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अब नॉन क्लीनिकल पीजी में खत्म होगा बांड

देहरादून : नॉन क्लीनिकल पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) को लेकर चिकित्सकों का रुझान लगातार कम हुआ है। स्थिति यह है कि गत वर्षों में नॉन क्लीनिकल में अधिकांश पीजी सीट रिक्त चल रही हैं। ऐसे में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इन्हें बांड की परिधि से बाहर लाने की सिफारिश की है। नॉन बांडेड अभ्यर्थियों के लिए भी शिक्षण शुल्क कम करने की बात रखी गई है।

प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी की नॉन क्लीनिकल सीट पर दाखिले के लिए डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जिन विभागों की पीजी सीटों में प्रैक्टिस नहीं है, उनमें डॉक्टर एडमिशन लेना ही नहीं चाहते। कई बार वह क्लीनिकल सब्जेक्ट की सीट खाली न होने पर, नॉन क्लीनिकल की सीट पर एडमिशन लेते हैं। बाद में क्लीनिकल की सीट मिलने पर नॉन क्लीनिकल की सीट छोड़ देते हैं।

विगत वर्षों में देखा गया है कि नॉन क्लीनिकल विभागों में अधिकांश पीजी की सीटें रिक्त चल रही हैं। एक तरफ जहां इसमें दाखिले को रुझान कम हुआ है, बांड के कारण भी डॉक्टर छिटक रहे हैं। बांड की शर्तों के कारण वह नॉन क्लीनिकल विषयों में प्रवेश नहीं लेते। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने माना है कि विगत कई वर्षों से सीटें रिक्त होने के कारण संसाधनों की हानि हो रही है। बांड को लेकर व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैं। इसके तहत किसी भी डॉक्टर को पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्र में अनिवार्य सेवा देनी होती है।

लेकिन नॉन क्लीनिकल विषय में पीजी करने के बाद दुर्गम क्षेत्रों में कुछ ज्यादा करने की संभावना नहीं रहती। मसलन बायोकैमिस्ट्री या एनाटॉमी में पीजी के बाद सुविधाओं के लिहाज से अभावग्रस्त किसी क्षेत्र में सेवा देना, डॉक्टर को नहीं भाता। ऐसे में विभाग ने सिफारिश की है कि नॉन क्लीनिकल विभागों के परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए बांड के प्राविधानों में शिथिलता लाते हुए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।

इन कोर्स में सीट भरना मुश्किल 

-एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, कम्यूनिटी मेडिसिन, माइक्रोबायोलॉजी, फॉर्मेकोलॉजी,बायोकेमिस्ट्री, पैथोलॉजी व फोरेंसिक।

नियमित नियुक्ति का सुझाव 

बांडधारी चिकित्सकों के लिए नियमित नियुक्ति का सुझाव भी विभाग ने दिया है। विभाग का मानना है कि वर्तमान समय में नियमित नियुक्ति न मिलने के कारण डॉक्टरों की रुचि घट रही है। नियमित नियुक्ति से चिकित्सकों में सेवा का आकर्षण बढ़ेगा।

अस्पताल ही नहीं, मेडिकल कॉलेजों में भी नियुक्ति 

एमडी-एमएस में प्रवेश लेने वाले बांडधारी चिकित्सकों के लिए राज्य के स्वास्थ्य विभाग में दो वर्ष की अनिवार्य सेवा के प्रावधान को संशोधित करने का प्रस्ताव भी विभाग ने दिया है। जिसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग के साथ ही मेडिकल कॉलेजों में क्लीनिकल विभागों में सीनियर रेजीडेंट व नॉन क्लीनिकल विभागों में ट्यूटर या डेमोन्सटर के पद पर सेवा पर विचार किया जाना चाहिए।

चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि विगत वर्षों में सीटें रिक्त रहने से संसाधनों की क्षति हुई है। ऐसे में नॉन क्लीनिकल विभाग के परास्नातक पाठ्यक्रमों में बांड के प्राविधानों में शिथिलता लाते हुए इसे समाप्त करने की सिफारिश की है।

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