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विशेषज्ञों ने विकार्बनीकरण और हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकियों के संवर्द्धन में अपनाए गए नवाचारों के हालिया रुझानों पर चर्चा की

भारत और जापान के जाने माने विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने ‘डीकार्बोनाइजेशन : एक्सप्लोरिंग द हाइड्रोजन प्रॉस्पेक्ट्स एंड इनोवेटिव टेक्नोलॉजीज’ विषय पर आयोजित भारत-जापान वेबिनार में विकार्बनीकरण (डीकार्बोनाइजेशन) और हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकियों के संवर्द्धन के क्षेत्र में अपनाए गए नवीनतम नवाचारों, रुझानों, चिंताओं एवं समाधानों पर चर्चा की।

इस अवसर पर बोलते हुए, जापान में भारत के राजदूत माननीय श्री संजय कुमार वर्मा ने कहा कि भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 38 प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है। अभी यह क्षमता लगभग 136 गीगा वाट की है और हमें अगले वर्ष तक 175 गीगावॉट और 2030 तक 450 गीगावॉट का लक्ष्य हासिल कर लेने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक स्वच्छ ईंधन के रूप में हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

उन्होंने कहा कि “जापान हाइड्रोजन संबंधी एक बुनियादी रणनीति तैयार करने वाला पहला देश है। जापान की पांचवीं ऊर्जा योजना में हाइड्रोजन को शामिल किया गया है। वहां अनुसंधान एवं विकास और व्यावसायीकरण के लिए एक अच्छा इकोसिस्टम है, जिसका उपयोग दोनों देशों के वैज्ञानिक और वाणिज्यिक समुदायों द्वारा किया जा सकता है। भारत और जापान के बीच रणनीतिक संबंध हैं और भविष्य में इस संबंध को हाइड्रोजन (H2) और उसके उपयोग से संबंधित ज्ञान के बाधारहित आदान-प्रदान को सक्षम बनाते हुए एक रणनीतिक साझेदारी में बदल देना है।”

नई दिल्ली स्थित जापानी दूतावास के आर्थिक अनुभाग के प्रमुख श्री मियामोतो शिंगो ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि जापान में टोयोटा जैसी कंपनियों ने पहले ही व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हाइड्रोजन-संचालित वाहनों का परिचालन शुरू कर दिया है और यह बिजली से चलने वाले एक साधारण वाहन की तुलना में बहुत बेहतर है।

उन्होंने कहा कि “भारत और जापान पर्यावरण के अनुकूल हाइड्रोजन के उत्पादन के क्षेत्र में साथ मिलकर काम करने की बेहतर स्थिति में हैं। उदाहरण के लिए, जैव ईंधन के क्षेत्र में दोनों देशों के आपसी सहयोग करने की बहुत बड़ी संभावना है।”

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों से 450 गीगावॉट बिजली उत्पादन हासिल करने के भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि “इसका मतलब यह है कि भारत को बैटरियों के उलट ऊर्जा भंडारण के हरित विकल्पों पर गौर करना होगा और निश्चित रूप से हाइड्रोजन एक बेहतरीन विकल्प है।”

उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने हाइड्रोजन के उत्पादन, वितरण, भंडारण की लागत को कम करने के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, जो हाइड्रोजन उत्पादन के लिए उपलब्ध बायोमास, कृषि अपशिष्ट आदि जैसे फीडस्टॉक में विविधता लाते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने पिछले कुछ वर्षों में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाली हाइड्रोजन के उत्पादन, वितरण और भंडारण से संबंधित लगभग 30 परियोजनाओं को समर्थन दिया है, जो पानी के अणुओं को अलग करके हाइड्रोजन का उत्पादन करने जैसे नए उत्प्रेरकों की तलाश में हैं।

इस वेबिनार का आयोजन 19 अप्रैल 2021 को जापान स्थित भारतीय दूतावास, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के साथ-साथ द इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एनवायरनमेंटल स्ट्रैटेजीज़ (आईजीईएस), जापान और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी), भारत द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस कार्यक्रम ने इस क्षेत्र से जुड़े दोनों देशों के कई विशेषज्ञों को एक मंच पर साथ लाया।

जापान के न्यू एनर्जी एंड इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन (नेडो) के फ्यूल सेल और हाइड्रोजन ग्रुप के महाप्रबंधक श्री ओहीरा इजी ने 2050 में कार्बन न्यूट्रलिटी हासिल करने के जरिए एक हाइड्रोजन सोसाइटी और ग्रीन ग्रोथ रणनीति को अमल में लाने से जुड़े नेडो के दृष्टिकोण पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) की महानिदेशक डॉ. विभा धवन ने कहा कि “भारत के प्रमुख क्षेत्रों में हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भविष्य की मांग को देखते हुए, भारत को हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रोलाइजर के निर्माण में सक्रिय रूप से जुट जाना चाहिए। दोनों सरकारों के बीच एक बेहतर पार-क्षेत्रीय समन्वय हाइड्रोजन ईंधन से जुड़ी अर्थव्यवस्था के लाभों को पाने में मदद कर सकता है। जोखिम-बंटवारे और कंपनी स्तर पर बोझ को कम करने में समर्थ होते हुए प्रमुख उद्योगों को विकार्बनीकरण (डीकार्बोनाइजेशन) की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए एक साथ आने की जरूरत है।”

जापान के द इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एनवायरनमेंटल स्ट्रैटेजीज़ (आईजीईएस) के अध्यक्ष प्रोफेसर काजुहिको टेकूची, जापान सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑफिस के निदेशक श्री सुगिमोटो रयूजो, जापान सरकार के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय (एमईटीआई) के एजेंसी फॉर नेचुरल रिसोर्सेज एंड एनर्जी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रभाग की डिप्टी डायरेक्टर सुश्री अराकी मई, भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के वैज्ञानिक-जी डॉ. पी. सी. मैथानी, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की वैज्ञानिक – एफ डॉ. संगीता कस्तुरे जैसे विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन के उच्च विकार्बनीकरण (डीकार्बोनाइजेशन) की दिशा में अधिक सहयोग करने और इस लक्ष्य को साकार करने के प्रयासों में तेजी लाने के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किए। टोक्यो स्थित भारतीय दूतावास में भारत सरकार की सलाहकार (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) डॉ. उषा दीक्षित भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थीं।

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