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राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय और एसआईडीएम की ओर से आयोजित एमएसएमई संगोष्ठी में भाग लिया

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों एमएसएमई से अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश करने व नए उत्पादों एवं तकनीकों का निर्माण करने के साथ ही देश की सुरक्षा और प्रगति में योगदान करने का आह्वान किया है। वह 4 दिसंबर, 2021 को नई दिल्ली में हाइब्रिड मोड में रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग और सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एमएसएमई संगोष्ठी में उद्घाटन भाषण दे रहे थे। श्री राजनाथ सिंह ने एमएसएमई और एसआईडीएम से जर्मनी के “मिटेएलस्टैंड” (मिटेएल स्टंट), जिसे पूरी दुनिया ने धातु उपकरणों के निर्माण के लिए मान्यता दी है उसी की तरह भारत में भी औद्योगिक स्तंभ बनाने का आग्रह किया।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि लगातार बदलते सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए सरकार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है साथ ही यह भी कहा कि इस क्षेत्र में एमएसएमई की पूरी क्षमता को निखारने के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने विश्वास जताया कि भारतीय निर्माता और उनसे जुड़े एमएसएमई देश की रक्षा जरूरतों और वैश्विक आवश्यकता को पूरा करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए एमएसएमई द्वारा निभाई जा रही महत्वपूर्ण भूमिका पर रक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास में प्रमुख उद्योग टैंक, पनडुब्बियां, विमानों और हेलीकाप्टरों के निर्माण से बड़ी भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन बड़े प्लेटफॉर्मों के पीछे छोटे उद्योग होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस आउटसोर्सिंग युग में पर्दे के पीछे से एमएसएमई की ओर से दिए गए हजारों घटकों द्वारा विशाल प्लेटफॉर्म संकलित किए गए हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एमएसएमई न केवल उप प्रणालियों और घटक स्तर पर गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण करके बड़ी संस्थाओं का समर्थन कर रहे हैं बल्कि लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी पैदा कर रहे हैं। उन्होंने यह कहते हुए सरकार का पूरा समर्थन किया कि बड़े उद्योग और एमएसएमई एक-दूसरे के पूरक हैं और साथ में देश की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने एमएसएमई को उद्योग की रीढ़ बताया जो न केवल आर्थिक गतिविधियों के लिए बल्कि सामाजिक विकास के लिए भी समान रूप से जिम्मेदार है। आज हमारे देश में एमएसएमई की अच्छी बड़ी संख्या है, जो अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 29 प्रतिशत का योगदान करते हैं। कृषि क्षेत्र के बाद यह लगभग 100 मिलियन लोगों को रोजगार देने वाला सबसे बड़ा स्रोत है। एमएसएमई बड़े उद्यमों में अन्वेन्मेषकों और मध्यस्थों को शामिल करने के लिए भी काम करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वे बड़ी औद्योगिक संस्थाओं के उद्देश्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर मूल्य श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला के जरिए मदद करते हैं।

रक्षा मंत्री ने इसका उल्लेख किया कि बड़ी संस्थाओं की तुलना में एमएसएमई द्वारा धन का केंद्रीकरण कम है और इसका वितरण फैला हुआ है, जो आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि एमएसएमई निश्चित रूप से देश के युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उनके सपनों को पूरा करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने एमएसएमई की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को व्यक्त करते हुए कहा कि हम बैंकिंग और पूंजी बाजार से संबंधित नीतियां लाए, ताकि हमारे एमएसएमई को आसानी से और सस्ती दरों पर अधिकतम पूंजी मिल सके। हम एमएसएमई की निश्चित लागत को कम करने के लिए मूल्य श्रृंखला एकीकरण और सामान्य सुविधाओं की स्थापना, औद्योगिक पार्कों और दो रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना की नीति लेकर आए।

उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत कुछ पहलुओं को सूचीबद्ध किया, विशेष रूप से जिनका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में एमएसएमई की क्षमताओं का उपयोग करके देश में रक्षा और एयरोस्पेस उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि हमारे पास हवाई क्षेत्र और रक्षा का अनुमानित 85,000 करोड़ रुपये का उद्योग है। इसमें निजी क्षेत्र का योगदान बढ़कर 18,000 करोड़ रुपये हो गया है। हमारी दृष्टि भारत को वैश्विक रक्षा उत्पादन केंद्र बनाने की है।

एमएसएमई को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए कदमों में खरीद के मामलों में बिना किसी वित्तीय स्थिति के एमएसएमई को प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) जारी करना शामिल है, जहां अनुमानित लागत 100 करोड़ रूपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं है या कुल मूल्य 150 रूपये करोड़ से कम है, इनमें से जो भी अधिक हो, निर्माण परियोजनाओं का निर्धारण, आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) की मांग और संशोधित ऑफसेट नीति 2020 के समय वितरण कार्यक्रम के आधार पर जिसकी खरीद 100 करोड़ प्रति वर्ष से अधिक नहीं है, जहां एमएसएमई भारतीय ऑफसेट पार्टनर है।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार आईडीईएक्स और तकनीकी विकास फंड टीडीएफ के तहत परियोजनाएं मुख्य रूप से स्टार्टअप्स और एमएसएमई के लिए आरक्षित हैं। ये योजनाएं रक्षा तकनीकी के विकास और उपयोगकर्ता सेवाओं द्वारा सहायता प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, इस प्रकार एमएसएमई, स्टार्टअप और व्यक्तिगत अन्वेषकों को आवश्यक प्रोत्साहन देती हैं। उन्होंने कहा कि समस्याओं के अभिनव समाधान के लिए उन्हें आर्थिक अनुदान के साथ वित्त पोषित किया जा रहा है, ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और रोबोटिक्स जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जा सके।

रक्षा मंत्री ने रक्षा मंत्रालय द्वारा 2021-22 से 2025-26 तक अगले पांच वर्षों के लिए लगभग 500 करोड़ रुपये के बजटीय सहयोग के साथ आईडीईएक्स केंद्रीय कार्यक्षेत्र की योजना को मंजूरी देने का भी उल्लेख किया। यह योजना रक्षा नवाचार संगठन डीआईओ के माध्यम से लगभग 300 स्टार्टअप एमएसएमई व्यक्तिगत अन्वेषकों और लगभग 20 भागीदारों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने आगे कहा कि मंत्रालय ने नई रक्षा तकनीकों के विकास को बढ़ावा देने और देश में बढ़ते स्टार्ट अप आधार को समर्थन करने के लिए 2021-22 के दौरान आईडीईएक्स स्टार्टअप्स से खरीद के लिए 1,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि वर्तमान में टीडीएफ के तहत 30 से अधिक परियोजनाएं प्रगति पर हैं और 150 करोड़ रुपये से अधिक का उपयोग किया जा चुका है।

श्री राजनाथ सिंह ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन डीआरडीओ की ‘डेयर टू ड्रीम’ नवाचार प्रतियोगिता के बारे में बात की जो भारत के पूर्व राष्ट्रपति और प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित है।

टीडीएफ योजना के तहत स्टार्टअप्स को सूचीबद्ध किया जाता है और उन्हें अत्याधुनिक तकनीकों व सैन्य उत्पादों को विकसित करने के लिए वित्तीय और हाथों हाथ सहायता प्रदान करती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय उद्योग न केवल भारतीय सशस्त्र बलों के लिए बल्कि वैश्विक बाजार के लिए भी एक अत्याधुनिक तकनीकी देने वाला बन जाएगा।

निर्यात को बढ़ावा देने पर सरकार के दावों को दोहराते हुए श्री राजनाथ सिंह ने उम्मीद जताई कि भारत जल्द ही शुद्ध आयातक से विशुद्ध निर्यातक बन जाएगा। सरकार का लक्ष्य 2024-25 तक 35,000 करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को हासिल करना है। भारत वर्तमान में लगभग 70 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत रक्षा निर्यात में शीर्ष 25 देशों की सूची में है।

