पर्यटन

यहां गिरा था सती का सिर, देवी के दर्शन मात्र से दुख होते दूर

टिहरी जनपद में जौनपुर प्रखंड के सुरकुट पर्वत पर प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर स्थित है। नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व है।
 टिहरी जनपद में जौनपुर प्रखंड के सुरकुट पर्वत पर प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां सती का सिर गिरा था। जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया, लेकिन शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गई। वहां दूसरे देवताओं की तरह उसका सम्मान नहीं किया गया। पति का अपमान और स्वयं की उपेक्षा से क्रोधित होकर सती यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे।
इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्व हुआ। इसका उल्लेख केदारखंड व स्कंद पुराण में भी मिलता है। यह भी कहा जाता है कि राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। क्षेत्र की इकलौती ऊंची चोटी होने के कारण यहां से चंद्रबदनी मंदिर, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ, दूनघाटी आदि स्थान दिखाई देते हैं। यह मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कद्दूखाल से करीब दो किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर मंदिर में पहुंचा जाता है।
महातम्य
मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महत्व है। यह इकलौता सिद्धपीठ है जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है। इस मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महातम्य माना गया है। कहा जाता है कि जब राजा भागीरथ तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तो उस समय गंगा की एक धारा यहां सुरकुट पर्वत पर भी गिरी थी। तभी से गंगादशहरे पर मां के दर्शनों का महत्व माना गया है।
गंगा दशहरा व नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व
सिद्वपीठ मां सुरकंडा मंदिर पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि वैसे तो हर समय मां के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त होता है, लेकिन गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है।
मौसम
  सर्दियों में अधिकांश समय यहां पर बर्फ पड़ी रहती है। मार्च, अप्रैल और जून में भी मौसम ठंडा रहता है। यहां अधिकांश समय गर्म कपड़ों का प्रयोग ही करते हैं।
यात्री सुविधा
यहां यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधा है।
वायु मार्ग
 यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्राट है।
रेलमार्ग
 यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश, हरिद्वार व देहरादून है।
सड़क मार्ग
 मां सुरकंडा मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। देहरादून से वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंचना पड़ता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचना पड़ता है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय कर भी यहां पहुंचा जा सकता है।

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