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सिविल सेवकों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि शासन की पहुंच सबसे गरीब लोगों के दरवाजे तक हो: उपराष्ट्रपति

वितरण प्रणाली की खामियों को दूर करने की अपील करते हुए, उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडु ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सिविल सेवकों पर है कि शासन-प्रणाली हमारी आबादी के सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्ग के दरवाजे तक पहुंचे।

सिविल सेवकों को इस तथ्य को याद रखना चाहिए कि कल्याणकारी योजना और विकास पहल के कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से उनके लाभार्थियों की समृद्धि से बेहतर इनका कोई पैमाना नहीं है।नई दिल्ली स्थित आईआईपीए के 68वें स्थापना दिवस के अवसर पर आज पहला डॉ. राजेंद्र प्रसाद वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यान देते हुए उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि शासन का नागरिक-केंद्रित प्रतिमान कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण प्रणालियों पर टिका है। यह स्वीकार करते हुए कि इस तरह की प्रणाली को नागरिकों की बढ़ती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुकूल होने में सक्षम होना चाहिए, उन्होंने सार्वजनिक शासन-प्रणाली के जटिल कार्य के प्रमुख घटकों के रूप में समावेश, दक्षता, पारदर्शिता और ईमानदारी पर जोर दिया। उन्होंने आगे कहा, ’’इसलिए, सुशासन की कुछ परिभाषित विशेषताएं व्यापकता, निष्पक्षता, अखंडता, दक्षता और समानता हैं।’’

जरूरतमंदों और वंचितों के लिए प्रशासकों की अधिक पहुंच की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री नायडु ने कहा कि सिविल सेवकों को समाज के सभी वर्गों से लेकर अंतिम व्यक्ति तक नागरिकों को भारत की विकास गाथा लिखने में सक्रिय भागीदार के रूप में सहयोजित करना चाहिए।

लोकसेवा के अंतिम छोर तक वितरण के महत्व और प्रशासकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने प्रशासकों के नेतृत्व और प्रशासनिक दक्षताओं को बढ़ाने के लिए तकनीकी और प्रबंधकीय कौशल को सम्मानित करने को लेकर आईआईपीए की प्रशंसा की।
श्री नायडु ने कहा कि सिविल सेवकों को अपने कौशल को उन्नत करने, भारत के भीतर और देश के बाहर की सर्वोत्तम कार्य-प्रणालियों को अपनाने और बढ़ाने के लिए उदार होना चाहिए। उन्होंने कहा, ’’ तभी वे जमीन स्तर पर कार्यक्रमों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अभिनव व लीक से हटकर रणनीतियां बना सकते हैं और शासन व प्रशासन की जटिल चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।’’
भारत के लिए आईएमएफ के विकास के अनुमानों का हवाला देते हुए, श्री नायडु ने कहा कि वैश्विक महामारी के प्रभाव के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार, एक ’आत्मनिर्भर’ भारत के समावेशी विकास के वादे को पूरा करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत आज एक परिवर्तनकारी युग के शिखर पर खड़ा है जिसमें प्रत्येक नागरिक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का एक सशक्त उत्प्रेरक बनना चाहता है। सरकार के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने लोक प्रशासन के न्याय, नैतिकता और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित अधिक नागरिक केंद्रित होने की कामना की।

यह रेखांकित करते हुए कि देश की प्रगति और सुरक्षा के लिए एकता सर्वोपरि है, श्री नायडु ने भारत को गरीबी, अशिक्षा, भेदभाव, जातिवाद या क्षेत्रवाद से मुक्त बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय होने पर गर्व महसूस करना चाहिए।

 एक प्रतिष्ठित नेता बताते हुए, श्री नायडु ने कहा कि उन्होंने एक समृद्ध, एकीकृत और मजबूत भारत देखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा, ’’बाबू राजेंद्र प्रसाद की एक छात्र कार्यकर्ता से स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति तक की उल्लेखनीय यात्रा, देश और समाज के प्रति उनकी अदम्य क्षमता, संकल्प और प्रतिबद्धता की एक महान गाथा है।’’

