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प्रधानमंत्री का ‘वोकल फॉर लोकल’ आह्वान कृषि वानिकी के लिए अत्‍यंत प्रासंगिक है

नई दिल्ली: कृषि वानिकी किसानों को उद्योग जगत से जोड़ने के तरीकों पर चर्चा करने और प्रजातियों का सही चयन करने में किसानों की सहायता करने के लिए कार्यान्वित करने वाले राज्यों को जागरूक करने के लिए 13 जून 2020 को एक वेबिनार आयोजित किया गया। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग में सचिव श्री संजय अग्रवाल ने वेबिनार का उद्घाटन करते हुए किसानों का कल्याण सुनिश्चित करने हेतु उन्‍हें अधिकतम पारिश्रमिक सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र में लागू कि‍ए गए विभिन्न सुधारों के बारे में विस्‍तार से बताया। इन सुधारों में 1.63 लाख करोड़ रुपये का परिव्यय, सही मायनों में राष्ट्रीय बाजार स्थापित करने के लिए कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सुविधा) अध्यादेश 2020 लाना और अंतर-राज्य व्यापार बाधाओं को दूर करके एवं कृषि उपज की ई-ट्रेडिंग प्रदान करके किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए पसंदीदा बाजार चुनने का विकल्प देना शामिल हैं। उन्होंने कृषि वानिकी के कई उपयोगों पर प्रकाश डाला जिनमें किसानों के लिए अतिरिक्त आय, विशेषकर महिला एसएचजी के लिए आजीविका के साधन के रूप में नर्सरी, हरा चारा, फलीदार प्रजातियों के रोपण कर उर्वरकों की आवश्यकता को कम करना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन का पृथक्करण (अलग करना), इत्‍यादि शामिल हैं।

प्रधानमंत्री का ‘वोकल फॉर लोकल (हमारे स्‍वदेशी उत्‍पादों का गर्व से प्रचार करना) आह्वान कृषि वानिकी के लिए भी अत्‍यंत प्रासंगिक है। कृषि वानिकी कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं में आयात निर्भरता को कम करने के लिए उद्योग जगत को कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाने में अहम योगदान दे सकती है। कृषि वानिकी की पूर्व धारणा, जिसका अर्थ केवल इमारती लकड़ी की प्रजातियां है, पर किसानों और उद्योग जगत के दृष्टिकोण से नए सिरे से गौर करने की जरूरत है। चूंकि इमारती लकड़ी के पेड़ों की परिपक्वता अवधि लंबी होती है, इसलिए इनसे किसानों को प्रतिफल या रिटर्न काफी देर से मिलता है। हालांकि, कई ऐसे उभरते क्षेत्र या सेक्‍टर हैं जो किसानों को त्वरित रिटर्न सुनिश्चित करने के साथ-साथ उद्योग जगत की आवश्यकताओं को भी पूरा करेंगे जिनमें औषधीय एवं सुगंधित पौधे, रेशम, लाह, कागज व लुगदी, जैव ईंधनों के उत्पादन के लिए पेड़ जनित तेल बीज या ति‍लहन, इत्‍यादि शामिल हैं।

अपनी तरह की पहली नियोजित श्रृंखला के तहत इस वेबिनार में ये चार प्रमुख वक्ता थे- डॉ. जे.एल.एन. शास्त्री, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, श्री रोहित पंडित, महासचिव, इंडियन पेपर्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, डॉ. एच.के. कुलकर्णी, पूर्व वाइस प्रेसीडेंट, आईटीसी लिमिटेड और श्री रजित रंजन ओखण्डीर, मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सदस्य सचिव, केंद्रीय रेशम बोर्ड। औषधीय पौधों को बढ़ावा देना ‘आत्‍मनिर्भर भारत’ का एक प्रमुख घटक है और पेड़ आधारित एवं जैविक औषधीय उपज के लिए अभिसरण की काफी गुंजाइश है। कागज उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति में बाधाओं, जिसकी भरपाई आयात द्वारा की जा रही है, से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई। गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री उत्पादकता और इस तरह से किसानों को मिलने वाले रिटर्न में वृद्धि करने का मुख्‍य आधार है। प्रस्तुति के दौरान सही किस्मों की प्रतिरूप (क्लोनल) रोपण सामग्री के विशेष महत्व को रेखांकित किया गया, जो उद्योग जगत की आवश्यकता के अनुरूप भी होगा। केंद्रीय रेशम बोर्ड ने उन किसानों की सहायता करने का आश्वासन दिया जो विभिन्‍न रेशम मेजबान प्रजातियों का रोपण करते हैं। दरअसल, ये प्रजातियां औसतन 3-4 साल में ही रिटर्न देना शुरू कर देंगी, इसलिए ये कृषि वानिकी प्रणालियों के लिए आदर्श हैं।

निष्कर्ष के तौर पर राज्यों को सलाह दी गई कि वे फसलों की तर्ज पर ही रोपण-पूर्व एवं रोपण से लेकर कटाई तक अनुबंध पर खेती को प्रोत्साहित करें। मौजूदा एवं संभावित उद्योग दोनों को ही हब के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए और उनके ईर्द-गिर्द विभिन्‍न गतिविधियों की योजना बनाई जानी चाहिए। बहुउद्देशीय प्रजातियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि रिटर्न मिलना जल्द से जल्द शुरू हो सके। इससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के विजन को साकार करने में काफी मदद मिलेगी।

भारत वर्ष 2014 में ‘राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति’ तैयार करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इसके बाद उठाए गए अहम कदम के तहत ‘कृषि वानिकी के लिए उप मिशन’ वर्ष 2015 में शुरू किया गया, ताकि किसानों को फसलों के साथ-साथ वृक्षारोपण के लिए भी प्रोत्साहित करने में राज्यों की सहायता की जा सके। कृषि जलवायु क्षेत्र-वार कृषि वानिकी मॉडलों को आईसीएआर और आईसीएफआरई सहित विभिन्‍न अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित किया गया है। यह योजना वर्तमान में देश के 21 राज्यों में लागू की जा रही है।

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