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लीसा की खुली और ई-नीलामी करेगी उत्तराखंड सरकार

देहरादून: प्रदेश में चीड़ के वनों से निकलने वाली वनोपज लीसा राज्य सरकार के परेशानी का सबब बन गया है। दो साल से इसकी खरीद में कंपनियों के रुचि न लेने कारण वन विभाग के दोनों प्रमुख गोदामों में तीन लाख कुंतल लीसा इकट्ठा हो गया है। इसे देखते हुए सरकार ने अब इसकी खुली और ई-नीलामी कराने का फैसला लिया है। यानी अब कोई भी इसमें भागीदारी कर सकता है। इसके लिए महकमे ने कवायद शुरू कर दी है।

राज्य में वन विभाग के अधीन वन क्षेत्रों में करीब 15 फीसद हिस्से में चीड़ के वनों का कब्जा है। चीड़ के इन पेड़ों से प्रतिवर्ष औसतन डेढ़ लाख कुंतल लीसा का टिपान होता है। काठगोदाम और ऋषिकेश स्थिति गोदामों में इसका भंडारण होता है और फिर इसकी नीलामी की जाती है। इसके लिए तय व्यवस्था के तहत 50 फीसद लीसा राज्य की कंपनियां, 25-25 फीसद खादी ग्रामोद्योग व राज्य से बाहर की कंपनियों को बिक्री करने का प्रावधान है।

इस बीच दो साल से कंपनियों ने लीसा खरीदने में अचानक रुचि दिखानी बंद कर दी। इस पर सरकार ने पिछले साल लीसा का छह हजार रुपये प्रति कुंतल बेस प्राइस तय किया, फिर भी लीसा की बिक्री नहीं हुई। नतीजतन, वन विभाग के दोनों गोदामों में 3.29 लाख कुंतल लीसा जमा हो गया।

जैसे-तैसे कर गुजरे पिछले पांच माह में 32 हजार कुंतल लीसा ही वन विभाग निकाल पाया। अभी भी दोनों गोदामों में 2.94 लाख कुंतल लीसा पड़ा हुआ है। अति ज्वलनशील होने के कारण इसके भंडारण ने पेशानी में बल डाले हुए हैं।

इसे देखते हुए सरकार ने अब इस लीसे के निस्तारण के लिए पूर्व व्यवस्था की बंदिश हटाकर इसकी खुली नीलामी कराने का निर्णय लिया है। नोडल अधिकारी लीसा एसवी शर्मा के अनुसार पूर्व में मुख्यमंत्री ने भी लीसा निस्तारण के निर्देश दिए थे। इस क्रम में कवायद शुरू कर दी गई है। अब कोई भी कंपनी यह लीसा खरीद कर सकेगी।

बेहद उपयोगी है लीसा

चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले लीसे का मुख्य उपयोग तारपीन का तेल बनाने में होता है। इसके अलावा कॉस्मेटिक उत्पादों के साथ ही अन्य कई उत्पादों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

 

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