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भूमि रिव्यू: संजय की दमदार एक्टिंग देखने से पहले जाने कैसी है फिल्म, कैसा रहा कमबैक

फिल्म: भूमि
निर्देशक: ओमंग कुमार
कलाकार: संजय दत्त, अदिति राव हैदरी, सिद्धांत गुप्ता, शेखर सुमन
संगीत: सचिन-जिगर
रेटिंग डेढ़ स्टार 

जेल से रिहा होने के बाद संजय दत्त चाहते थे कि उनकी कमबैक फिल्म मुन्नाभाई सीरिज की अगली फिल्म हो, लेकिन राजू हिरानी रणबीर कपूर को लेकर संजय दत्त की ही बायोपिक का पक्का मन बना चुके थे। कुछ ही महीनों बाद खबर आयी कि संजय दत्त ने ह्यभूमिह्ण नामक एक फिल्म साइन कर ली है, जो एक पिता-पुत्री के रिश्तों की कहानी है।
अब आगे…
पुरानी चीजों और बातों का अपना मजा होता है। खुद संजय दत्त की ही फिल्म ह्यथानेदारह्ण का गीत तम्मा तम्मा… इस साल का चार्टबस्टर गीत है। लेकिन संजय दत्त  के लिए ऐसी क्या मजबूरी थी, जो उन्होंने अपने कमबैक के लिए अस्सी-नब्बे के दशक जैसी घिसे-पिटे फार्मूले वाली कहानी चुनी। उनकी अभिनय क्षमता और क्रेज को देख कर ऐसा लगता है कि उन्हें इससे अच्छा कमबैक दिया जा सकता था।
ये कहानी है एक पिता अरुण सचदेव (संजय दत्त) और उसकी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) की, जो आगरा में रहते हैं। बाप-बेटी के बीच अनूठा प्यार है, जो दोनों को एक अलग हटके, प्यारे से बंधन में बांधे रखता है। भूमि शादी-ब्याह में ब्यूटीशियन का काम करती है और साथ में वेडिंग प्लानर भी है। उसे रात को काम से वापस आने में अकसर देर हो जाती है, तो उसका बापू उसके लिए खाना बना कर रखता है और थकी-हारी भूमि के सिर में चंपी भी करता है।  अरुण की जूतों की दुकान है। हर पिता की तरह उसका भी एक सपना है कि उसकी बेटी की भी शादी धूम-धाम से हो। वह चाहता है कि उसकी बेटी की शादी में आने वाले बारातियों को वह अपनी दुकान के जूते पहनाए। भूमि, नीरज (सिद्धांत गुप्ता) से प्रेम करती है और दोनों जल्द ही शादी भी करने वाले हैं। इधर, भूमि की शादी नजदीक है और ऐन मौके पर धौली, भूमि का किडनैप कर लेता है। उसका बलात्कार किया जाता है। अरुण और भूमि इंसाफ की गुहार के लिए कानून की चौखट तक भी जाते हैं, लेकिन कुछ नहीं होता। फिर एक दिन दोनों बाप-बेटी बदला लेने की ठानते हैं।

सबसे बड़ी बात ये है कि अगर आप कोई बदले की कहानी दिखाने जा रहे हैं, तो आपके पास कोई ढंग की कहानी होनी चाहिये। ये कहानी तो बिलकुल भी नहीं लुभाती। आपको पता है कि आगे क्या होने वाला है। कुछेक सीन्स को छोड़ कर पूरी फिल्म बेहद अजीब ढंग से आगे बढ़ती है। रिवेन्ज ड्रामा में एक घटना के बाद चीजें-बातें स्याह होने लगती हैं। एक बात ये हजम नहीं होती कि एक जूते बेचने वाला इंसान बदले के लिए सुपरहीरो कैसे बन सकता है और वो भी इस उम्र में? बदले का दर्द महसूस नहीं हो पाता। रोना-चीत्कार ड्रामा सा लगता है। यहां कहते हुए दुख होता है कि ह्यमैरी कॉमह्ण में प्रियंका चोपड़ा का अच्छा इस्तेमाल करने के बाद ओमंग कुमार ने ह्यसरबजीतह्ण में रणदीप हुड्डा का बेजा इस्तेमाल किया और ह्यभूमिह्ण में संजय दत्त और अदिति को ले डूबे। हालांकि एक गुस्सैल पिता के रूप में दत्त ने अपना दम बरकरार रखा है, लेकिन कहानी उनका साथ नहीं देती। उधर, ये विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि अदिति की पिछली फिल्म मणिरत्नम जैसे निर्देशक के साथ थी। उनका काम काबिलेतारीफ है। शरद केलकर के किरदार में नयापन तो नहीं है, लेकिन उनके पूरे व्यक्तित्व में एक धमक सी महसूस होती है। जब दर्शक सिनेमाघर के बाहर खड़े होकर इस फिल्म का पोस्टर बड़ी हरसतों से निहार रहे थे, तो लगा कि संजय दत्त को अपने कमबैक के लिए कोई दूसरी कहानी चुननी चाहिये थी, क्योंकि लोगों में उनका क्रेज अब भी है।

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