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कोरोना वायरस: अब तक 3100 लोगों की मौत, जानिए कैसी है वो लैब जहां होती है इसकी जांच

चीन में बड़ा खतरा बन चुके कोरोना वायरस (Coronavirus) से भारत भी अछूता नहीं है. यहां केरल में ही अब तक इस संक्रमण के तीन केस आए हैं. तीनों ही मरीज फिलहाल सेहतमंद हैं. अब इस जानलेवा वायरस का कहर दिल्ली-एनसीआर से लेकर आगरा तक पहुंच चुका है. ऐसे में सरकार ने एहतियातन कई कदम उठाए हैं. इसी में एक है कोरोना की जांच के लिए लैब्स का बनाया जाना. जानिए, देश कोरोना से निपटने के लिए कितना तैयार है.

कोरोना के ताजे आंकड़े
आंकड़ों पर प्रामाणिक जानकारी देने वाली वेबसाइट worldometers के अनुसार अब तक कोरोना के कुल रिपोर्टेड मामले 90,932 हैं, जिनमें 3,119 मौतें हो चुकी हैं. हालांकि मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, उसमें भी काफी सारे मामले अनरिपोर्टेड माने जा रहे हैं. बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही अलर्ट हो चुकी हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इसपर जनता को न घबराने और कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी है. कई राज्यों के बड़े-मंझोले शहरों के अस्पतालों में कोरोना वायरस की जांच के लिए लैब बनाए गए हैं. फिलहाल कुल 15 प्रयोगशालाओं में इस संक्रमण की जांच की जा रही है. देखें सूची-
नेशनल इंटस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे- एपेक्स लैब
बैंगलोर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, बंगलुरुएनआईवी बैंगलोर फील्ड यूनिट, बंगलुरु
अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
किंग इंस्टीट्यूट ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन एंड रिसर्च, गिंडी, चेन्नई
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी फील्ड यूनिट, केरल
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉलरा एंड एंटेरिक डिसीज, कोलकाता
सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज, जयपुर
कस्तूरबा हॉस्पिटल फॉर इंफेक्शन डिसीज, मुंबई
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ
गांधी मेडिकल कॉलेज, सिकंदराबाद, तेलंगाना
इंदिरा गांधी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, नागपुर
बीजे मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद
गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज, गुवाहाटी
नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल, नई दिल्ली

ये है सबसे प्रमुख लैब
वैसे सारी लैब्स में पुणे के Indian Council of Medical Research-National Institute of Virology (ICMR-NIV) को सबसे प्रमुख माना जा रहा है, जहां व्यापक स्तर पर ये जांच की जा रही है. दरअसल ये WHO (World Health Organisation) द्वारा दुनियाभर में चिन्हित की गई उन 15 लैब्स में से है जहां दुनियाभर की रिपोर्ट्स की जांच हो रही है और जो सबसे प्रामाणिक मानी जाती है.

ये लैब ग्लोबल नेटवर्क का हिस्सा है जो किसी भी ऐसी बीमारी की जांच और उसके रिसर्च पर काम करता है. पुणे की इस लैब में मालदीव, अफगानिस्तान और भूटान से न केवल सैंपल लिए जा रहे हैं, बल्कि उन्हें तकनीकी सपोर्ट भी दिया जा रहा है.

इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस लैब की सुविधाएं कितनी उच्चस्तरीय हैं. इसके अलावा दिल्ली के एम्स अस्पताल में भी अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त लैब है, जहां न केवल स्थानीय, बल्कि देशभर से मरीज आते हैं. यहां कैंसर और किसी भी अलग बीमारी की जांच और इलाज पर खासा जोर दिया जाता है.

ऐसे हो रहा है काम
सरकार कई चरणों में काम कर रही है ताकि प्राथमिक स्तर पर ही बीमारी को पकड़ा जा सके. इसके लिए सभी हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर भी बाहर से आने वाले मरीजों या संदिग्धों की जांच की जा रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में पृथक वार्ड बनाए गए हैं.

सर्दी-खांसी या बुखार से पीड़ित मरीजों को अलग से देखा जा रहा है और संदिग्ध लगने पर उनकी अलग से जांच की जा रही है. इसके लिए उन्हें अस्पतालों में अलग वार्ड में पूरी तरह से आइसोलेशन में रखा जाता है. इस कमरे में मास्क और ग्लव्स से लैस हेल्थ केयर प्रोवाइडर ही भीतर आ सकते हैं, किसी रिश्तेदार या दोस्त को मिलने की इजाजत नहीं होती है.

अस्पताल में इस वार्ड को लगातार सैनेटाइज किया जाता है और यहां के टॉयलेट को भी अस्पताल स्टाफ तक इस्तेमाल नहीं कर सकता.

इनक्यूबेशन और आइसोलेशन
हालांकि कोरोना वायरस के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि इसके लक्षण साधारण सर्दी-बुखार की तरह ही होते हैं और लंबे वक्त तक एक्सपोजर के बाद भी दिखाई नहीं देते हैं. मरीज के वायरस से संक्रमित स्वस्थ व्यक्ति में भी ये सामने आने में 24 दिनों का वक्त ले सकते हैं.

वैसे Centers for Disease Control and Prevention (CDC) का मानना है कि ये इनक्यूबेशन पीरियड 2 दिनों से लेकर 14 दिनों तक हो सकता है लेकिन कई मरीजों में ये 24 दिनों बाद भी दिखाई दिया. यही वजह है कि भारत सरकार मरीजों को लेकर बहुत ज्यादा सर्तकता बरत रही है.

पहले संदिग्ध मरीजों का सैंपल लेकर उसकी जांच के लिए भेजा जाता है और तब तक उन्हें अस्पताल के अलग वार्ड में ही रखा जाता है. सैंपल निगेटिव आने के बाद भी उन्हें होम क्वेरेंटाइन या सेल्फ क्वेरेंटाइन में रहने की सलाह दी जाती है यानी घर लौटकर भी कुछ दिनों के अलग-थलग रहना और लक्षणों पर गौर करना. अगर स्वास्थ्य में थोड़ा भी फर्क हो तो हेल्थ केयर प्रोवाइडर दोबारा आपसे संपर्क करते हैं और दोबारा जांच की जाती है. Source News18

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