देश-विदेश

‘ज्ञानवृत्ति’ हिंदी में मौलिक शोध को बढ़ावा की अनोखी पहल

नई दिल्ली: हिंदी भाषा में मौलिक शोध को बढ़ावा देने के लिए दैनिक जागरण द्वारा ‘हिंदी हैं हम’ मुहीम के अंतर्गत ‘ज्ञानवृत्ति’ के दूसरे संस्करण के लिए आवेदकों के ऑनलाइन आवेदन  आरम्भ हो गये हैं. दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति हिंदी में मौलिकशोध को बढ़ावा देने का एक उपक्रम है. इसके तहत सामाजिक, आर्थिक, कूटनीति, इतिहास और राजनीतिक आदि विषयों पर स्तरीय शोध को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है.

दरअसल लंबे समय से हिंदी में यह बहस जारी है कि अपनी भाषा में शोध को कैसे बढ़ावा दिया जाए. इस बहस को अंजाम तक पहुंचाने के लिए और हिंदी में विभिन्न विषयों पर मौलिक लेखन के लिए ज्ञानवृत्ति देशभर के शोधार्थियों को आमंत्रित करता है. इसके अंतर्गत हिंदी में मौलिक लेखन करनेवालों को आमंत्रित किया जाता है। शोधार्थियों से अपेक्षा है कि  कि वो संबंधित विषय पर हजार शब्दों में एक सिनॉप्सिस भेजें। इस पर सम्मानित निर्णायक मंडल, मंथन कर विषय और शोधार्थी का चयनकरेंगे। चयनित विषय पर शोधार्थी को कम से कम छ: महीने और अधिकतम नौ महीने के लिए दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति दी जाती है. पिछले साल तीन शोधार्थियों को ज्ञानवृत्ति के तहत चुना गया था. आवेदन की अंतिम तिथि 31 जुलाई 2019 है औरआवेदक की उम्र 01 जनवरी 2019 को 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.

दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति निर्णायक मंडल सदस्यों में  बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल के प्रो. एस. एन. चौधरी दूसरे सदस्य डॉ. दरवेश गोपाल, प्रोफेसरराजनीति विज्ञान, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इसके अलावा चयन समिति मेंदैनिक जागरण संपादक मंडल भी मौजूद रहेगा। दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति में आवेदन करने के लिए और अपने शोध की रूपरेखा प्रस्तुत करने के लिए कृपया  पर WWW.JAGRANHINDI.IN लॉग इन करें। दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति के नियम और शर्तें भीइस बेवसाइट पर हैं।

प्रथम दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति के तीन विजेता  रहे, जिनमें इलाहाबाद की दीप्ति सामंत रे को उनके प्रस्तावित शोध ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना के भारत में वित्तीय समावेशन पर प्रभावों का समालोचनात्मक विश्लेषण’ पर शोध के लिए चुना गया था। दूसरी शोधार्थी लखनऊ की नाइश हसन थी  जिनके शोध का विषय था ‘भारत के मुस्लिम समुदाय में मुता विवाह, एक सामाजिक अध्ययन’। तीसरे शोधार्थी  बलिया के निर्मल कुमार पाण्डेय थे जिनके  शोध का विषय था ‘हिंदुत्व का राष्ट्रीयकरण बजरिए हिंदी हिंदू हिन्दुस्तान, औपनिवेशिक भारत में समुदायवादी पुनरुत्थान की राजनीति और भाषाई-धार्मिक-सास्कृतिक वैचारिकी का सुदृढ़ीकरण।’

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