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एनआइटी प्रकरण की हो उच्चस्तरीय जांच: भुवन चंद्र खंडूड़ी

देहरादून : गढ़वाल सांसद एवं रक्षा संबंधी स्थायी समिति के सभापति मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने श्रीनगर गढ़वाल में निर्माणाधीन नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (एनआइटी) में हुए निर्माण कार्यों और दूसरे कार्यों में हो रहे विलंब पर रोष जताते हुए इसकी उच्चस्तरीय एवं समयबद्ध जांच पर जोर दिया है। इस सिलसिले में उन्होंने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा है। खंडूड़ी ने एनआइटी के निदेशक की भूमिका को भी कठघरे में खड़ा किया है।

सांसद खंडूड़ी ने पत्र में कहा है कि 2009 में स्वीकृत एनआइटी के स्थायी परिसर के निर्माण के लिए 2013 में उत्तराखंड सरकार ने भूमि आवंटित कर दी थी। तत्कालीन निदेशक के रुचि न लेने के कारण ही आठ वर्षों में निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है। इसी के चलते क्षेत्रीय जनता आंदोलित है। उन्होंने जानकारी दी है कि बोर्ड आफ गवर्नर ने एनआइटी के भवन निर्माण समेत अन्य कार्यों के लिए एक कमेटी गठित की थी। कमेटी ने एक फरवरी 2014 को परिसर स्थापना के लिए सभी तरह के कार्य नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) को सौंपने की स्वीकृति दे दी थी। बोर्ड ने अपनी चौथी बैठक में आर्किटेक्ट फर्म को मास्टर प्लान बनाने की स्वीकृति दी।

पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी ने एनआइटी के तत्कालीन निदेशक की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि 18 जुलाई 2014 में हुई कमेटी की छठवीं बैठक में निदेशक ने बताया कि परिसर के लिए कंपाउंड वॉल का कार्य शुरू हो चुका है। भवनों का प्लान अंतिम चरण में है।

इस पर कमेटी ने साइट डेवलपमेंट और परिसर के प्रथम चरण के निर्माण के लिए 503.99 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की। यही नहीं, कमेटी की आठवीं बैठक में निदेशक ने अवगत कराया कि चाहरदीवारी का कार्य 60 फीसद पूरा हो चुका है। साथ ही संपूर्ण परिसर के निर्माण में 1415 करोड़ की लागत आने की बात कही।

उन्होंने बताया कि कमेटी की 11 वीं बैठक में पुनरीक्षित डीपीआर मानव संसाधन मंत्रालय को भेजी गई, मगर 12 वीं बैठक में इसे वापस ले लिया गया। खंडूड़ी ने कहा कि बोर्ड की अधिकांश बैठकें दिल्ली व बंगलुरू में हुई, जिसमें एनआइटी निदेशक ने बोर्ड को भ्रमित किया और परिसर स्थापित करने में कोई रुचि नहीं ली।

पत्र में उन्होंने सवाल उठाया कि यदि भूमि का चयन सही नहीं था तो चाहरदीवारी का कार्य क्यों शुरू किया गया। एनबीसीसी को क्यों कार्य दिया गया और फिर पुनरीक्षित डीपीआर भेजने के बाद वापस क्यों ली गई। बता दें कि सांसद खंडूड़ी ने 10 दिसंबर 2014 में यह मामला तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री के समक्ष रखा था। साथ ही दो मई 2016 को लोकसभा में मामला उठाया।

 

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