उत्तर प्रदेश

बाघों से ही वनों का अस्तित्व है, वन जीवन का आधार है

लखनऊ: बाघ हमारे देश का राष्ट्रीय पशु है और भारतीय संस्कृति में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है। टाइगर को आमतौर पर ऊर्जा और विशाल ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। जब कभी भी जंगल की चर्चा होती है तो शेर, चीता, बाघ की चर्चा अवश्य होती है क्योंकि बिना बाघों के जंगल अधूरा रहता है। उन्हें जंगल का राजा भी कहा जाता है। बाघों एवं उनके प्राकृतवास के संरक्षण हेतु जनमानस में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वर्ष 2010 में आयोजित हुए सेन्ट पीटर्सबर्ग में बाघ सम्मेलन हुआ था, जिसमें 13 व्याघ्र राष्ट्रो द्वारा प्रतिभाग किया गया था। उस सम्मेलन में वैश्विक बाघ दिवस (ग्लोबल टाइगर डे) प्रत्येक वर्ष दिनांक 29 जुलाई को मनाने का निर्णय लिया गया। भारत वर्ष में भी इस दिवस पर निरन्तर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यमों से जनमानस में जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य के अन्तर्गत भारत सरकार के सहयोग से संचालित ’’प्रोजेक्ट टाइगर’’ लखीमपुरखीरी में दुधवा, पीलीभीत एवं अमानगढ़ (बिजनौर) टाइगर रिजर्व में भी हर वर्ष टाइगर संरक्षण हेतु जागरूकता के कार्यक्रम किये जाते हैं।
भारत वर्ष के राष्ट्रीय पशु बाघ को बचाने के लिये केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के सहयोग से व्याघ्र संरक्षण परियोजना चलायी जा रही है, जिसमें बाघ के अतिरिक्त अन्य परभक्षियों, भक्ष्य वन्य जीव एवं उनके प्राकृतवास का भी भरपूर संरक्षण हो रहा है। देश में बाघ संरक्षण के अभियान में उत्तर प्रदेश राज्य महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं। बाघ संरक्षण हेतु किये गए प्रयासों के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश में बाघों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। श्श्।सस पदकपं जपहमत मेजपउंजपवद.2014श्श् में बाघों की कुल संख्या 117 पायी गयी थी, वहीं श्श्।सस पदकपं जपहमत मेजपउंजपवद.2018 की गणना में यह संख्या 173 पायी गयी है। इस प्रकार बाघों की संख्या में 04 वर्षों में 48 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी, जो देश स्तरीय औसत (33 प्रतिशत) से कहीं ज्यादा है। इसका मुख्य कारण उनकी बेहतर सुरक्षा व्यवस्था, प्राकृत्वास सुधार, प्रत्येक स्तर पर बेहतर समन्वय एवं सहयोग रहा है।
सेंट पीटर्सबर्ग में हुए सम्मेलन में बाघों की संख्या वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य के सापेक्ष पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या निर्धारित समय सीमा से पूर्व ही  दोगुनी हो जाने के फलस्वरूप पीलीभीत टाइगर रिजर्व को अन्तर्राष्ट्रीय ज्ग्2 पुरस्कार से अलंकृत किया गया है। दुधवा टाइगर रिजर्व पेट्रोलिंग के लिये देश के समस्त टाइगर रिजर्वो द्वारा उपयोग किये जा रहे परिष्कृत ‘‘एम-स्ट्राईप्स‘‘ ऐप के माध्यम से पेट्रोलिंग करने में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार, भारत सरकार एवं भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण हुए देश व्यापी लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2020 के माह मार्च एवं अप्रैल में दुघवा टाइगर रिजर्व की पेट्रोलिंग में प्रदर्शन सम्पूर्ण देश में सर्वोत्तम रहा है। इन दोनों ही माहों में दुधवा टाइगर रिजर्व के अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों द्वारा क्रमशः लगभग 78000 व 79000 कि0मी0 पेट्रोलिंग की गयी।
बाघों से ही वनों का अस्तित्व है एवं वन जीवन के आधार है। यदि अगली पीढ़ियों के भविष्य के बारे में सोचा जाये तो वनों केा संरक्षण अतिआवश्यक है। इसी सोच के साथ इस वर्ष ‘‘ विश्व बाघ दिवस‘‘ (ग्लोबल टाइगर डे) का विषयवस्तु (ज्ीमउम) ‘‘ज्ीमपत ेनतअपअंस पे पद वनत ींदकेश्श् रखा गया है। इसका अर्थ यह है बाघों एवं मानव जीवन में अन्योनाश्रित सम्बन्ध है। इस कारण बाघों का भविष्य हमारे हाथों में है।
बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु भी है। वन क्षेत्रों में खाद्य श्रंृखला में बाघ सर्वोपरि वन्यजीव है। सर्वोपरि वन्यजीव के सुरक्षित रहने का तार्त्पय है कि खाद्य श्रंृखला में सारे वन्यजीव, घास, वनस्पतियॉ, पेड़-पौधें जलस्रोत सभी सुरक्षित है तथा वन्यजीवों के प्रजनन और सुरक्षित रहने हेतु उपयुक्त वातावरण है। इसी कारण वन क्षेत्र सुरक्षित रहें और समस्त प्राणीमात्र एवं मानवता के लिए शुद्ध हवा, पानी, वातावरण को बनाये रखा जाय। इसी को ध्यान में रखते हुए बाघ दिवस मनाया जाता है।

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