने प्रकल्पोंको निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे।

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