देश-विदेश

ट्राइफेड के मौजूदा उपायों से आदिवासी महिलाओं का सशक्तिकरण

आदिवासी आबादी को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ट्राइफेड की ओर से अपने अभियान में लागू किए जा रहे उपायों पर विशेष ध्यान देने से आदिवासी महिलाओं का सशक्तिकरण और कौशल विकास हो रहा है। आदिवासी महिलाओं के जीवन और आजीविका में सुधार लाने के लिए शुरू किए गए विभिन्न उपायों में, वन धन योजना अन्य से बिल्कुल ही अलग है, क्योंकि यह प्रभाव डालने में सक्षम है।

वन धन विकास केंद्र/ट्राइबल स्टार्ट-अप्स, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और एमएफपी के लिए वैल्यू चेन के विकास के माध्यम से लघु वनोत्पाद (एमएफपी) के विपणन की मशीनरी’ का ही एक घटक है, जो परिवर्तन का एक प्रकाश स्तंभ बनकर सामने है और आदिवासी के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर डाला है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। वन धन योजना ने एमएसपी को अच्छी तरह से आगे बढ़ाया है, क्योंकि यह जनजातीय संग्रहकर्ताओं, वनों पर निर्भर लोगों और घर पर काम करने वाले आदिवासी कारीगरों के लिए रोजगार देने वाले एक स्रोत के रूप में उभरा है। कार्यक्रम की खूबसूरती यह है कि यह आदिवासी संग्रहकर्ताओं के प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचे की सहायता, ऋण तक समय पर पहुंच के साथ-साथ एमएफपी में वैल्यू चेन का विकास सुनिश्चित करती है। इसके अलावा इन मूल्य वर्धित उत्पादों की बिक्री से प्राप्त होने वाली आमदनी सीधे आदिवासियों को मिलती है। मूल्यवर्धित उत्पादों को बड़े पैमाने पर पैकेजिंग और विपणन से भी लाभ मिलता है, जिसे ये आदिवासी उद्यम उपलब्ध कराते हैं। देश भर में 1700 से ज्यादा आदिवासी उद्यम स्थापित किए जा चुके हैं, जो इसके तहत लगभग 5.26 लाख आदिवासी संग्रहकर्ताओं को रोजगार उपलब्ध कराते हैं। जो बात इस योजना को सबसे महत्वपूर्ण बनाती है, वह यह है कि लाभ पाने वाले इन आदिवासी संग्रहकर्ताओं में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं।

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चैंपियन राज्य मणिपुर एक उदाहरण है, जहां ये स्टार्ट-अप्स बड़ी संख्या में हैं, जहां 77 वन धन विकास केंद्रों के माध्यम से 25,000 से अधिक आदिवासी संग्रहकर्ता, ज्यादातर महिलाएं, लाभान्वित हुए हैं। एक राज्यव्यापी दृष्टिकोण अपनाते हुए, पहले समर्थन कार्यक्रमों और समूह कार्यशालाओं को इन महिला संग्रहकर्ताओं को आगे लाने और संवेदनशील बनाने के लिए आयोजित किया गया था। उसके बाद, आदिवासी संग्रहकर्ताओं को संबंधित वन धन विकास केंद्रों में प्रशिक्षित किया गया कि कैसे एमएफपी में मूल्य वर्धन किया जा सकता है। उखरुल वीडीवीके के मामले में, महिला संग्रहकर्ताओं को आंवले का रस, एकत्रित करौंदे से कैंडी व जैम बनाना और इसके साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के लिए जरूरी मानकों के अनुपालन के बारे में प्रशिक्षित किया गया। उपकरण और अन्य जरूरी उपकरण भी दिये गए हैं और मूल्य संवर्धन पूरे उत्साह से शुरू हो चुका है।

सितंबर 2019 से, मणिपुर के वन धन केंद्रों ने 49.1 लाख रुपये से ज्यादा मूल्य के बराबर एमएफपी की बिक्री दर्ज की है। इन स्थापित किए गए 77 केंद्रों की ओर से उत्कृष्ट खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता मानकों को अपनाया गया है, आंवला जूस, इमली आंवला कैंडी और बेर जैम जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों की आकर्षक पैकेजिंग और इन उत्पादों की नवाचार युक्त ब्रांडिंग और मार्केटिंग बिल्कुल ही अलग है। इन उत्पादों की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए जिलों में मोबाइल वैन सेवा भी शुरू की गई है और यहां पर यह दर्ज करना उल्लेखनीय है कि इससे लाभान्वित होने वाले आदिवासी संग्रहकर्ताओं में सबसे ज्यादा महिलाएं शामिल हैं।