उन्होंने कहा कि बाबू राजेंद्र प्रसाद ने जाति और पंथ की बेड़ियों से मुक्त एक सामंजस्यपूर्ण और समतावादी भारत का सपना देखा था। श्री नायडु ने उन्हें हमारी मातृभूमि का एक महान सपूत बताया, जिनका जीवन परोपकार, सत्य, सेवा और सादगी के गुणों से परिभाषित होता है। उन्होंने कहा कि आईआईपीए, प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श गतिविधियों के व्यापक परिदृश्य के माध्यम से कुशल, प्रभावी और नैतिक शासन के लिए एक वातावरण बनाने की मांग कर रहा है, इस प्रकार डॉ राजेंद्र प्रसाद की परिकल्पना को पूरा कर रहा है। उपराष्ट्रपति, जो आईआईपीए के पदेन अध्यक्ष हैं, ने वर्षों से नीति अभिविन्यास के साथ संयुक्त शैक्षणिक उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए संस्थान की सराहना की।

इस अवसर पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी व पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि आईआईपीए अपने अस्तित्व के पिछले 67 वर्षों में एक सेवानिवृत्त अधिकारी क्लब के रूप में लंबा सफर तय कर चुका है और अब यह क्षमता निर्माण के क्षेत्र में एक जीवंत और गतिशील संस्थान के रूप में परिणत हो गया है।

उन्होंने कहा कि आईआईपीए ठीक ढंग से काम कर रहा है और डिजिटल पाठ्यक्रम व प्रशिक्षण कार्यक्रम के अपने मिशन में तेजी से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि 2021-22 में आईआईपीए ने 69 डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम, 27 ऑफलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम और 30 से अधिक शोध अध्ययनों का संचालन किया।

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि आईआईपीए डीएआरपीजी और डीओपीटी का विजन /2047 दस्तावेज तैयार करने और इन मंत्रालयों को बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने में एक ज्ञान भागीदार है। उन्होंने कहा कि आईआईपीए क्षमता निर्माण आयोग (सीबीसी) के साथ मिलकर काम कर रहा है और आईजीओटी प्लेटफॉर्म के लिए पहले ही डिजिटल मॉड्यूल तैयार कर चुका है। उन्होंने कहा कि आईआईपीए ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए सिविल सेवा उम्मीदवारों की मदद करने की एक उल्लेखनीय पहल की है और प्रगति की पाठशाला कार्यक्रम के तहत उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की दिशा में काम कर रहा है।

डॉ जितेंद्र सिंह ने अपनी समापन टिप्पणी में कहा कि आईआईपीए के 68वें स्थापना दिवस पर यह स्मृति व्याख्यान वास्तव में आईआईपीए परिवार द्वारा एक बहुत अच्छी पहल है और संस्थान के सबसे महत्वपूर्ण संस्थापक डॉ राजेंद्र प्रसाद को एक यथोचित श्रद्धांजलि है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने आईआईपीए द्वारा प्रकाशित ’सरदार पटेल- बिल्डर आॅफ एस्पिरेशनल इंडिया’नामक पुस्तक का भी विमोचन किया। इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल और आईआईपीए के सदस्य, श्री शेखर दत्त, सदस्य सचिव, आईआईपीए, श्री एस एन त्रिपाठी, श्री अमिताभ रंजन, रजिस्ट्रार, संकाय सदस्य और पाठ्यक्रम प्रतिभागी उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति के भाषण का मूल पाठ

बहनों और भाइयों,
नमस्कार!
इस प्रतिष्ठित संस्थान के अध्यक्ष के रूप में मुझे आईआईपी के 68वें स्थापना दिवस के अवसर पर पहला डॉ. राजेंद्र प्रसाद वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यान देते हुए बहुत खुशी हो रही है। भारत में कोविड-19 महामारी की चुनौती समाप्त होने के और प्रतिबंधों में ढील दिए जाने पर मुझे आप सभी के साथ यहां आकर प्रसन्नता हो रही है। मुझे इस अवसर के लिए आईआईपीए को धन्यवाद देना चाहिए।

एक प्रतिष्ठित नेता, जिनकी कई मौकों पर महात्मा गांधी ने प्रशंसा की, स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति, भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक समृद्ध, एकीकृत और मजबूत भारत को देखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। एक छात्र कार्यकर्ता से स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति तक बाबू राजेंद्र प्रसाद की उल्लेखनीय यात्रा, देश और समाज के प्रति उनकी अदम्य क्षमता, संकल्प और प्रतिबद्धता की एक महान गाथा है। यह भारतीय राजनीति में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों का भी प्रतिबिंब है, जिसमें एक छात्र कार्यकर्ता राष्ट्र की सेवा करने के लिए अपनी तीव्र प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर भारत के पहले राष्ट्रपति बनने के लिए समय के साथ उठ खड़ा हुआ।

