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डॉ. हर्षवर्धन ने टीबी वैक्सीन पर 5वें वर्चुअल ग्लोबल फोरम को संबोधित किया

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से टीबी वैक्सीन पर 5वें ग्लोबल फोरम को संबोधित किया। टीबी वैक्‍सीन पर ग्लोबल फोरम दुनिया में तपेदिक (टीबी) की रोकथाम के लिए नए टीकों को विकसित करने और उनकी तैनाती के लिए दुनिया भर के हितधारकों का सबसे बड़ा सम्मेलन है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘आज हम एक अभूतपूर्व वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं और इससे तपेदिक के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक समुदाय द्वारा हासिल की गई सभी प्रगति के पटरी से उतने का खतरा पैदा हो गया है। वर्ष 2020 में हम लोगों ने देखा कि किस प्रकार स्थानीय एवं राष्ट्रीय लॉकडाउन और अन्य सख्‍त उपायों को लागू करने संबंधी सरकार की मजबूरी के कारण गैर-कोविड सेवाएं प्रभावित हुईं। दुनिया भर में राष्ट्रीय तपेदिक कार्यक्रम को भी इस संकट का शिकार होना पड़ा है। इससे हमारी दशकों की प्रगति बाधित हुई है। हालांकि हमें किसी भी सूरत में ऐसा नहीं होने देना चाहिए। तपेदिक के खिलाफ जंग में हमारे प्रयासों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है और हमें पिछले पांच वर्षों के दौरान हासिल प्रगति को इस वैश्विक महामारी का भेंट नहीं होने देना चाहिए।’

वैश्विक स्‍तर पर भारत में टीबी के सबसे बड़े बोझ का उल्‍लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि तपेदिक भारत की सबसे गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। यह रोगियों और समुदायों के लिए स्वास्थ्य, सामाजिक और वित्तीय व्‍यवस्‍थाओं के लिए विध्‍वंशक है। वैश्विक स्‍तर पर संख्या के लिहाज से करीब 2.64 लाख टीबी रोगियों के साथ भारत में टीबी का सबसे बड़ा बोझ है।’

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने टीबी के उन्‍मूलन के लिए सरकार की राजनीतिक प्रतिबद्धता दोहराई। उन्‍होंने कहा, ‘हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत में हमने इस भयानक बीमारी से लड़ने के लिए अभूतपूर्व राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाई है। हमने न केवल 2025 तक तपेदिक के उन्‍मूलन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है बल्कि हमने यह भी सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की है कि कोविड के कारण हमारे टीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्रभावित न होने पाए। उच्च-गुणवत्ता वाली दवाएं, डिजिटल तकनीक, निजी क्षेत्र एवं समुदायों को शामिल करते हुए स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली में सभी स्‍तर पर टीबी सेवाओं को एकीकृत करने आदि पर ध्‍यान दिया जा रहा है ताकि देश में टीबी के मामलों और मृत्यु दर में तेजी से कमी लाई जा सके।’

डॉ. हर्षवर्धन ने 2025 तक टीबी उन्‍मूलन की दिशा में हासिल की गई भारत की उपलब्धियों को उजागर करते हुए कहा, ‘दिसंबर 2020 तक भारत 18 लाख से अधिक रोगियों के पंजीकरण के साथ टीबी नामांकन में कोविड पूर्व स्‍तर तक लौट आया था जो अप्रैल 2020 में किए गए हमारे अनुमानों से 11 फीसदी अधिक था। निजी क्षेत्र ने भी 5 लाख से अधिक रोगियों को पंजीकृत करते हुए महत्वपूर्ण योगदान किया है। कुल पंजीकृत रोगियों में से 95 प्रतिशत से अधिक का इलाज किया गया। मुझे इस वैश्विक मंच पर यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर के जिला बडगाम को क्रमशः देश का पहला टीबी मुक्त केंद्र शासित प्रदेश और देश का पहला टीबी मुक्त जिला घोषित किया गया है। मैं इसे लधु क्षेत्रों से टीबी उन्मूलन के प्रयास में समर्थ होने की एक छोटी लेकिन बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि मानता हूं। हमने टीबी मुक्त भारत अभियान शुरू किया है- जिसका अर्थ है देश में टीबी उन्‍मूलन के लिए युद्ध स्तर पर अभियान चलाना- ताकि टीबी के खिलाफ जंग को सामुदायिक स्तर पर लाते हुए उसे एक जन आंदोलन बनाया जा सके।’ 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि मौजूदा वैश्विक महामारी ने अनिवार्यता के प्रति मानव जाति की संवेदनशीलता को प्रदर्शित किया है और बताया है कि हमें कहीं अधिक गति एवं पूर्वानुमान के साथ काम करना होगा। उन्‍होंने कहा, ‘कोविड वैश्विक महामारी ने हमें दिखाया है कि यदि हम एकजुट हो जाएं तो हम एक साल से भी कम समय में टीका लगा सकते हैं। हमने कोविड के लिए जैसा किया है उसी तरह हमें उन्‍नत प्रौद्योगिकी एवं उत्‍पाद के विकास, वैज्ञानिक क्षमताओं का निर्माण एवं सुदृीढीकरण और कार्यान्वयन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।’