 

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आदिवासियों, और खास तौर पर महिलाओं के प्रशिक्षण और आजीविका में सुधारने के लिए जारी ट्राइफेड के दूसरे उपायों में मध्य प्रदेश के बड़वानी में काम चल रहा है, जहां पर दिसंबर 2020 में बाघ प्रिंट के प्रशिक्षण का दूसरा बैच शुरू हो चुका है। माहेश्वरी और चंदेरी की पारंपरिक बुनाई का प्रशिक्षण बहुत जल्द शुरू होने वाला है।

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बड़वानी परियोजना में, जो ट्राइफेड की ओर से जिला प्रशासन के माध्यम से लागू है और भारत पेट्रोलियम की ओर से अपने सीएसआर कोटा के तहत वित्तपोषित है, 200 से अधिक आदिवासी महिला लाभार्थियों की पहचान की गई है। इन स्थानीय आदिवासियों को बाघ प्रिंट, माहेश्वरी और चंदेरी पारंपरिक बुनाई का प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वे नए कौशल को सीखें और अपनी आजीविका बढ़ाने के लिए उनका उपयोग करें। एक वर्ष की अवधि में लगभग 1000 आदिवासी महिलाओं को बाघ प्रिंट, चंदेरी और महेश्वरी शैलियों में प्रशिक्षित करने के लिए कुल 1.88 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

बाघ प्रिंट के लिए आदिवासी लाभार्थियों का दूसरा बैच बाघ परिवार के पद्मश्री यूसुफ खत्री की ओर प्रशिक्षित किया जा रहा है, जो बाघ प्रिंट के प्रमुख जानकार हैं। खत्री परिवार इस शिल्प परंपरा का अग्रदूत है और इसे पीढ़ियों से संजोए चला आ रहा है। श्री खत्री से पहले ही दो बैच को बाघ प्रिंट का प्रशिक्षण देने के लिए अनुरोध किया गया था। चुनिंदा जनजातीय लाभार्थियों वाले पहले बैच ने फरवरी 2020 में रेहगुन गांव में अपना प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से यह बीच में बंद हो गया। इसे जुलाई 2020 में दोबारा शुरू किया गया। बाघ प्रिंट के प्रशिक्षण का दूसरा बैच दिसंबर 2020 में शुरू किया गया। माहेश्वरी और चंदेरी शैलियों के प्रशिक्षण के लिए मुख्य प्रशिक्षकों का चयन हो चुका है।

इसके अलावा, आदिवासी महिला कारीगरों को पूरे देश में ज्यादा से ज्यादा संपर्क में लाने और उनके कौशल व उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों तक लाने के लिए, ट्रायफेड उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए रूमा देवी और रीना ढाका जैसे प्रसिद्ध डिजाइनर्स के साथ भी समझौता कर रहा है।

कारीगरों, जो मुख्य कारीगरों से सीखकर अपना हुनर निखारेंगे, के इन समूहों के बनाए हस्तशिल्पों और उत्पादों को ट्राइफेड खरीद लेगा और उन्हें देश भर के अपने सभी ट्राइब्स इंडिया आउटलेट्स पर रखेगा और बिक्री करेगा। इनकी ट्राइब्स इंडिया के ई-मार्केट प्लेटफॉर्म पर भी बिक्री की जाएगी, जहां पर कारीगर भी अपने उत्पादों को अपलोड और उनकी बिक्री कर सकते हैं। प्रसिद्ध भारतीय मुक्केबाज और राजनेता मैरी कॉम को ट्राइब्स इंडिया से ब्रांड एंबेस्डर के रूप में जोड़ा गया है और वे आदिवासी उत्पादों और योजनाओं को बढ़ावा दे रही हैं।

ये ट्राइफेड की ओर से शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों में से सिर्फ दो उदाहरण हैं, जो आदिवासी आबादी, खास तौर पर आदिवासी महिलाओं की आय और आजीविका में सुधार लाने में लगे हैं। यह सही ही कहा गया है – अगर आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं, तो आप केवल एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं, तो आप एक राष्ट्र को शिक्षित करते हैं। इसी वजह से ट्राइफेड अपने विभिन्न कार्यक्रमों में आदिवासी महिलाओं के शिक्षण, प्रशिक्षण और सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दे रहा है, ताकि यह पूरे आदिवासी समुदाय तक सहायता पहुंचाने की अगुवाई कर सके। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर टीम ट्राइफेड सभी को बधाई देती है।

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