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अगलाड़ नदी में राजमौण मेला आज

मसूरी: ढोल-दमाऊ और रणसिंघा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज के बीच आज हजारों लोग अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने उतरेंगे। अवसर होगा ऐतिहासिक राजमौण का। अगलाड़ नदी में यह मेला 152 सालों से आयोजित किया जा रहा है। जिसमें टिहरी जिले के जौनपुर, देहरादून के जौनसार सहित मसूरी और उत्तरकाशी जिले के गोडरखाटल पट्टियों के हजारों लोग भाग लेते हैं। मेले में मछलियां पकड़ने के लिए औषधीय पेड़ टिमरू की छाल से बने मौण पाउडर का प्रयोग किया जाता है। यमुनोत्री हाईवे पर अगलाड़ पुल से लगभग चार किलोमीटर ऊपर मौणकोट नामक स्थान पर सभी पांतीदार प्रतिनिधियों की मौजूदगी में पूजा-अर्चना और टिमरू पाउडर से टीका करने के बाद टिमरू पाउडर को नदी में डाला जाता है। इस पाउडर के पानी में घुलते ही मछलियां बेहोश होने लगती हैं और ग्रामीण इनको कुंडियाड़ा, फटियाड़ा, जाल या फिर हाथों से पकड़ते हैं।

पर्यटक व विज्ञानी भी बनते हैं हिस्सा

इस अनूठे मेले में हजारों ग्रामीणों के अलावा पर्यटक भी काफी संख्या में पहुंचते हैं। इसके अलावा मछलियों की प्रजातियों का अध्ययन कर रहे विज्ञानी और शोधार्थी भी मेले में हर वर्ष भाग लेते हैं।

ऐसे तैयार होता है टिमरू पाउडर

टिमरू का पाउडर तैयार करने के लिए पांतीदार निश्चित हैं। पाउडर तैयारी करने की जिम्मेदारी सिलवाड़, लालूर, अठज्यूला और छैज्यूला पट्टी के लोगों की होती है। ये लोग अपनी बारी के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ के पहले दिन टिमरू की छाल निकालना शुरू कर देते हैं। इसके बाद छाल के छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें सुखाया जाता है और फिर घराट में पीसकर बारीक पाउडर तैयार किया जाता है। इस वर्ष टिमरू का पाउडर लालूर पट्टी के लोगों ने तैयार किया है।

ये है टिमरू पाउडर की खासियत

टिमरू के पाउडर की खासियत यह है कि इसके संपर्क में आने वाली मछलियां कुछ देर के लिए ही बेहोश होती हैं। जो मछलियां ग्रामीणों की पकड़ में नहीं आ पातीं, वह ताजे पानी के संपर्क में आते ही पुन: सक्रिय हो जाती हैं।

इसलिए पड़ा मेले का नाम राजमौण

राजमौण का आयोजन अगलाड़ नदी के अंतिम हिस्से में होता है। इस मेले का आयोजन टिहरी रियासत के वक्त से होता आ रहा है। तब मेले में टिहरी नरेश भी अपनी रानियों व लाव-लश्कर के साथ आते थे, इसलिए इसे राजमौण कहा जाता है। एक बार ग्रामीणों में झगड़ा होने पर राजा ने मौण मेले पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन गावों के प्रतिनिधियों ने मेले का आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से कराने का आश्वासन दिया जिसके उपरांत राजा ने फिर से इसके आयोजन की इजाजत दे दी।

कभी चार मौण होते थे अगलाड़ में

एक समय था, जब अगलाड़ नदी में चार मौण मेले आयोजित होते थे। नदी के ऊपरी भागों में पहले तीन अन्य मौण मेले आयोजित किए जाते थे। जिनमें से दो घुराणू व मंझमौण काफी प्रसिद्ध थे, मगर लोगों की घटती दिलचस्पी व पलायन के कारण ये तीनों मेले इतिहास बन चुके हैं।

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