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सिस्टम की नाकामी से उत्तराखंड झेल रहा पलायन का दंश

देहरादून : उम्र के लिहाज से उत्तराखंड किशोरावस्था से युवावस्था की दहलीज में कदम रखने जा रहा है, लेकिन यह भी हकीकत है कि गुजरे 17 सालों में पलायन के दंश से पार पाने में सरकारें नाकाम ही रही हैं। हालांकि, मौजूदा सरकार ने अब ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया है, मगर इसकी राह में चुनौतियों की भरमार है। वजह यह कि पलायन की मार से पहाड़ तो कराह ही रहा, मैदानी क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। दोनों ही जगह पलायन के अलग-अलग कारण हैं। सूरतेहाल, आयोग की पहल तभी फलीभूत होगी, जब गांवों को लेकर सरकारी रवायत बदलेगी।

राज्यभर में पलायन के चलते 968 गांव भुतहा (घोस्ट विलेज) हुए हैं और एक हजार से अधिक गांवों में जनसंख्या 100 से भी कम रह गई है तो इसके पीछे सरकारों की अनदेखी ही है। सियासत दां की जुबां पर पलायन की पीड़ा तो रही, लेकिन सत्तासीन होते ही इसे भूलने की बीमारी से वे अछूते नहीं रहे। नतीजा, पलायन की रफ्तार थमने की बजाए और तेज होती चली गई। पौड़ी व अल्मोड़ा जिलों की ही बात करें तो यहां पलायन के चलते खंडहर में तब्दील हो चुके भुतहा गांवों की संख्या क्रमश: 331 व 105 है। अन्य पर्वतीय जिलों में घोस्ट विलेज की संख्या 13 से 88 के बीच है।

न सिर्फ पहाड़ी जिले, बल्कि मैदानी जिले भी पलायन का दंश झेल रहे हैं। हरिद्वार जिले के 94, नैनीताल के 44, देहरादून के 17 और ऊधमसिंहनगर जिले के 14 गांवों का घोस्ट विलेज के रूप में दर्ज होना इसे बयां करता है। साफ है कि पहाड़ और मैदान दोनों जगह पलायन के कारण भिन्न -भिन्न हैं। इसके लिए मूलभूत सुविधाओं के साथ ही शिक्षा व रोजगार का अभाव, विकास में स्थानीय जन की अनदेखी, विभागीय उदासीनता जैसे कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन असल वजह सरकारों की इन क्षेत्रों की जनाकांक्षाओं से दूरी बनाना ही रहा है।

रविवार को देहरादून में राज्य स्थापना दिवस समारोह के आगाज के मौके पर रैबार कार्यक्रम में भी पलायन का मसला पूरी गंभीरता से उठा। बात निकलकर आई कि पलायन थामने के लिए इसकी असल  वजह पकडऩी होगी। स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही विकास में गांव व जन की भागीदारी करनी होगी। इससे भी बड़ी बात ये कि गांवों में शिक्षा व रोजगार की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जाएं। हालांकि, मौजूदा सरकार ने पलायन की समस्या से निबटने पर ध्यान केंद्रित करने की बात तो कही है, लेकिन इसका स्वरूप क्या होगा यह भविष्य के गर्त में छिपा है।

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