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हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों पर फिर से गौर करने का समय है: उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि इतिहास की पाठ्यपुस्तकों पर फिर से गौर करने और देश के सभी हिस्सों के स्वतंत्रता सेनानियों को पर्याप्त महत्व देने का समय आ गया है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर आज चेन्नई में राजभवन में उनकी प्रतिमा का अनावरण करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास से हमारे बच्चों को प्रेरित होना चाहिए और उन्हें हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की जीवनियों को पढ़ना चाहिए।

श्री नायडू ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कई दिग्गज, जैसे कि सरदार वल्लभभाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर, श्री चिदंबरम पिल्लई, सुब्रमण्यम भारती, अल्लूरी सीताराम राजू और वीरापांडिया कत्ताबोमन को हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में समुचित स्थान नहीं मिला।

      उन्होंने कहा कि इतिहास विस्तृत होना चाहिए और हमारे अतीत के गौरव को फिर से हासिल करना चाहिए तथा भारत की समृद्ध संस्कृति एवं विरासत पर गर्व की भावना को सन्निहित करना चाहिए।

वीर सावरकर सहित सेलुलर जेल में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा झेली गई यातनाओं की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ लोग या तो उपेक्षा के कारण अथवा अपने रुझानों के कारण अपने योगदान को कमतर बताने की कोशिश कर रहे हैं।

युवाओं को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान करते हुए, श्री नायडू ने उनसे प्रगतिशील, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी भारत के निर्माण के लिए प्रयास करने को कहा।

उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि नेताजी का दृष्टिकोण और उनका राष्ट्रवादी दृष्टिकोण नए भारत के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण पथप्रदर्शक ज्योतिपुंज हो सकता है।

हमारे स्वतंत्रता संग्राम में दर्शनों और पहुंचों की विविधता के बारे में चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों का एक गुलदस्ता था, जिसमें शांतिपूर्ण सत्याग्रह से लेकर अधिक संगठित विरोध शामिल था।

उन्होंने कहा, “ऐसे में जबकि गांधीजी ‘अहिंसा’ को हमारे संघर्ष के एक शक्तिशाली हथियार का रूप दे रहे थे, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की ओर से अंग्रेजों को भगाने के प्रयास निरंतर जारी थे।”

जबकि गांधीजी नेताजी के उग्र दृष्टिकोण के पक्ष में नहीं थे, फिर भी उन्होंने उनका सम्मान किया और एक बार उन्हें ‘देशभक्तों का देशभक्त’ बताया था।

आजाद हिंद फौज के लिए नेताजी बोस के नेतृत्व पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडू ने कहा कि ने 30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर में तिरंगे को फहराया और अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह को ब्रिटिश राज से मुक्त होने वाला पहला भारतीय क्षेत्र घोषित किया।

इंडियन नेशनल आर्मी के साथ तमिलनाडु के लोगों के करीबी संबंध को याद करते हुए, उपराष्ट्रपति ने श्री मुथु रामालिंगा थेवर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जो नेताजी के करीबी विश्वासपात्र थे।

श्री नायडू ने कहा कि श्री मुथु रामलिंगा थेवर एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्होंने तमिल कल्पना में श्री सुभाष चंद्र बोस की मजबूत उपस्थिति कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्री मुथुरामलिंगा थेवर ने एक तमिल साप्ताहिक ‘नेताजी’ को भी प्रकाशित किया, जो फॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक स्तंभों में शामिल था।

उन्होंने कहा कि आईएनए के लिए व्यापक समर्थन जुटाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने लक्ष्मी स्वामीनाथन की हिम्मत की भी प्रशंसा की, जिन्होंने आईएनए में झांसी की रानी रेजिमेंट की स्थापना की थी और उन्हें कप्तान लक्ष्मी सहगल के रूप में जाना जाता था।

इस तथ्य पर गर्व व्यक्त करते हुए कि हम भारतीय एक पाँच हज़ार साल पुरानी सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं, श्री नायडू ने कहा कि नेताजी हमारे सभ्यतागत मूल्यों और उसके इतिहास में दृढ़ता से विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि इस इतिहास को हमारे राष्ट्रीय गौरव और सामूहिक आत्मविश्वास का आधार बनाना चाहिए।

नेताजी से जुड़े सभी दस्तावेजों और फाइलों को जनता के लिए उपलब्ध कराए जाने के बारे में सरकार के फैसले की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि अनुसंधानकर्ता अब उनके जीवन में गहराई से उतरने में सक्षम होंगे और इस महान देशभक्त के जीवन की कहानी पर कई और सार्थक प्रकाशनों के साथ आएंगे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का आज राजभवन, चेन्नई में अनावरण किया गया, जिसे भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रायोजित किया गया है।

तमिलनाडु के राज्यपाल श्री बनवारीलाल पुरोहित, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री श्री एडप्पादी के. पलानीस्वामी, तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष श्री पी. धनपाल, उप-मुख्यमंत्री श्री ओ. पनीरसेल्वम, भारतीय विद्या भवन के अध्यक्ष श्री एन. रवि इस अवसर पर राजभवन में उपस्थित गणमान्य लोगों में शामिल थे।

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