सृजन पोर्टल, 209 मदों की सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों की अधिसूचना और रणनीतिक भागीदारी मॉडल जैसे अन्य कदमों पर प्रकाश डालते हुए रक्षा मंत्री ने मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड के सरकार के संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहा कि इन सभी उपायों के परिणामस्वरूप स्वदेशी रक्षा उद्योग को दिए जाने वाले अनुबंधों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि भारतीय आईडीएमएम (स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित) श्रेणियों की खरीद को प्राथमिकता देने से लेकर अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करने तक हम उद्योग, शिक्षा और तकनीकी देने वालों, उपकरण बनाने वाले, गुणवत्ता नियंत्रकों और उपयोग करने वालों के साथ सक्रिय सहयोग के माध्यम से प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा परिकल्पित आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार के प्रयासों को निरंतर समर्थन देने के लिए सशस्त्र बलों की सराहना की।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा किए गए सुधारों के कारण पिछले सात साल में देश का रक्षा निर्यात 38,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया, 12,000 एमएसएमई रक्षा क्षेत्र में शामिल हुए जिससे अनुसंधान एवं विकास, स्टार्टअप, नवाचार और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि इन नीतियों के कारण अब एसआईडीएम के 500 से अधिक सदस्य हैं।
रक्षा मंत्री ने रक्षा निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार के साथ सक्रिय रूप से काम करने के लिए एसआईडीएम की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह उद्योगों को सरकार की पहल से अवगत कराता है, मंत्रालय को उनके विचारों से अवगत कराकर नई नीतियों के निर्माण में बहुमूल्य सुझाव देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा, एसआईडीएम में बढोतरी और लगातार बढ़ रही पहुंच भारतीय रक्षा उद्योग के विकास को दर्शाती है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह संगोष्ठी विकास के नए अवसर प्रदान करेगी।

अपने उद्घाटन भाषण में एसआईडीएम अध्यक्ष श्री जयंत पाटिल ने एमएसएमई का समर्थन करने और विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एसआईडीएम की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने रक्षा मंत्रालय के साथ सक्रिय रूप से काम कर एमएसएमई के लिए नए अवसरों की पहचान और इस क्षेत्र के साथ अधिक समग्रता के साथ काम जारी रखने की आशा जताई।

एमएसएमई संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के बारे में प्रासंगिक जानकारी प्रदान करके पूरे भारत में टियर 2 और टियर 3 शहरों में स्थित गैर रक्षा क्षेत्र एमएसएमई की क्षमता को बढ़ावा देना, देश में रक्षा उत्पादन के विकास को एक नई गति देना, अपनी घरेलू जरूरतों और मित्र देशों को निर्यात करना, गैर रक्षा क्षेत्रों में सक्रिय भारतीय एमएसएमई को रक्षा क्षेत्र में उनके प्रवेश के लिए जानकारी प्रदान करन के साथ ही सक्षम उद्यमियों को कम पूंजी या पूंजी गहन परियोजनाओं के लिए विशेष रूप से स्थापित विभिन्न वित्त पोषण तंत्रों से परिचित कराने और भारतीय रक्षा क्षेत्र में संभावित बाजार और व्यापार के अवसरों के बारे में सूचित करने को लेकर था।

वर्तमान में भारत में कई हजार एमएसएमई विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और आम तौर पर विभिन्न सरकारी प्रतिष्ठानों और बड़े निजी क्षेत्र के ओईएम के साथ नजदीकी साझेदार के रूप में जुड़े हुए हैं। मेक इन इंडिया पहल के प्रमुख उद्देश्यों में से एक एमएसएमई को रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में लाना है, जिससे रक्षा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और रक्षा निर्यात बाजार में योगदान करना है।

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