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नहाय-खाय के साथ महापर्व-छठ आज से, जानिए इससे प्रचलित लोक कथाएं

देहरादून: श्रद्धा, आस्था, समर्पण, शक्ति और सेवा भाव से जुड़ा चार दिवसीय पर्व छठ पूजा मंगलवार से नहाय-खाय के साथ आरंभ होगा। सोमवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड अंचल के लोग पूजा की तैयारी में जुटे रहे, जिसके चलते बाजारों में भीड़ रही।

छठ व्रत लोकपर्व है। यह एक कठिन तपस्या की तरह है। छठी माता के साथ इस पर्व पर होती है प्रकृति (सूर्य) की आराधना। पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सभी सामग्री प्राकृतिक होती है। उल्लास से लबरेज इस पर्व में सेवा और भक्ति भाव का विराट रूप दिखता है। चार दिन तक छठ के पारंपरिक गीत ‘कांच की बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’, ‘जल्दी जल्दी उग हे सूरज देव…’, ‘कइलीं बरतिया तोहार हे छठ मइया’ आदि से पूरा माहौल ही छठ के रंग में रंगा रहता है।

बिहारी महासभा के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह कहते हैं कि पर्व बांस निर्मित सूप व टोकरी, मिट्टी बर्तनों और गन्ना के रस, गुड़, चावल, गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की मिठास का प्रसार करता है। सभी एक दूसरे की मदद करते हुए इस पर्व को मनाते हैं। छठ में प्रकृति की पूजा की जाती है। चाहे छठ माता हों या शक्ति के स्रोत सूर्यदेव।

पौराणिक और लोक कथाएं

छठ पर्व को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक यह है कि लंका पर विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन भगवान राम और सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्यादय के समय पुन: अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद लिया था। दूसरी कथा ये है कि सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्‍य देते थे। आज भी छठ में अर्घ्‍य दिया जाता है। इनके अलावा भी काफी कथाएं इस पर्व के संबंध में प्रचलित हैं।

आज चलेगा सफाई अभियान

देहरादून में रह रहे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों के लोग रविवार को बिहारी महासभा के तत्वावधान में टपकेश्वर स्थित तमसा के घाट समेत अन्य घाटों की साफ-सफाई करेंगे। सफाई अभियान में हिस्सा लेने के लिए फेसबुक और व्हाट्स एप के जरिये लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है।

24 अक्टूबर: नहाय खाय

इस दिन व्रतियां सुबह पूरे घर की साफ-सफाई करती हैं। फिर स्नान के बाद लौकी, दाल और चावल से बने प्रसाद को ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करती हैं।

25 अक्टूबर: खरना

खरना के दिन उपवास शुरू होता है और परिवार के श्रेष्ठ महिला 12 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। शाम के वक्त छठी माता को गुड़ वाली खीर और रोटी से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। साथ ही मौसम के तमाम फल छठी मां को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद गुड़ वाली खीर और रोटी के प्रसाद से महिलाएं निवृत होती हैं। व्रत को श्रेष्ठ महिला के अलावा अन्य महिलाएं व पुरुष भी कर सकते हैं।

26 अक्टूबर: संध्या अर्घ्‍य (पहला अर्घ्‍य)

खरना का उपवास खोलते ही महिलाएं 36 घंटे के लिए निर्जला उपवास ग्रहण करती हैं। पहले अर्घ्‍य के दिन बांस की टोकरी में अर्घ्‍य का सूप सजाया जाता है। शाम के वक्त व्रतियां नदी किनारे घाट पर एकत्र होकर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देती हैं।

27 अक्टूबर : उषा अर्घ्‍य (दूसरा अर्घ्‍य)

इस दिन सूर्य उदय से पहले ही व्रतियां घाट पर एकत्र हो जाती हैं और उगते सूरज को अर्घ्‍य देकर छठ व्रत का पारण करती हैं। अघ्र्य देने के बाद महिलाएं कच्चे दूध का शरबत पीती हैं।

संपादक कविन्द्र पयाल

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