बाबू राजेंद्र प्रसाद एक दूरदर्शी नेता थे, जो एक मजबूत और समावेशी भारत को आकार देने में सिविल सेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते थे। देशभर में हमारे सिविल सेवक पिछले सात दशकों से डॉ. राजेंद्र प्रसाद की परिकल्पना को एक जीवंत वास्तविकता में आकार देने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इस राष्ट्रीय प्रयास में आईआईपीए ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

संस्थान की स्थापना 1954 में हुई और स्थापना के समय से संस्थान की यात्रा चर्चित रही है, जिसे शासन की बदलती जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होने के लिए चिह्नित किया गया है। आईआईपीए ने वर्षों से, आईआईपीए द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों और गतिविधियों की विस्तृत श्रृंखला में नीति अभिविन्यास के साथ युक्त शैक्षणिक उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा दिया है और मुझे यकीन है कि यह भारत के एकीकरण का सार है, प्रशासकों को सरदार पटेल की सलाह है कि उन्हें सेवा की भावना से निर्देशित किया जाना चाहिए।

संस्थान आज देश में शासन में सुधारों की शुरूआत करने में उत्प्रेरक के तौर पर कार्य करने के लिए सर्वश्रेष्ठ संस्थान है। यह अपनी गतिविधियों और सहयोग के माध्यम से ऐसे प्रभावी ढंग से काम कर सकता है और प्रतिष्ठित संकाय और प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों के एक बड़े निकाय द्वारा समर्थित है। आईआईपीए के 68 वें स्थापना दिवस के अवसर पर मैं लोक नीति और शासन में ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करने में इसके अथक प्रयासों की सराहना करना चाहता हूं।

बहनों और भाइयों,
लोक प्रशासन को न्याय, नैतिकता और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित ज्यादा नागरिक केंद्रित होना चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ’सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास, सब का प्रयास’ की परिकल्पना से प्रेरित भारत आज एक परिवर्तनकारी युग के शिखर पर खड़ा है जिसमें प्रत्येक नागरिक सामाजिक-आर्थिक बदलाव का एक सशक्त उत्प्रेरक बनना चाहता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ’ मिनिमम गवर्मेंट एंड मैक्सीमम गवर्नंस अर्थात न्यूनतम सरकार और अधिकतम अधिकार’ की अवधारणा के अनुरूप, भारत सरकार हमारे नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियां और कार्यक्रम तैयार कर रही है। वैश्विक महामारी के विनाशकारी भाव के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार एक ’आत्मनिर्भर’ भारत के समावेशी विकास की संभावना दर्शाती है। आईएमएफ ने भारत के लिए 2022 में 8.5 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है और यह एक स्वागत योग्य संकेत है।

आज, भारत सरकार का सामाजिक सुरक्षा दायरा पहले से कहीं अधिक व्यापक है, जिसमें समाज के सबसे जरूरतमंद वर्गों को शामिल किया गया है। सरकार के ’सु-राज’ या सुशासन के मॉडल के कई ठोस संकेतक हैं। उनमें से दुनिया में सबसे दूरगामी वित्तीय समावेशन पहल प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमडीवाई), कोविड -19 महामारी के दौरान संकटग्रस्त गरीबों की मदद करने के लिए लाई गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, सरकार का प्रमुख स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम आयुष्मान, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और कई अन्य शामिल हैं।

बहनों और भाइयों,
गरीबों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील, मजबूत, उत्तरदायी और सक्षम प्रशासन के सक्रिय सदस्य बनने के लिए सिविल सेवकों को प्रशिक्षित करने में आईआईपीए की भूमिका प्रशंसनीय है। जबकि एक लोक सेवक के नेतृत्व की प्रकृति सेवा में निहित है, सार्वजनिक सेवाओं का अंतिम छोर तक वितरण महत्वपूर्ण है और यहीं पर प्रशासक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित करने का आपका काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सिविल सेवकों और प्रशासकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वितरण प्रणाली में कमियों को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से दूर किया जाए। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सिविल सेवकों पर है कि शासन हमारी आबादी के सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्ग के दरवाजे तक पहुंचे। किसी भी विकास कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन का मानदंड उस सीमा तक है जहां तक यह सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और समाज के जरूरतमंद वर्गों के जीवन को बदल सकता है। सिविल सेवकों को इस तथ्य को याद रखना चाहिए कि कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से इसके लाभार्थियों की समृद्धि से बेहतर कल्याणकारी योजना और विकास पहल का कोई बेहतर पैमाना नहीं है।

