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महत्वकांक्षी योजना नहीं चढ़ी परवान, फाइलों में कैद हुईं प्लास्टिक की सड़कें

देहरादून : इंडियन रोड कांग्रेस (आइआरसी) के सख्त आदेशों के बावजूद राज्य में प्लास्टिक से बनने वाली सड़क की योजना चार साल से परवान नहीं चढ़ पाई है। दून में ट्रायल को छोड़ राज्य के किसी भी जिले में इस महात्वाकांक्षी योजना की शुरुआत तक नहीं की गई है। जिससे अफसरों के बीच जिम्मेदारी, जागरूकता और समन्वय का अभाव साफ नजर आता है।

वर्ष 2013 में आइआरसी ने देशभर के सड़क निर्माण विभागों को गाइड लाइन जारी करते हुए बेकार प्लास्टिक से सड़क बनाने के आदेश दिए थे। हिमाचल समेत कई राज्यों में इसका सफल परीक्षण भी हुआ। दो साल पहले उत्तराखंड में इसकी शुरुआत दून से हुई। लोनिवि के प्रांतीय खंड डिविजन ने कनक चौक से सीडीओ ऑफिस, सहसपुर से लगी दो सड़कों पर इसका सफल ट्रायल किया। मगर, इसके बाद योजना पर आगे काम नहीं हुआ। दून के अन्य डिविजन और राज्य के किसी भी जिले में इस योजना पर काम नहीं हुआ है।

इसके पीछे अफसरों का कहना है कि नगर निकायों, एनजीओ और अन्य माध्यम से कीमत चुकाने के बाद भी प्लास्टिक नहीं मिल रहा है। इसके अलावा मशीन लगाने, संचालन करने और बजट की कमी भी योजना को आगे बढ़ाने में आड़े आ रही है। जबकि प्लास्टिक की सड़कें राज्य में कचरा निस्तारण, पर्यावरण संरक्षण, कम बजट में मजबूत सड़क तैयार करने में महत्वपूर्ण हैं। चारकोल में करीब 10 फीसद प्लास्टिक मिलाकर इससे बनने वाली सड़कों की उम्र भी ज्यादा होने का दावा विशेषज्ञों ने किया है। लेकिन लोनिवि, नगर निगम, जिला प्रशासन समेत अन्य जिम्मेदार विभाग इस योजना को आगे बढ़ाने में लापरवाह बने हुए हैं।

ऐसे बननी थी प्लास्टिक की सड़क 

नॉन डिग्रेविल प्लास्टिक कचरे को एकत्र कर मशीन से चिप्स तैयार किए जाने थे। इसके लिए दून में लोनिवि ने मशीन भी खरीद ली। चारकोल में करीब 10 फीसदी प्लास्टिक का मिश्रण होना था।

वहीं लोकनिर्माण विभाग ने एचके उप्रेती का कहना है कि दून में इस योजना का सफल ट्रायल हुआ है। बरसात के चलते इस पर काम रुका है। नवंबर से इस पर दोबारा से काम शुरू किया जाएगा। संचालन में जो दिक्कतें आ रही हैं, उनको दूर किया जाएगा।

राज्य के एनजीओ नही आए आगे 

पर्यावरण संरक्षण, प्लास्टिक कचरा निस्तारण जैसे कार्यक्रमों के नाम पर राज्य में कई एनजीओ काम कर रहे हैं। मगर, इस महत्वपूर्ण योजना के लिए कोई भी एनजीओ सामने नहीं आया है। यही नहीं कचरा उठाने में लाखों रुपये खर्च करने वाले निकाय प्लास्टिक कचरे से कमाई होने के बाद भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।

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