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स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) पर मीडिया का स्पष्टीकरण

नई दिल्ली: कल द टेलीग्राफ में “स्वच्छ भारत के बारे में सच्चाई” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत की गई प्रगति और राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2018-19 के निष्कर्षों की सत्यता के बारे में किए गए दावों पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करना चाहेगा।

इस रिपोर्ट में राष्ट्रव्यापी 90240 घरेलू सर्वेक्षण, एनएआरएसएस, जिसे 6000 से अधिक गांवों में संचालित किया गया था, की तुलना आर.आई.सी.इ  द्वारा चार राज्यों में किये गये अध्ययन के साथ की गई है जिसमें 4 राज्यों के 157 गांवों में केवल 1558 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। आश्चर्य की बात है कि ऐसा लगता है कि इस रिपोर्ट में एनएआरएसएस सर्वेक्षण की तुलना में बड़े पैमाने पर संख्या के लिहाज से इस महत्वहीन और गैर-प्रतिनिधि नमूना सर्वेक्षण को अधिक विश्वसनीयता दी गई है। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि एनएआरएसएस की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं को एक सशक्त और स्वतंत्र विशेषज्ञ कार्य समूह (इडब्ल्यूजी) द्वारा विकसित और अनुमोदित किया गया है, जिसमें सांख्यिकी और स्वच्छता के प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनमें प्रोफेसर अमिताभ कुंडू, डॉ. एन.सी.सक्सेना, विश्व बैंक, यूनिसेफ, बीएमजीएफ, वाटर ऐड इंडिया, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) शामिल हैं। इडब्ल्यूजी ने संपूर्ण सर्वेक्षण प्रक्रिया की देखरेख की और कुछ सदस्यों ने डेटा संग्रह सत्यापित करने की प्रक्रिया और परिणामों की पूरी तरह से गुणवत्ता जांच करने के लिए प्रक्षेत्र का दौरा भी किया।

यह रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ द्वारा सत्यापित एनएआरएसएस सर्वेक्षण को “सांख्यिकीय बाजीगरी” कहती है जबकि आर.आई.सी.ई  के आंकड़ों पर विश्वास करती है जिसकी प्रणाली में अंतर था और जो सर्वेक्षणकर्ताओं के भेदभाव से ग्रसित था, जो प्रश्नावली डिजाइन से ही स्पष्ट था। इन अंतरालों को इस मंत्रालय ने 9 जनवरी, 2019 की पसूका वेबसाइट पर प्रकाशित एक मीडिया वक्तव्य के माध्यम से विस्तार से रेखांकित किया है।

एनएआरएसएस 2018-19 देश में अब तक का सबसे बड़ा स्वतंत्र स्वच्छता सर्वेक्षण है, जो इसे देश का सबसे प्रतिनिधि स्वच्छता सर्वेक्षण बनाता है। सर्वेक्षण में ग्रामीण भारत में शौचालय का उपयोग 96.5% पाया गया है। अतीत में किए गए दो और स्वतंत्र सर्वेक्षण- 2017 में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा और 2016 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन ने भी इन शौचालयों के उपयोग को क्रमशः 91% और 95% पाया।

ये परिणाम खुद अपने गवाह हैं और जमीनी स्तर पर सही व्यवहार परिवर्तन के बिना इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। व्यवहार परिवर्तन के बजाय शौचालय निर्माण पर केंद्रित इस रिपोर्ट में किए गए दावे, इसलिए, या तो अज्ञानतापूर्ण या भेदभावपूर्ण लगते हैं। इस रिपोर्ट में 2014 में शुरू किए गए एक कार्यक्रम को गलत साबित करने के उद्देश्य से 2008 के एक अध्ययन को उद्धृत किया गया है।

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) ग्रामीण भारत में लोक केन्द्रित एक स्वच्छता आंदोलन है और अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से मुक्त भारत अर्जित करने की राह पर है।

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