अल्जाइमर दिवस: हर साल 10 फीसदी बढ़ रहा अल्जाइमर का खतरा
सामान्य तौर पर अल्जाइमर की बीमारी वृद्धावस्था में होती है, लेकिन वर्तमान में युवाओं में भी इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी वजहों में तनावपूर्ण जीवन तथा कई कामों के बोझ की वजह से याददाश्त की कमी होना शामिल है।
चिकित्सकों के अनुसार, सामान्य तौर पर 60 या इससे अधिक उम्र के लोगों में ही पाई जाने वाली स्मृतिक्षय की यह समस्या अब युवाओं को भी अपनी चपेट में लेती दिख रही है। कानपुर स्थित रीजेंसी हेल्थकेयर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एए हाशमी ने कहा कि आजकल युवाओं में भी उच्च रक्तचाप, अवसाद, शराब पीने की लत और मधुमेह के रूप में अल्जाइमर की शुरुआत होने के मामले देखे गए हैं।
व्यापक रूप से कहा जाए तो इस बीमारी में व्यक्ति भूलने लगता है और खाना निगलने जैसी स्वत: होने वाली शारीरिक क्रियाएं भी प्रभावित हो सकती हैं। याददाश्त प्रभावित होने की यह समस्या कम आयु वर्ग के लोगों में भी देखने को मिल रही है। पहले यह समस्या 60 या इससे अधिक उम्र के लोगों में ही सामान्य रूप से देखी जाती थी। गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी में न्यूरो साइंस संस्थान के निदेशक डॉ. अरुण गर्ग ने कहा कि यदि किसी नौजवान को यह बीमारी होती है, तो इसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।
एक से दो प्रतिशत मामलों में ही इसे नौजवानों में देखा गया है। 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी में याददाश्त प्रभावित होने की समस्या एक साथ कई काम करने से जुड़ी हो सकती है। इसके लिए पूरी नींद बेहद जरूरी है। कुछ अध्ययनों में दावा किया गया है कि डिमेंशिया बढ़ाने वाले कारकों को अगर सही से नियंत्रित कर लिया जाए तो दुनियाभर में इस तरह के मामलों को कम करने की संभावना बढ़ जाती है। इस बीमारी से बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की जरूरत है।