उत्तर प्रदेश

मुख्यमंत्री ने वाराणसी स्थित श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मन्दिर में दर्शन-पूजन किया

लखनऊउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि आज से 646 वर्ष पूर्व काशी की इस पावन धरा पर संत रविदास जी के रूप में एक दिव्य ज्योति का प्रकटीकरण हुआ, जिन्होंने तत्कालीन भक्तिमार्ग के प्रख्यात संत सद्गुरू रामानन्द जी महाराज के सान्निध्य में तपस्या व साधना के माध्यम से सिद्धि प्राप्त की थी। आज उनकी सिद्धि के प्रसाद के फलस्वरूप मानवता के कल्याण का मार्ग जिस रूप में प्रशस्त होता है, वह हम सबको बहुत स्पष्ट दिखायी देता है।
मुख्यमंत्री जी आज यह विचार संत रविदास की जयन्ती के अवसर पर वाराणसी स्थित श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मन्दिर में व्यक्त कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने दर्शन-पूजन किया। उन्होंने कहा कि हम सभी जानते हैं कि भक्ति के साथ-साथ कर्म साधना को सद्गुरु ने सदैव महत्व दिया। उस कालखण्ड में उन्होंने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का कथन कर समाज को सद्कर्म के लिए प्रेरित किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संत रविदास की इस पावन जयन्ती पर समस्त देशवासियों की ओर से उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए एवं इस अवसर पर आयोजित किये जा रहे कार्यक्रमों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए एक संदेश भेजा है जिसमें उन्होंने कहा है कि संत रविदास जी के विचारों का विस्तार असीम है, उनके दर्शन और विचार सदैव प्रासंगिक हैं। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न हो। सामाजिक सुधार व समरसता के लिए वे आजीवन प्रयत्नशील रहे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने अपने संदेश में ‘ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न, छोट बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।’ का उल्लेख करते हुए यह भी कहा है कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए संत रविदास ने सौहार्द एवं भाईचारे की भावना पर बल दिया। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के जिस मंत्र के साथ आज हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं, उसमें संत रविदास जी के न्याय, समानता व सेवा पर आधारित कालजयी विचारों का भाव पूरी तरह से समाहित है। आजादी के अमृत कालखण्ड में संत रविदास जी के मूल्यों से प्रेरणा लेकर समावेशी समाज, भव्य राष्ट्र के निर्माण की दिशा में हम तेजी से अग्रसर हैं। हम सामूहिकता के सामथ्र्य के साथ उनके दिखाये गये रास्ते पर चलकर 21वीं सदी में विश्व पटल पर भारत को निश्चय ही ऊंचाईयों पर लेकर जायेंगे।

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