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उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों से कहा, पाठ्य पुस्तक ज्ञान, सख्त विचारों तथा परीक्षा के अंकों को कम महत्व देते हुए खुले और ज्ञानवर्धन बहसों पर विशेष ध्यान दें

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम वैंकेया नायडू ने कॉलेजों और स्कूलों में छात्रों को प्रशिक्षण दिये जाने के तरीकों पर फिर से विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पाठ्य पुस्तक ज्ञान, सख्त विचारों तथा परीक्षा के अंकों को कम महत्व देते हुए खुले और ज्ञानवर्धन बहसों पर  विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

      नई दिल्ली स्थित श्यामलाल कॉलेज के 55वें वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों को लंबी अवधि के व्याख्यान देने की पद्धति के स्थान पर नए शिक्षण तरीकों को अपनाना चाहिए। इसमें विषय आधारित सोच, समस्या हल करने तथा रोजगार के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने को शामिल किया जाना चाहिए।

      श्री नायडू ने कहा कि आधुनिक समय में रोजगार प्राप्त करने के लिए कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है। उच्च शिक्षा के संस्थानों को उद्योगों को ध्यान में रखते हुए परियोजनाएं तैयार करनी चाहिए और छात्रों को इन परियोजनाओं से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

      वैश्विक रैंकिंग में भारतीय संस्थानों को बेहतर स्थान न मिलने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उत्कृष्टता प्राप्त करने की हमारी इच्छा अधूरी रह जाएगी यदि हम उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित करने में असफल रहते हैं।

      जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में श्री नायडू ने कहा कि युवाओं की शक्ति का उपयोग तभी किया जा सकता है जब हम उन्हें रोजगार अनुकूल कौशल प्रदान करेंगे। इसके बाद ही भारत वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम होगा।

      शिक्षा व्यवस्था पर उचित ध्यान नहीं देने पर राष्ट्र के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संपूर्ण शिक्षा प्रणाली पर फिर से विचार करने और बदलाव करने की जरूरत है। शिक्षा पद्धति मे बदलाव की शुरूआत प्राथमिक शिक्षा से होनी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा में पहुंच, विविधता, समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करना इस प्रकार के सभी प्रयासों का केन्द्र बिन्दु होना चाहिए।

       श्री नायडू ने कहा कि शिक्षा पर वर्तमान में जीडीपी का तीन प्रतिशत खर्च किया जाता है। नीति आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप इसे 2022 तक छह प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में 100 प्रतिशत नामांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा की स्थिति में सुधार करने के लिए बच्चों के पोषण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। शिक्षा के लिए गरीबी और कुपोषण को रूकावट नहीं बनना देना चाहिए। दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

      श्री नायडू ने वैदिक युग का उदाहरण देते हुए कहा कि महिला एवं पुरुष दोनों को ही अपने विचार व्यक्त करने की आजादी थी। महिला सशक्तिकरण के लिए लड़कियों को शिक्षित करना सबसे महत्वपूर्ण घटक है। लड़कियों को शिक्षित करने पर आधारित कार्यक्रमों को जनांदोलन बनाया जाना चाहिए।

      उपराष्ट्रपति ने मेधावी छात्रों को पुरस्कार वितरित किये। उन्होंने गरीब तथा वंचित तबकों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना की।

      इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश त्यागी, प्रशासनिक संकाय की चेयरपर्सन श्रीमती सविता गुप्ता, श्याम लाल कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर रबी नारायण कार और कॉलेज के  छात्रगण उपस्थित थे।

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