उत्तराखंड समाचार

उत्तराखंड: चिह्नीकरण न होने से राज्य आंदोलनकारियों में नाराजगी, लेटलतीफी का लगाया आरोप; की ये मांग

देहरादून। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण में हो रही देरी के चलते आंदोलनकारी बेहद आक्रोशित हैं। उन्होंने प्रशासन पर चिह्नीकरण में लेटलतीफी का आरोप लगाया है। साथ ही आंदोलनकारियों ने इस दिशा में तेजी से कार्रवाई की मांग भी की है।

दरअसल, मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभालने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने आंदोलनकारियों के चिह्नीकण और आश्रित संबंधी शासनादेश जारी कराया था। इसी क्रम में आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण को लेकर जिला प्रशासन ने आंदोलनकारियों के साथ कई बार बैठक भी हुई। आंदोलनकारियों का आरोप है प्रशासन इस प्रक्रिया में देरी कर रहा है। उत्तराखंड राज्य निर्माण के आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण की प्रक्रिया पर आंदोलनकारियों ने नाराजगी जाहिर कर जिला प्रशासन से प्रक्रिया में बदलाव करने की मांग की।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मानवः के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती ने कहा कि अब तक पांच बैठक में सिर्फ आठ का चिह्नीकरण किया गया है। प्रशासन ने चिह्नीकरण की जो प्रक्रिया जारी की है यह बेहद जटिल है। उन्होंने कहा कि चिन्हीकरण के लिए केवल जेल जाने व घायलों की पुष्टि को ही आधार माना गया है। यह स्थिति सही नहीं है और तमाम ऐसे सक्रिय आंदोलनकारी भी रहे, जो न तो जेल गए और न ही घायल हुए। ऐसे में जरूरी हसि की चिह्ननीकरण के लिए स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआइयू) की रिपोर्ट को भी आधार बनाया जाए।

बीते वर्ष एक मंच पर आए थे राज्य आंदोलनकारी

सरकार की ओर से मांगों पर सकारात्मक रुख नहीं दिखाए जाने से नाराज राज्य आंदोलनकारियों के विभिन्न संगठन अपनी मांगें मनवाने के लिए बीते वर्ष दिसम्बर से एक मंच पर आ गए हैं। इसके लिए संगठनों ने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संयुक्त मोर्चा बनाया।

इन मांगों को लेकर भी आंदोलनरत

राज्य आंदोलकारियों की मांग है कि मुजफ्फरनगर, खटीमा, मसूरी गोलीकांड के दोषियों को सजा मिले, राज्य आंदोलनकारियों का 10 फीसद शिथिलता (क्षैतिज आरक्षण एक्ट) लागू हो, चार वर्षों से चिह्नीकरण के लंबित मामलों का निस्तारण व एक समान पेंशन लागू हो,  शहीद परिवार और राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों की पेंशन का शासनादेश लागू किया जाए, स्थायी राजधानी गैरसैंण घोषित की जाए, समूह-ग की व उपनल भर्ती में स्थायी निवास की अनिवार्यता हो, राज्य में सशक्त लोकायुक्त लागू हो, भू-कानून वापस लिया जाए और  उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शहीद स्मारकों का संरक्षण व निर्माण व्यवस्था लागू हो।

Related Articles

Back to top button