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अब समय 4एस- स्पीड, स्किल, स्केल और स्टेंडर्ड्स का है: श्री गोयल

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने 6 जनवरी 2022 को अपनी स्थापना के 75 गौरवशाली वर्ष पूरे कर लिए हैं। बीआईएस की वर्ष 1947 में भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) के रूप में स्थापना की गई थी। मानकीकरण और प्रमाणीकरण की अपनी मुख्य गतिविधियों के माध्यम से बीआईएस पिछले 75 वर्षों से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहा है।

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य और उद्योग एवं वस्त्र मंत्री श्री पीयूष गोयल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस संस्थान और इससे जुड़े सभी लोगों को बधाई दी।

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और बीआईएस के अधिकारियों को संबोधित करते हुए श्री गोयल ने कहा, माननीय प्रधानमंत्री ने गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले ही 3एस- स्पीड, स्किल और स्केल की अवधारणा दी थी। लेकिन अब समय आ गया है कि इसे 4एस – स्पीड, स्किल, स्केल और स्टैंडर्ड्स में बदल दिया जाए।

उन्होंने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, यह एक अच्छे संयोग के साथ-साथ ही यह दर्शाने का अवसर भी प्रदान करता है कि प्रधानमंत्री के शब्दों में यह ‘आजादी के अमृत काल’ की शुरुआत है। वर्ष 2047 में राष्ट्र और बीआईएस दोनों अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर लेंगे, इसलिए बीआईएस के लिए अब से 2047 तक अपने 25 साल के एजेंडे की योजना और रुपरेखा बनाने का एक बड़ा अवसर उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा, ‘’हम भारत को विश्व शक्ति और सुपर पॉवर एवं महान देश बनाने में किस प्रकार योगदान देंगे।”

श्री गोयल ने कहा कि कुछ देशों की हमसे अलग करने वाली परिभाषित विशेषता है गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना। अगर हम इसे एक मिशन के रूप में अपनाते हैं और 135 करोड़ भारतीय गुणवत्ता की मांग करना शुरू कर देते हैं तथा भारत में आर्थिक गतिविधियों में सभी की भागीदार होती है तो गुणवत्ता स्वयं बोलने लगेगी”।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ‘वन नेशन वन स्टैंडर्ड’ की दिशा में काम कर रही है और कुशलतापूर्वक काम करके बेंचमार्क स्थापित करना महत्वपूर्ण है ताकि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुकूल हो सकें।

श्री गोयल ने कहा कि मानकीकरण और अनुरूपता मूल्यांकन उपभोक्ताओं को सुरक्षित, विश्वसनीय एवं उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद भी उपलब्ध कराएगा जिससे हमारा कार्य आने वाले वर्षों में अधिक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो जाएगा।

उन्होंने कहा, “कई विनिर्माण इकाइयां आज संपूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण या गुणवत्ता के ‘सिक्स सिग्मा’ स्तर को देखती हैं जहां वे दोषों या त्रुटियों की गिनती करती हैं जिसके लिए बहुत सख्त उपाय भी किए जा रहे हैं। यही प्रगतिशील, आधुनिक और विकसित राष्ट्र की पहचान है।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि बीआईएस उपभोक्ताओं को गुणवत्ता के बारे में अधिक जागरूक बनाएगा। संपूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण का अर्थ गुणवत्ता में निष्ठा और गुणवत्ता में विश्वास भी होगा।

श्री गोयल ने हॉलमार्किंग और परख को सफल बनाने में बीआईएस की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “हम इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और अगले 25 वर्षों के लिए ‘अमृत काल’ की योजना बना रहे हैं। बीआईएस भी एक ‘ब्रांड इंडिया’ के निर्माण में समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ताकि हमें दुनिया भर में वस्तुओं के गुणवत्ता आपूर्तिकर्ता के रूप में पहचान मिले, ये सेवाएं राष्ट्र की मानसिकता को बदल रही हैं।”

उन्होंने कहा कि हर एकल कार्य गुणवत्ता की मांग करता है यही हमारा मंत्र होना चाहिए।

श्री गोयल ने बीआईएस को प्रगति करने के लिए 5 मंत्रों का सुझाव भी दिया है:

“1-हमें एक मददगार के रूप में काम करना चाहिए न कि अवरुद्धकर्ता के रूप में।

2-बीआईएस को एक वैश्विक संगठन के रूप में विकसित होना है। वैश्विक अनुभवों से सीखना, वैश्विक मानकों को एकीकृत करना है। दुनिया को यह दिखाना है कि हम सबसे अच्छे हैं। इसके लिए हमें भी अग्रणी बनना होगा।

3-देश की प्रयोगशाला सत्यापन जरूरतों का आकलन करने के लिए अंतर-विश्लेषण पर पर काम करना और पूरे देश में उच्च गुणवत्ता वाली आधुनिक प्रयोगशालाएं स्थापित करना।

4-गुणवत्ता या मानक क्रांति से कम कुछ भी अपेक्षित नहीं है। इस संबंध में वन नेशन वन स्टैंडर्ड ‘गेम चेंजर’ सिद्ध होगा।

5-गुणवत्ता कीमती नहीं, बल्कि लागत प्रभावी है।

उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव श्री रोहित कुमार और अपर सचिव सुश्री निधि खरे तथा मंत्रालय और बीआईएस के अन्य अधिकारियों ने भी इस आयोजन में भाग लिया।

बीआईएस के महानिदेशक श्री प्रमोद कुमार तिवारी ने इस विशेष अवसर पर बीआईएस के सभी हितधारकों का आभार व्यक्त किया और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि बीआईएस के कर्मचारियों और अन्य हितधारकों की उत्कृष्टता के निरंतर प्रयासों और उपायों के कारण ही हम आज इस सम्मानजनक स्थान को प्राप्त करने में समर्थ हुए हैं। हम भविष्य में भारत की प्रगति में और अधिक उत्साह और समर्पण के साथ योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

भारत में ब्रिटिश शासन के अंतिम वर्षों में जब देश औद्योगिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के बड़े कार्य का सामना कर रहा था तब इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) ही वह संस्थान था जिसने एक संस्थान के संविधान का पहला ड्राफ्ट तैयार किया था जो राष्ट्रीय मानकों के निर्माण के कार्य को आगे ले जा सका। उद्योग और आपूर्ति विभाग ने 3 सितंबर 1946 को एक ज्ञापन जारी किया, जिसमें औपचारिक रूप से ‘भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) नामक एक संगठन की स्थापना की घोषणा की गई थी। आईएसआई 6 जनवरी 1947 को अस्तित्व में आया और जून 1947 में डॉ. लाल सी. वर्मन ने इसके पहले निदेशक के रूप में पदभार संभाला।

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) 26 नवंबर 1986 को संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 1 अप्रैल 1987 को व्यापक दायरे, अधिक शक्तियों और पूर्ववर्ती आईएसआई के कर्मचारियों, संपत्तियों, देनदारियों और कार्यों के अधिग्रहण के साथ अस्तित्व में आया। इस बदलाव के माध्यम से, सरकार ने मानकों के निर्माण और कार्यान्वयन में गुणवत्ता संस्कृति और चेतना तथा उपभोक्ताओं की अधिक भागीदारी के लिए माहौल निर्माण की परिकल्पना की थी।

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