उत्तराखंड समाचार

मेरी माँ मेरी पहली शिक्षक बनी: अक्षरा दलाल

देहरादून: ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन में हम जिस किसी से भी मिलेते  वो  हमे कुछ न कुछ जरूर सिखाते हैं और जीवन ऐसे शिक्षकों के बिना अधूरा हैं।  मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, मेरी माँ मेरी पहली शिक्षक बनी।

हमारे देश में एक कहावत हैं , बच्चों की परवरिश के तरीके से उनके चरित्र का निर्माण होता है, और उनके चरित्र से समाज का चरित्र बनता है, परिवार में तीन पीढ़ियों के बाद एक लौती बेटी होने के नाते,  मेरे परिवार ने मुझे बड़े ध्यान से , प्यार से चीजों को समझाया।  मैंने अपनी माँ के द्वारा सिखाए गए गुणों को अपने जीवन में मूर्त रूप देने की कोशिश की है। माँ जब भी किसी काम को अपने हाथ में लेती उसे वो  दृढ़ता और उत्कृष्टा से पूरा करती,  उनकी इसी सिख से मुझे  सफलता की कला में महारत हासिल करने में मदद मिली है। वे कहती हैं, जीवन में सफल होने के लिए आपको लगातार, प्रतिबद्ध और केंद्रित होकर काम करना होगा ।

माँ के द्वारा सिखाये गए कुछ सबक हैं:

  1. सम्मान अर्जित किया जाता है और  खरीदा नहीं जाता।
  2. क्रोध करने से केवल खुद का नुकसान होता है, चाहे वो रिश्तों का हो या अपने स्वास्थ का।
  3. कोई भी काम छोटा काम नहीं होता, हर काम के लिए परफेक्शन की जरूरत होती है। चाहे वो साफ-सफाई का ही काम क्यों न हो।
  4. हम सभी जीवन में किसी न किसी उद्देश्य से पैदा हुए हैं। इसलिए, एक पल भी बर्बाद न करें।

 माँ, वास्तव में, हमारे पहली शिक्षक होती है, और साक्षात  भगवान भीमेरी मां, सुश्री रूपल दलाल, जेडी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की कार्यकारी निदेशक, एक स्कूल प्रिंसिपल की बेटी थीं। इससे उन्हें संस्था को प्रभावी ढंग से चलाने में मदद मिली है। वह लोगों को अपने जीवन का फैसला लेने के लिए प्रेरित करने में विश्वास रखती है, ठीक वैसे ही जैसे उनकी मां किया करती थी।

जब एक व्यक्ति अपने दम पर कुछ तय करता है, तो वे  उस काम को पूर्ण करने के लिए खुद -ब-खुद  बाध्य हो जाता हैं। किसी काम के लिए दुसरो को प्रेरित करने के बजाय, मैं दूसरों को अपने निर्णय लेने के लिए प्रेरित करने में विश्वास रखती हूँ।  मेरी माँ कहती है ,जीवन की हर कठिनाई से निकलने का समाधान व्यक्ति खुद जनता है।

Related Articles

Back to top button