अन्य बातों के अलावा, इस मिशन को पूरा करने के लिए प्रशासकों को जरूरतमंद और वंचितों के लिए अधिक सुलभ होने की आवश्यकता है। सिविल सेवकों को समाज के सभी वर्गों से लेकर अंतिम व्यक्ति तक नागरिकों को भारत के विकास की गाथा लिखने में सक्रिय भागीदार के रूप में शामिल करना चाहिए। ऐसा करके वे बाबू राजेंद्र प्रसाद के समृद्ध और समावेशी भारत के सपने को साकार करेंगे।

शासन का नागरिक-केंद्रित प्रतिमान कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण प्रणाली पर टिका है। ऐसी प्रणाली को नागरिकों की बढ़ती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुकूल खुद को ढालने में सक्षम होना चाहिए। समावेशिता, जवाबदेही, दक्षता, पारदर्शिता, निष्पक्षता और ईमानदारी लोक शासन के जटिल कार्य के प्रमुख पहलू हैं। इसलिए, सुशासन की कुछ परिभाषित विशेषताएं व्यापकता, निष्पक्षता, अखंडता, दक्षता और समानता हैं। मुझे शायद ही यह बताने आवश्यकता है कि सिविल सेवकों को अपने कौशल को उन्नत करने, भारत के भीतर और देश के बाहर की सर्वोत्तम कार्य-प्रणाली को अपनाने और उसे उन्न्त कापे के लिए उदार होना चाहिए। तभी वे जमीनी स्तर पर कार्यक्रमों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए प्रशासन और प्रशासन में जटिल चुनौतियों के लिए अभिनव, लीक से हटकर रणनीतियां बना सकते हैं और समाधानों तलाश सकते हैं।

प्रशासकों के नेतृत्व और प्रशासनिक दक्षताओं को बढ़ाने के लिए उनके तकनीकी प्रबंधकी कौशल को सम्मानित करने में आईआईपीए की भूमिका वास्तव में सराहनीय है। प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श गतिविधियों का एक व्यापक परिदृश्य लेने और अपने कई सहयोगों के माध्यम से, संस्थान हमारे समाज की आशाओं और आकांक्षाओं के लिए सार्वजनिक शासन प्रणालियों की सकारात्मक प्रतिक्रिया में योगदान दे रहा है। कुशल, प्रभावी और नैतिक शासन के लिए मानव संसाधन के प्रशिक्षण, विकास और प्रबंधन के लिए एक वातावरण बनाने को लेकर आप डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ इस संस्थान के संस्थापक पिता के दृष्टिकोण को भी पूरा कर रहे हैं।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सत्य और अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत में दृढ़ विश्वास रखते थे। वह खुद भी बापू के प्रिय थे। गांधीजी ने उनके समर्पण को तब पहचाना जब उन्होंने बिहार के चंपारण का दौरा किया और बाद में अपनी आत्मकथा में लिखा:

“राजेंद्र बाबू मेरे साथ काम करने वाले सबसे अच्छे स्वयंसेवकों में से एक हैं। उनके स्नेह ने मुझे उन पर इतना निर्भर बना दिया है कि उनके बिना मैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।’’

बाबू राजेंद्र प्रसाद ने जाति और पंथ की बेड़ियों से मुक्त एक सामंजस्यपूर्ण और समतावादी भारत का सपना देखा था, एक ऐसा भारत जिसमें शासक और प्रशासक सभी के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे।

मैं इस व्याख्यान को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पवित्र स्मृति को समर्पित करता हूं और अपनी मातृभूमि के इस महान सपूत को नमन करता हूं, जिनका जीवन परोपकार, सत्य, सेवा और सादगी के गुणों से परिभाषित होता है।

मैं आईआईपीए और उसकी टीम को अपने सभी भावी प्रयासों में महती सफलता की कामना करता हूं।
जय हिन्द!’’

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