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शोधकर्ताओं को मिली कामयाबी, सिजोफ्रेनिया की गंभीरता से जुड़े जीन वैरिएंट की हुई पहचान

शोधकर्ताओं ने सिजोफ्रेनिया की गंभीरता से जुड़े जीन वैरिएंट का पता लगाया है। एक अध्ययन के दौरान विज्ञानियों ने पाया कि जो लोग इस बीमारी के अति गंभीर रूप का सामना कर रहे हैं, उनमें अपेक्षाकृत अधिक संख्या में दुर्लभ म्युटेशन हुए हैं। शोध निष्कर्ष पीएनएएस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जो सिजोफ्रेनिया की आनुवांशिकी पर नया प्रकाश डालता है और बीमारी के खतरों की पहचान तथा इलाज पद्धति के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

अमेरिका के बायलर कालेज आफ मेडिसिन में मनोचिकित्सा एवं व्यवहार विज्ञान के सहायक प्रोफेसर तथा अध्ययन के प्रमुख लेखक एंथनी डब्ल्यू. जोघबी के अनुसार, ‘शोध परिणाम न्यूरोसाइकिएट्रिक विकारों के आनुवंशिक जोखिम की पहचान के लिए प्रभावी रणनीति को रेखांकित करते हैं। हमें उम्मीद है कि ये परिणाम प्रभावी इलाज की खोज में मददगार साबित होंगे।’ सिजोफ्रेनिया एक पुरानी बीमारी है जो मस्तिष्क के कार्यों को बाधित करती है। यह मतिभ्रम व स्मरण से जुड़ी अन्य परेशानियां पैदा करती है। इसके आनुवंशिक होने का खतरा 60-80 फीसद है।

अध्ययन में विज्ञानियों ने सिजोफ्रेनिया के 112 गंभीर मरीजों व बीमारी के हल्के प्रभाव वाले 218 लोगों को शामिल किया तथा उनके परिणामों की तुलना करीब 5,000 वैसे लोगों से की गई, जिनमें यह बीमारी नियंत्रित थी। इस दौरान विज्ञानियों ने पाया कि सिजोफ्रेनिया के गंभीर मरीजों के जीन में अपेक्षाकृत काफी अधिक घातक म्युटेशन हुए हैं। गंभीर मरीजों में 48 फीसद ऐसे थे, जिनके कम से कम एक जीन में दुर्लभ व घातक म्युटेशन हुआ था।

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