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बयां करने के लिये शब्द नहीं हैं, लंबे समय से इस पल का इंतजार था: सिंधु

पीवी सिंधु ने एकतरफा फाइनल में अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से हराया.

दो बार की रजत पदक विजेता पीवी सिंधु रविवार को आखिर में जब विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में अपना पहला स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहीं तो उनके पास अपनी खुशी बयां करने के लिये शब्द नहीं थे. सिंधु विश्व चैंपियनशिप का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय हैं. उन्होंने एकतरफा फाइनल में अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से हराया.

दो साल पहले ओकुहारा से हारी थी सिंधु
ठीक दो साल पहले ओकुहारा ने 110 मिनट तक चले बैडमिंटन के ऐतिहासिक मुकाबलों में से एक में सिंधु की स्वर्ण जीतने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था, लेकिन सिंधु आखिर में उसका बदला चुकता करने में सफल रही. सिंधु ने बाद में पत्रकारों से कहा, ‘मैं वास्तव में बहुत खुश हूं. मुझे इस जीत का इंतजार था और आखिर में मैं विश्व चैंपियन बन गयी.’

‘मैंने इस जीत का लंबा इंतजार किया’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पास कहने के लिये शब्द नहीं है क्योंकि मैं मैंने लंबा इंतजार किया. पिछली बार मैंने रजत पदक जीता, उससे पहले भी मुझे रजत पदक से संतोष करना पड़ा था और आखिर में मैं विश्व चैंपियन बन गयी. मैं वास्तव में बहुत खुश हूं. मैं लंबे समय से इसकी उम्मीद लगाये बैठी थी और आखिर में मैंने इसे हासिल किया और मैं इसका लुत्फ उठाना चाहती हूं. इसको महसूस करना चाहती हूं.’

वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में सिंधु के नाम 5वां मेडल सिंधु का यह विश्व चैंपियनशिप में पांचवां पदक है और इस तरह से महिला एकल में उन्होंने चीन की पूर्व ओलिंपिक और विश्व चैंपियन झांग निंग की बराबरी की. सिंधु ने इससे पहले लगातार दो रजत और दो कांस्य पदक जीते थे. सिंधु ने रियो ओलिंपिक खेल 2016 में भी रजत पदक जीता था. इसके अलावा उन्होंने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था. वह पिछले साल विश्व टूर फाइनल्स में भी उप विजेता रही थी.

सिंधु ने इस जीत का श्रेय अपने कोचों को दिया और इसे अपनी मां पी विजया को समर्पित किया. उन्होंने कहा, ‘मेरे कोच गोपी सर (पुलेला गोपीचंद) और किम (जी ह्यून) को काफी श्रेय जाता. मेरे माता पिता, सहयोगी स्टाफ ओर प्रायोजकों को भी श्रेय जाता है जिन्होंने मुझ पर विश्वास दिखाया.’

मां को समर्पित की जीत
सिंधु ने कहा, ‘मैं यह जीत अपनी मां को समर्पित करती हूं. आज उनका जन्मदिन है. मैं उन्हें कोई उपहार देने के बारे में सोच रही थी और आखिर में मैं उन्हें यह स्वर्ण पदक उपहार में देती हूं. अपने माता पिता के कारण ही मैं आज यहां तक पहुंच पायी हूं.’

राष्‍ट्रगान बजा तो आंखें हुईं नम
जब सेंट जाकोबशेल स्टेडियम में भी भारतीय राष्ट्रगान बज रहा था तो सिंधु नम आंखों से पोडियम पर खड़ी थी. उन्होंने कहा, ‘यह वास्तव में विशेष क्षण था जब तिरंगा लहराया जा रहा था और राष्ट्रगान बज रहा था. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. मेरे पास बयां करने के लिये शब्द नहीं है क्योंकि आप अपने देश के लिये खेलते हो और यह निश्चित तौर पर मेरे लिये गौरवशाली क्षण है.’

आम मैच की तरह खेलने से मिला फायदा
सिंधु ने कहा कि उन्होंने फाइनल को किसी अन्य मैच की तरह ही लिया जिससे उन पर से दबाव हट गया और वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने में सफल रही. उन्होंने कहा, ‘मैंने केवल अपने मैच पर ध्यान केंद्रित किया और यह नहीं सोचा कि यह फाइनल है. मैं केवल यह सोच रही थी कि यह अन्य मैच की तरह ही है जैसे कि मैं सेमीफाइनल और क्वार्टर फाइनल में खेली. मैंने यही तरीका अपनाया और अपना शत प्रतिशत दिया. जीत और हार बाद की बात है. मेरे लिये कोर्ट पर उतरकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना महत्वपूर्ण है.’ News Source News 18

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