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असल हितधारकों की उपस्थिति के बिना कोई भी चर्चा नहीं की जा सकती: डॉ वीरेंद्र कुमार

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) के तहत ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय न्यास ने नई दिल्ली के डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में डिजिटल सर्वोत्तम प्रथाओं और उत्तर पूर्व शिखर सम्मेलन पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

देश के उत्तर पूर्व क्षेत्र में सात राज्यों के लिए यह अपनी तरह का पहला शिखर सम्मेलन रहा। देश की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष (आज़ादी का अमृत महोत्सव) का जश्न मनाते हुए, शिखर सम्मेलन का उद्देश्य बौद्धिक और विकासात्मक विकलांग व्यक्तियों को डिजिटल प्रौद्योगिकी से सशक्त बनाना और इस क्षेत्र में राष्ट्रीय ट्रस्ट की योजनाओं और गतिविधियों की तादाद में वृद्धि करना था। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार, राज्य मंत्री कुमारी प्रतिमा भौमिक एवं श्री ए. नारायणस्वामी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सुश्री अंजलि भावरा, डीईपीडब्ल्यूडी सचिव और राष्ट्रीय न्यास अध्यक्ष, श्री. निकुंजा किशोर सुंदरे, संयुक्त सचिव एवं सीईओ, नेशनल ट्रस्ट और श्री किशोर बाबूराव सुरवड़े, डीडीजी, डीईपीडब्ल्यूडी भी सम्मेलन में उपस्थित थे, जिसमें विभिन्न संगठनों, पेशेवरों और दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व करने वाले 100 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।

केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने बेहद विनम्र अंदाज में कन्वेंशन की सराहना की। उन्होंने विभाग को दिव्यांगजनों की अधिक भागीदारी के साथ इस सम्मेलन को पूरे देश तक पहुंचाने को कहा क्योंकि उनका वास्तव में विश्वास था कि वास्तविक हितधारकों यानी दिव्यांगजन की उपस्थिति के बिना कुछ भी चर्चा नहीं की जा सकती है। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों से इस संदेश को देश में फैलाने की अपील की। उन्होंने दृष्टिबाधित व्यक्ति और राष्ट्रीय न्यास के बोर्ड सदस्य डॉ. सपम जसोवंत सिंह के उत्साह की सराहना की, जिन्होंने दिव्यांगजनों के लिए शिक्षा की आवश्यकता को आगे बढ़ाया। उन्होंने सांकेतिक भाषा इंटरप्रेटर के काम की सराहना की और कहा कि इसकी की मदद से इस सम्मेलन का संदेश देश भर के सभी दिव्यांगजनों तक पहुंच रहा है।

अपने संबोधन में राज्य मंत्री कुमारी प्रतिमा भौमिक ने उत्तर पूर्व की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत और जनजातीय आबादी की विशाल विविधता पर प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा, “हम भाग्यशाली हैं कि हमें इन लोगों की सेवा करने का मौका मिला और हमें जागरूकता फैलाने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि दिव्यांगजनों को बेहतर सेवाएं दी जा सकें।” उन्होंने सभी गैर सरकारी संगठनों को आगे आने और दियांगजन को निरमाया स्वास्थ्य बीमा योजना में नामांकित करने पर जोर दिया, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए नि:शुल्क है।

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राज्य मंत्री श्री ए नारायणस्वामी ने कहा कि सभी आयु समूहों के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट की विभिन्न योजनाओं को पूरे देश में फैलाने करने की आवश्यकता है। अंतिम दिव्यांगजन तक पहुंचने के लिए और अधिक जागरूकता पैदा करना समय की मांग है।

सात पूर्वोत्तर राज्यों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकार की योजनाओं के अभिसरण की व्यापक रूप से आवश्यकता है। उत्तर पूर्व की ग्रामीण आबादी तक पहुंचने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय की आंगनबाड़ियों को राष्ट्रीय ट्रस्ट के ‘दिशा प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्रों’ के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने और अधिक उत्साह के साथ मिशन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र का आयोजन हुआ। शिखर सम्मेलन का मुख्य आकर्षण प्रो. (डॉ.) मधुसूदन राव, आईआईटी दिल्ली की प्रस्तुति थी, जिन्होंने दिव्यांगजन के लिए उत्पाद विकास के लिए अनुसंधान और नवाचार को साझा किया। प्रो. राव दृष्टिबाधित लोगों के सशक्तिकरण के लिए सहायक प्रौद्योगिकियों के विकास में एक जाना-माना नाम हैं। वह एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक हैं जो दिव्यांगजनों की पहुंच में सुधार लाने पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रवि पूवैया और डॉ अजंता सेन ने भाषण विकलांगता वाले बच्चों के लिए जेलो-एएन एएसी कम्युनिकेटर प्रस्तुत किया। अन्य पैनलिस्टों में निपमैन फाउंडेशन के सह-संस्थापक और सीईओ श्री निपुण मल्होत्रा, जो विकलांग व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य और वकालत के क्षेत्र में काम करते हैं, डॉ. जिनमोनी सैकिया, प्रधान वैज्ञानिक, असम कृषि विश्वविद्यालय, जिन्होंने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विकलांग बच्चों के विकास की स्थिति साझा की और डॉ. सपम जसोवंत सिंह, बोर्ड सदस्य राष्ट्रीय न्यास जिन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों में दिव्यांगजन की समग्र स्थिति साझा की, मौजूद थे।

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