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कोयला मंत्रालय पर्यावरण संबंधी उपायों के लिए सतत विकास प्रकोष्ठ की स्थापना करेगा

नई दिल्ली: कोयला मंत्रालय ने देश में कोयला खनन को पर्यावरण के दृष्टिकोण

से सतत बनाने के उद्देश्य से सतत विकास प्रकोष्ठ स्थापित करने का निर्णय लिया है। प्रकोष्ठ का उद्देश्य खनन कार्य बंद होने के बाद पर्यावरण को होने वाले नुकसान से निपटना है। यह निर्णय इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि भविष्य में बहुत सी निजी कंपनियां कोयला खनन से जुडेंगी। खानों की उचित पुर्नवास के लिए वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यासों के अनुरूप दिशा-निर्देश तैयार किये जाने चाहिए।

सतत विकास प्रकोष्ठ की भूमिका   

 सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) योजना तैयार करेगा और कोयला कंपनियों को सलाह देगा। उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग और खनन का पर्यावरण पर न्यूनतम नुकसान विशेष ध्यान दिया जायेगा। इस संबंध में प्रकोष्ठ कोयला मंत्रालय के नोडल प्वाइंट के रूप में काम करेगा। प्रकोष्ठ पर्यावरण नुकसान को कम करने के उपायों पर एक नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार करेगा।

प्रकोष्ठ के कार्य

 एसडीसी के प्रमुख कार्य होंगे – आंकड़ों का संग्रह, आंकड़ों का विश्लेषण, सूचनाओं की प्रस्तुति, सूचना आधारित योजना तैयार करना, सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाना, परामर्श, नवोन्मेषी विचार, स्थल विशेष दृष्टिकोण ज्ञान को साझा करना तथा लोगों और समुदायों के जीवन को आसान बनाना। ये सभी कार्य योजनाबद्ध तरीके से पूरे किये जाएंगे।

  1. भूमि को बेहतर बनाना और वनीकरण

भारत में लगभग 2550 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कोयले के खान है।

खानों से संबंधित सभी प्रकार के आंकड़े, मानचित्र आदि जीआईएस आधारित प्लेटफार्म के जरिए इकट्टठे किये जाएंगे। जीआईएस संबंधी सभी गतिविधियां सीएमपीडीआईएल के द्वारा की जाएगी।

कोयला कंपनियों को उन क्षेत्रों की जानकारी दी जायेगी जहां पेड़ लगाए जा सकते है। खनन क्षेत्र की जमीन पर कृषि, बागवानी, नवीकरणीय ऊर्जा, नई टाउनशिप, पुनर्वास आदि की संभावनाओं की भी जांच की जाएगी।

  1. हवा की गुणवत्ता, उत्सर्जन और ध्वनि प्रवर्धन

कोयला कंपनियों को वायु तथा ध्वनि प्रदूषण को कम करने के उपायों के बारे में बताना जैसे पानी का छिड़काव, ध्वनि अवरोध आदि।

  1. खान जल प्रबंधन

कोयला खानों के संदर्भ में जल की मात्रा, गुणवत्ता, भूतल पर जल प्रवाह, खान के पानी को बाहर निकालना, भविष्य में जल उपलब्धता से संबंधित आंकड़ों का संग्रह किया जाएगा। आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर कोयला खान जल प्रबंधन योजना (सीएमडब्लयूएमपी) तैयार की जाएगी। इसके आधार पर पानी के भंडारण, शोधन और फिर से उपयोग के तरीकों की सलाह दी जाएगी ताकि इसका उपयोग सिंचाई, मछली-पालन, पर्यटन या उद्योग के लिए किया जा सके।

  1. अत्याधिक उपयोग किये जाने वाले खानों का सतत प्रबंधन 

जिन खानों पर बोझ अधिक है उनका फिर से उपयोग और पुनर्वास के लिए उपाय सुझाए जाएगे।

  1. सतत खान पर्यटन

खान क्षेत्रों के सुंदरीकरण, इकोपार्क और जलाशयों के निर्माण का उपयोग पर्यटन के उद्देश्य से किया जाएगा।

  1. योजना तैयार करना और निगरानी

विभिन्न कंपनियों के खान बंद करने की योजनाओं के संबंध में परामर्श देना।

पर्यावरण कोष तथा खान बंदी कोष के प्रभावी उपयोग की निगरानी करना।

भविष्य के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना।   

  1. नीति, शोध, शिक्षा और विस्तार

विशेष शोध और अध्ययन के लिए विशेषज्ञों/संस्थानों/संगठनों को नियुक्त किया  जाएगा।

सलाहकार बैठकों, कार्यशालाओं,  सेमीनार, क्षेत्र निरीक्षण, स्टडी टूर आदि का आयोजन किया जायेगा। 

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