डॉ. हर्षवर्धन ने आगे कहा, ‘इंडिया टीबी रिसर्च कंसोर्टियम के जरिये इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च नई दवाओं, डायग्नोस्टिक्स, टीकों और चिकित्सा के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वे विभिन्‍न देशों के साथ सहयोग के लिए ब्रिक्स टीबी रिसर्च नेटवर्क के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं।’

डॉ. हर्षवर्धन ने अपने संबोधन के अंत में शोध समुदाय को तेजी से कार्य करने के लिए प्रेरित किया। उन्‍होंने कहा, ‘टीबी वैक्‍सीन पर यह ग्‍लोबल फोरम समय की मांग है। मैं तपेदिक के उन्‍मूलन के लिए इन लक्ष्यों और रूपरेखा के साथ आप सभी के साथ काम करना चाहूंगा। भारत हमेशा से एक विनिर्माण केंद्र रहा है। चाहे दवा हो अथवा टीका या डायग्‍नोटिक्‍स, हमने इसे प्रदर्शित किया है। मुझे विश्‍वास है कि भारत इस मार्ग का नेतृत्व कर सकता है और करेगा। मुझे विश्‍वास है कि सभी हितधारकों के साथ मिलकर लगातार प्रयास करने से हमें उस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी जो हमने इस फोरम में खुद के लिए निर्धारित किया है।’

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने टीबी वैक्‍सीन पर चर्चा करने के लिए आज एकत्रित हुए सभी को बधाई दी। उन्होंने वैश्विक समुदाय से पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित करने के नए सिरे से दोगुना प्रयास करने का आह्वान किया ताकि 2023 तक टीबी वैक्‍सीन का विकास किया जा सके और भारत में 2025 तक और वैश्विक स्‍तर पर 2030 से पहले टीबी को खत्‍म किया जा सके। उन्‍होंने इस खतरनाक वैश्विक महामारी के कारण दुनिया भर में और भारत में अपने करीबी एवं प्रियजनों को खोने वालों के प्रति गहरी संवेदना व्‍यक्‍त की।

इस वर्चुअल कार्यक्रम में ग्‍लोबल फोरम के सह-अध्‍यक्ष एवं ट्यूबरक्‍लोसिस वैक्‍सीन इनिशिएटिव के कार्यकारी निदेशक डॉ. निक ड्रैगर, ग्लोबल फोरम सह अध्यक्ष डॉ. मार्क फिनबर्ग, स्टॉप टीबी पार्टनरशिप वर्किंग ग्रुप ऑन न्यू टीबी वैक्‍सीन के अध्यक्ष डॉ. डेविड लेविंशन, स्टॉप टीबी पार्टनरशिप की कार्यकारी निदेशक डॉ. लुसिका दित्‍यू, विट्स रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड एचआईवी इंस्टीट्यूट की संस्‍थापक एवं कार्यकारी निदेशक प्रो. हेलन रीस, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के टीबी एवं एचआईवी कार्यक्रम की निदेशक डॉ. एमिलियो ए. एमिनी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्‍सस डिजीज के माइक्रोबायोलॉजी एवं संक्रामक रोग विभाग की निदेशक डॉ. एमिली एरबेल्डिंग और यूरोपियन एंड डेवलपिंग कंट्रीज क्‍लीनिकल ट्रायल पार्टनरशिप के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल मकांगा मैजूद थे।

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