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भारतीय नौसेना अकादमी में दिल्ली श्रृंखला की समुद्री शक्ति 2019 संगोष्ठी प्रारंभ

नई दिल्ली: वार्षिक दिल्ली संगोष्ठी का छठा संस्करण नई दिल्ली में भारतीय नौसेना अकादमी में प्रारंभ हुआ। सेमिनार के छठे संस्करण का विषय है- राष्ट्रीय निर्माण समुद्री शक्ति की भूमिका। दो दिन की इस संगोष्ठी में अनेक सेवारत तथा अवकाशप्राप्त वरिष्ठ नौसेनिक अधिकारी, जाने-माने शिक्षाविद्, थिंक टैंक के प्रतिनिधि, रक्षा विश्लेषक तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति भाग ले रहे हैं।

संगोष्ठी में वाइस एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी, एवीएसएम,एनएम कमांडेंट भारतीय नौसेना अकादमी ने प्रारंभिक संबोधन किया। इसके बाद मुख्य अतिथि भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल माधवेन्द्र सिंह, एवीएसएम, एनएम (सेवानिवृत्त) ने प्रमुख भाषण दिया।

आज के पहले सत्र के विषय – समुद्री शक्ति बनाम भूशक्ति – ऐतिहासिक परिदृश्य की अध्यक्षता डॉ. दत्तेश पारूलेकर ने की। सुरक्षा तटः समुद्र में श्रेष्ठता विषय पर कमांडर बी. श्रीनिवास ने प्रजेंटेशन दिया। अधिकारी नेविगेशन तथा डायरेक्शन विशेषज्ञ हैं और गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून में डिप्लोमा हैं। इस सत्र में समुद्री शक्ति तथा भूशक्ति में अंतर, दोनों शक्तियों की आपसी निर्भरता पर विचार-विमर्श किया गया।

दूसरा पत्र कोमोडोर श्रीकांत बी. केसनुर ने समुद्र शक्ति बनाम भूशक्ति भारतीय (भारतीय नौसेना) परिदृश्य पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि किस तरह भारतीय चिंतकों ने जमीनी सीमा के साथ भारत की व्यस्तता को उजागर किया और बताया कि किस तरह हम पर समुद्री अनदेखी के दोष मढ़े गए हैं। प्रजेंटेशन में नौसेना की स्वतंत्रता तथा खरीदारी के संबंध में नौसेना के विकास तथा धारणाओं और सिद्धांतों की वृद्धि पर विचार व्यक्त किए गए।

पहले दिन के सत्र के अंत में पश्चिमी नौसेना कमान के पूर्व फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा, पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त) ने विचार व्यक्त किए।

आज के दूसरे सत्र में समुद्री शक्ति तथा भू-आर्थिक परिवेश विषय़ पर विचार-विमर्श किया गया। इसकी अध्यक्षता कैप्टन आलोक बंसल ने की। कोमोडोर ओडाक्कल जॉनसन ने उभरती भू-आर्थिक परिवेश में समुद्री शक्ति के बढ़ते प्रभाव और कोमोडोर गोपाल सूरी ने समुद्री शक्ति तथा भू-आर्थिक परिवेश पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। दोनों पत्रों में प्रारंभिक, मध्ययुगीन तथा आधुनिक काल में समुद्री इतिहास के माध्यम से भू-आर्थिक परिवेश की प्रासंगिकता की समीक्षा की गई।

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