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बरसात में घूमने का मजा लेना है तो जाइये लेह लद्दाख

भारत के विविध रंग की एक झलक है लद्दाख

एक देश में कितने विविध रंग पसरे हैं यह आप लेह-लद्दाख को देखकर बखूबी समझ सकते हैं। कुदरत को इतने व्यापक रूप में देखना एक ऐसा अनुभव है, जो यादों की धरोहर बन जाए। सर्दियों में यह जहां सफेद चादर और बरसात के दिनों में हर तरफ हरे दुशाले में लिपटा दिखता है, वहीं यहां की लाल और चटख रंगों वाले बौद्ध स्तूप मानो जैसे किसी तपती आग की गर्माहट लिए आगंतुकों का स्वागत करते खड़ी नजर आते हैं। सर्दियों में जहां चारों तरफ फैले बर्फ के कारण एक हरा पत्ता तक नजर नहीं आता, वहीं बरसात में दुनिया के सबसे ऊंचे बर्फीले रेगिस्तान को मिलती है मनमोहक हरियाली की सौगात। लेह-लद्दाख मानसून में मखमली हरे दुशाले में लिपटा नजर आता है। यदि हर मौसम में एक अलग रूप, एक अलग चकित कर देने वाला सौंदर्य कहीं मिलता है तो वह आप यहीं पा सकते हैं। बरसात में यहां पा सकते हैं दिल थाम लेने वाला रोमांचक एहसास और प्राकृतिक खूबसूरती के दुर्लभ नजारे। नैसर्गिक सौंदर्य और हड्डियों तक को कंपकपा देने वाली ठंडी रूहानी हवाएं।

कई नाम हैं लद्दाख के

लदाख आने के बाद मिली-जुली अनुभूतियां होती हैं। सिंधु नदी के किनारे पर बसा ‘लद्दाख’, जम्मू और कश्मीर राज्य का एक मशहूर पर्यटन-स्थल है। पर इसे सिर्फ एक पर्यटन स्थल ही नहीं माना जाना चाहिए। दरअसल, यहीं से शुरू होती है हमारे देश की चौहद्दी, जहां कदम रखते ही हर एक के मन में देशभक्ति का रोमांच हिलोरे लेने लगता है। इसे कभी ‘लास्ट संग्रीला’ तो कभी ‘लिटिल तिब्बत’ के नाम से पुकारा जाता है या फिर ‘मून लैंड’ या ‘ब्रोकन मून’ भी इसके चर्चित नाम हैं। लदाख के दो मुख्य शहर है-लेह और कारगिल।

सबसे ऊंचा रेलवे ट्रैक!

हाल ही में रेल मंत्रालय द्वारा बिलासपुर-मंडी-लेह रेल लाइन के निर्माण को मंजूरी मिली है। यह रेलमार्ग तकरीबन 498 किलोमीटर लंबा होगा। इस प्रोजेक्ट के मार्च 2019 में पूरी होने की संभावना है। इसके पूरे होने के बाद हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के उन पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में भी रेलयात्रा का आनंद लिया जा सकेगा, जहां रेल चलाने की बात असंभव प्रतीत होती थी। यह रेल लाइन मंडी, कुल्लू, मनाली, केयलोंग और हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के शहरों को आपस में जोड़ेगी। प्रस्तावित रेलमार्ग शिवालिक, ग्रेट हिमालय और जांस्कर श्रृंखलाओं से होकर गुजरेगा और तकरीबन 600 मीटर से लेकर 5300 मीटर ऊंचे ट्रैक पर रेल चलेगी। चीन सीमा से सटे होने के कारण इसे सामरिक दृष्टि से भी महत्वूपर्ण माना जा रहा है। इस निर्माण के बाद यह दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे रूट में शुमार हो जाएगा। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद लेह देश के बाकी हिस्सों से रेलमार्ग के जरिए जुड़ जाएगा।

3 इडियट फिल्म से मशहूर हुई है पैंगोंग लेक

14270 फीट की ऊंचाई पर बनी अद्भुत झील पैंगोंग अपने नीले पानी के लिए पूरी दुनिया मे मशहूर है। इसका 60 प्रतिशत भाग चाइना में है और सिर्फ 40 प्रतिशत भाग भारत में। यह पांच किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। इसका पानी बहुत खारा है। सर्दियों में यह पूरी तरह जम जाती है। लेह से पैंगोंग पहुंचने में करीब पांच-छ: घंटे का समय लगता है। यह रास्ता बहुत खूबसूरत और रोमांचक है। इस रास्ते में कई लद्दाखी गांव पड़ते हैं और साथ ही पड़ता है बर्फ से ढका चांगला पास, जिसकी ऊंचाई 17,590 फीट है। यह एक खतरनाक और जोखिम भरा दर्रा है। ऐसा कहा जाता है कि इसके पीक पर पहुंच कर 15 से 20 मिनट से ज्यादा नहीं ठहरना चाहिए, क्योंकि ऑक्सीजन की कमी के कारण अक्सर सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

मोनेस्ट्री में फेस्टिवल्‍स की धूम

मानसून का सीजन आते ही यहां की मोनेस्टि्रयों में रंगारंग उत्सव देखने को मिलते हैं। जुलाई माह में लद्दाख में अलग-अलग मोनेस्ट्री में तीन बड़े बौद्ध फेस्टिवल होते हैं, जिसमें लद्दाख की बौद्ध संस्कृति की एक झलक देखने को मिलती है। जांस्कर रीजन में बनी स्टोंगदेय मोनेस्ट्री में ‘स्टोंगदेय फेस्टिवल’ मनाया जाता है, वहीं हेमिस फेस्टिवल भी इसी मौसम में होता है। इसमें रंग-बिरंगी पोशाकों और मुखौटों से सजे बौद्ध लामा अपना पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं।

आर्यन्स विलेज

सिकंदर महान की फौज के लोगों का गांव यहां आज भी मिलता है। कहते हैं ये लोग शुद्घ रूप से आर्यन हैं। इनके गांव भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक बटालिक तक फैले हुए हैं। यह कारगिल से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित है। आर्यन्स के गांव सिंधु नदी के आसपास पाए जाते हैं। इन गावों के आसपास बसे अन्य लद्दाखी गांवों के लोगों से भिन्न ये लोग शकल से ही आर्यन लगते हैं। लंबी तगड़ी कदकाठी, ऊंची चिकबोन, नीली-नीली आंखें और ब्लॉन्डेड यानी घुंघराले बाल। आज भले ही ये नये फैशन के कपड़े पहन लेते हों लेकिन इनके उत्सवों में आप इनको अपनी पारंपरिक वेशभूषा में देख सकते हैं। प्रकृति के नजदीक रहने के कारण इनके जीवन में प्राकृतिक वस्तुओं का बहुत महत्व है। केवल एक विशेष अवसर पर जब ये अपने इष्टदेव को बकरे की बलि अर्पित करते हैं, तब ये मांसाहार का सेवन करते हैं। इनकी महिलाएं बेहद खूबसूरत होती हैं। सिंधु नदी के साथ-साथ बसे होने के कारण ये लोग रेगिस्तानी इलाका होने के बावजूद खेती करते हैं और कई सभ्यताओं की जननी ऐतिहासिक सिंधु नदी के वरदान से ये वर्ष में दो फसलें उगा पाते हैं।

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