अपराध

ट्रिप रिले घोटाला: जांच कमेटी पर ही उठने लगेे हैं सवाल

देहरादून : सूबे में घपलों, घोटालों और अनियमितताओं पर जांच की चादर डालकर ढकने की रवायत रही है। ट्रिप रिले खरीद के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। क्योंकि, जांच जिन अधिकारियों को सौंपी गई है, उनके हस्ताक्षर से ही ट्रिप रिले खरीद को स्वीकृति मिली। ये बात और है कि ट्रिप रिले खरीद की प्रक्रिया अधिशासी अभियंता स्तर पर होती है, लेकिन निदेशक परिचालन और प्रबंध निदेशक ही स्वीकृति देते हैं। अब सवाल ये खड़े हो रहे हैं कि क्या इस मामले में निष्पक्ष जांच हो पाएगी।

दरअसल, प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा ने मामला सामने आने के बाद जांच निदेशक परियोजना एमके जैन, निदेशक परिचालन अतुल अग्रवाल, मुख्य अभियंता पीसी पांडे को सौंपी है। जिस वक्त की खरीद है, उस वक्त एमके जैन पर प्रबंध निदेशक का कार्यभार भी था। मुख्य अभियंता पीसी पांडे ने भी ट्रिप रिले खरीद को स्वीकृति देने की संस्तुति की थी। ऊर्जा निगम में एक नहीं, बल्कि कई घोटाले सामने आ चुके हैं। अधिकांश में जांच हुई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं हुआ। मसलन, एक्यूरेट मीटर घोटाले के मामले में 10 अधिकारी दोषी माने गए थे। इनमें से सात सेवानिवृत्त हो चुके थे तो कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि, तीन अधिकारियों के एक-दो सालाना वेतन वृद्धि रोककर मामले को रफा-दफा कर दिया गया। आरोप ये भी लगे थे कि इस मसले में बड़े अधिकारियों को बचा लिया गया था।

ऊर्जा निगम के प्रवक्ता एके सिंह ने बताया कि सबसे वरिष्ठ अधिकारियों को जांच सौंपी गई है। टेंडर प्रक्रिया अधिशासी अभियंता स्तर पर पूरी होने के बाद सिर्फ स्वीकृति के लिए उच्चाधिकारियों के पास आती है। जांच रिपोर्ट को देखा जाएगा, अगर रिपोर्ट निष्पक्ष नहीं लगी तो फिर कोई कदम उठाया जाएगा।

ये है मामला 

फरवरी 2015 से मार्च 2017 तक खरीद के बारे में आरटीआइ के माध्यम से जानकारी मांगी गई। इसके बाद आरटीआइ मांगने वाले व्यक्ति ने उक्त किस्म की रिले के संबंध में एक कंपनी से कोटेशन मांगी। इसके बाद सामने आया कि बाजार में रिले की कीमत करीब 23 हजार रुपये है, जबकि निगम ने 180 रिले की खरीद करीब 36 हजार रुपये की दर से की। वहीं, मास्टर रिले की कीमत 3800 रुपये है और इसे निगम ने 16500 रुपये की दर से खरीदा। जिस कंपनी को रिले लगाने का काम दिया गया, उसने टेस्टिंग और स्थापित करने के लिए दस हजार रुपये लिए। जबकि, बाजार में इसकी दर महज चार हजार रुपये है। इतना ही नहीं, यह बात भी सामने आई है कि पुराने रिले उतारने और नई रिले लगाने के लिए अलग-अलग कंपनी को भुगतान किया गया। जबकि, नई रिले लगाने के वक्त ही पुरानी रिले को उतारा जाता है।

इनमें लग चुका है दाग 

-एक्यूरेट मीटर घोटाला

-कुंभ घोटाला

-कोमेट मीटर घोटाला

-ट्रांसफार्मर खरीद घोटाला

-नियमों को दरकिनार कर भर्ती परीक्षा एबीसी कंपनी से कराना।

पिटकुल में जांच ठंडे बस्ते में 

पावर ट्रांसमिशन कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) में घटिया ट्रांसफार्मर खरीदने का मामला भी ठंडे बस्ते में है। मामला सामने आने के बाद मुख्य अभियंता समेत चार अभियंता को निलंबित भी किया गया था, जो अब बहाल हो चुके हैं। मामले की थर्ड पार्टी जांच आइआइटी रुड़की को सौंपी गई थी। करीब छह महीने का वक्त गुजर चुका है, लेकिन अभी तक जांच पूरी नहीं हुई।

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