राजनीति

हरदा के मुद्दों के इर्द-गिर्द रणनीति बनाने को मजबूर प्रदेश कांग्रेस

देहरादून: सूबे में कांग्रेस की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भले ही हाशिये पर हों, लेकिन अपनी सक्रियता के बूते वह पार्टी के प्रदेश संगठन पर भारी पड़ रहे हैं। हालत यह है कि रावत जिन मुद्दों को उठाकर पहले बाजी मार रहे हैं, बाद में संगठन को उन्हीं के इर्द-गिर्द अपनी रणनीति का ताना-बाना बुनने को मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में फिजा में यह सवाल भी तैर रहा है कि हरदा अपनी सक्रियता के बूते अलहदा चलेंगे या प्रदेश संगठन के साथ कदमताल करते दिखाई देंगे। साथ ही, क्या पार्टी हाईकमान की नजरों में दोबारा पहली जैसी जगह बना पाना उनके लिए मुमकिन होगा।

राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव की बिसात में बाजी भले ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हाथ नहीं लगी और वह हार भी गए, लेकिन अपने दमखम के बूते वह अब भी पार्टी से कई मायनों में आगे ही नजर आ रहे हैं। मामला चाहे सत्तारूढ़ भाजपा या राज्य सरकार पर हमले का हो, या केंद्र की मोदी सरकार को निशाने पर लेने का, हरीश रावत ऐसे मौकों पर प्रदेश संगठन से पहले ही मोर्चा ले रहे हैं।

यही नहीं, राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ाने के लिए जमीन पर रणनीति को अमलीजामा पहनाने में भी हरदा आगे हैं। पंचायतों में कांग्रेस की मजबूत पैठ को ढीला करने की सत्तारूढ़ भाजपा की कोशिशों के खिलाफ उन्होंने हाल ही में पिथौरागढ़ जिले में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला तो मुख्यमंत्री रहते हुए जिस पंचेश्वर बांध के निर्माण को लेकर वह मुस्तैद दिखे, अब उसी मामले में स्थानीय जन भावनाओं का हवाला देकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं।

प्रदेश में कांग्रेस जब नाजुक मोड़ पर खड़ी है, ऐसे में हरीश रावत ने भाजपा सरकार बनने के बाद जनता की नब्ज पकड़ने से लेकर सरकार की कमजोर नस को मरोड़ने में देर नहीं की। हाल ही में धान खरीद नीति जारी करने में हो रही देरी को लेकर हरदा बरसे तो शासन ने उसी दिन आनन-फानन धान खरीद नीति जारी कर दी।

हालांकि, किसानों और आम जनता के फीडबैक को लेकर प्रतिक्रिया के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश संगठन में एक तरह की दूरी बनी हुई है। राजनीतिक जानकार इसे प्रभुत्व को लेकर रस्साकशी के तौर भी देख रहे हैं। साथ ही इसे हाईकमान के लिए हरदा के संकेतों के रूप भी लिया जा रहा है।

गैर मौजूद रहे हरीश रावत

प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में राज्यसभा सांसद और उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर हमलावर रहे, लेकिन इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की गैरमौजूदगी पार्टी हलकों में चर्चा का विषय रही। राज बब्बर के साथ ही कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगा।

रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में ही राज बब्बर उत्तराखंड से राज्यसभा में भेजे गए। ऐसे में हरीश रावत की अनुपस्थिति को पार्टी के साथ उनकी दूरी से जोड़कर चर्चाएं जोर पकड़े रहीं।

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