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कृषि की उपज को प्रभावित करने वाले मसलों का तात्‍कालिकता की भावना से हल करें: उपराष्‍ट्रपति

उपराष्‍ट्रपति ने आज किसानों को अपनी फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोत्‍साहित करते हुए कृषि को लाभकारी, टिकाऊ और जलवायु के अनूकूल बनाने के लिए सम्मिलित प्रयास करने का आह्वान किया।

देश में सावधानीपूर्वक योजना बनाते हुए कृषि उत्‍पादन में विविधता लाने की जरूरत पर बल देते हुए उन्‍होंने कहा, “हमें अनाज की पैदावार घटाने तथा दालों, तिलहनों और अन्‍य फसलों का उत्‍पादन बढ़ाने की दिशा में सजगता से प्रयास करने होंगे।”

प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. वी. प्रवीण राव को ‘एम एस स्‍वामीनाथन पुरस्‍कार’ से सम्‍मानित करते हुए उन्‍होंने ड्रिप सिंचाई और सूक्ष्‍य सिंचाई तकनीकों के माध्‍यम से बेहतर जल प्रबंधन के साथ फसले उगाने में किसानों की सहायता करने के लिए  डॉ. राव के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की सराहना की। जल को दुर्लभ संसाधन करार देते हुए उन्‍होंने छोटे और मझौले किसानों की सहायता के लिए नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों से इसी तरह के प्रयासों के साथ आगे आने का अनुरोध किया ताकि उनके खेतों में जल का बेहतर उपयोग हो सके।

इस पुरस्‍कार की स्‍थापना सेवानिवृत्‍त आईसीएआर कर्मचारी संघ (आरआईसीएआरईए) और नुज़ीवीडु सीड्स लिमिटेड ने की।

भारत में कृषि नवजागरण लाने के लिए प्रो. स्‍वामीनाथन की प्रशंसा करते हुए श्री नायडु ने कहा कि उन्‍होंने कृषि और कृषि पद्धतियों में उल्‍लेखनीय योगदान के साथ भारत को गौरवांवित किया है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने किसानों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी प्रगति राष्‍ट्र की प्रगति को निर्धारित करती है। भारतीय कृषि द्वारा तेजी से की गई प्रगति का उल्लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि जहां एक ओर आजादी के समय अनाज की किल्‍लत का सामना करना पड़ा था,वहीं देश अब फसलों की प्रचुर मात्रा की समस्या का सामना कर रहा है। जहां एक ओर 1950-51 में खाद्यान्न का उत्पादन 50.83 मिलियन टन था, वहीं दूसरी ओर,  2020-21 में यह बढ़कर 308.66 मिलियन टन हो गया है। अन्‍य वस्‍तुओं में  दूध, अंडे, फलों और सब्जियों के उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसानों को प्रचूर मात्रा में उपलब्‍ध फसलों की जगह अधिक मांग वाली फसलों को उगाने के लिए प्रोत्‍साहित करने की जरूरत है। इस संबंध में उन्होंने किसानों के लिए आमदनी के टिकाऊ साधन सृजित करने के लिए उन्‍हें पारंपरिक फसलों के दायरे से आगे बढ़ने का सुझाव दिया तथा मवेशी, बागवानी, मत्स्य पालन, रेशम उत्पादन आदि जैसे विविध संबद्ध क्षेत्रों का रुख करने की जरूरत पर बल दिया।

इस बात पर गौर करते हुए कि कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों में खेतों के सिकुड़ते आकार, मानसून पर निर्भरता, सिंचाई तक सीमित पहुंच, समय पर कृषि ऋण न मिलना, कृषि उपज के लिए अलाभकारी मूल्य, कोल्‍ड स्‍टोरेज की सुविधाओं और एक व्यवहार्य विपणन नेटवर्क का न होना शामिल है, उन्‍होंने कहा, “हमें इन सभी मसलों को तात्‍कालिकता की भावना से हल करने की जरूरत है। हमें खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का विस्तार करने और कृषि उपज के लिए कीमतों का बेहतर पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है। केवल तभी भारतीय किसानों को उनकी पूरी क्षमता का अहसास होगा और केवल तभी खेती उनके लिए एक उत्पादक, लाभदायक और टिकाऊ गतिविधि बन पाएगी।उत्पादकता में सुधार लाना हमारी बड़ी आबादी की पोषण सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।”

श्री नायडु ने केंद्र और राज्‍यों, दोनों  से कृषि को लाभकारी बनाने के लिए समन्वित टीम इंडिया की भावना से काम करने का अनुरोध किया। उन्‍होंने कहा, “यह सब और भी आवश्यक है, क्योंकि अधिकांश किसान असंगठित और बेजु़बान हैं”। वह चाहते थे कि चार पी- संसद, राजनीतिक नेता, नीति निर्माता और प्रेस (यानी पार्लियामेंट, पोलिटकल लीडर्स, पॉलिसी मेकर्स और प्रेस) खेती और कृषि के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं।

श्री नायडु ने वैज्ञानिकों से विस्तार कार्यक्रमों कोआम किसान के लिए सुलभ और समझने योग्य बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “अनुसंधान संस्थानों को किसानों को समझ में आने वाली उनकी भाषा,मातृभाषा उन तक पहुंच बनानी चाहिए। उन्हें गांवों में किसानों तक पहुंच बनाने के लिए सभी आधुनिक ऑडियो-विजुअल साधनों का उपयोग करना चाहिए”।

श्री नायडु ने कहा कि कई तरह की बीमारियों से निपटने के लिए ज्‍वार, बाजरा, रागी और कंगनी जैसे मोटे अनाजों की पौष्टिक आहार के रूप में नए सिरे से पहचान की जा रही है। उन्‍होंने कहा कि  इन पौष्टिक आहारों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग करने तथा बहुमूल्‍य विदेशी मुद्रा कमाने की अपार संभावनाएं हैं।

भारत में उच्च गुणवत्ता वाले फलों और सब्जियों का बड़ा निर्यातक बनने का सामर्थ्‍य होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न केवल किसानों को वैश्वीकरण के लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी बल्कि इससे ग्रामीण भारत में रोजगार के साधनों का भी सृजन होगा और देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी मदद मिलेगी।

उपराष्ट्रपति ने मिट्टी का स्वास्थ्य की नहीं, बल्कि किसानों, खेतीहर मजदूरों और उपभोक्ताओं का  स्वास्थ्य भी सुनिश्चित करने के लिए कृषि रसायनों और उर्वरकों का इस्‍तेमाल कम करने के लिए रणनीतियां विकसित करने का भी आह्वान किया। इस बात पर गौर करते हुए कि कुछ कैंसरों का संबंध  भोजन में अवशेष के रूप में पाए जाने वाले जहरीले रसायनों सेहै, उपराष्ट्रपति ने रसायनों के कम इस्‍तेमाल वाली फसल उत्पादन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों और कृषि रसायन उद्योग से सभी के लाभ के लिए इस दिशा में काम करने का आग्रह किया।

इस कार्यक्रम में तेलंगाना के कृषि मंत्रीश्री निरंजन रेड्डी, कृषि आयुक्त, तेलंगानासरकार, श्री एम. रघुनंदन राव,आरआईसीएआरईए के अध्यक्ष, डॉ. एम.वी.आर. प्रसाद, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, नुजीवीडु सीड्स लिमिटेड, श्री एम प्रभाकर राव, कृषि वैज्ञानिक और अन्य ने भाग लिया।

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