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जस्टिस जोसेफ ने ली उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली

नई दिल्लीः उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ ने आज उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। न्यायमूर्ति केएम जोसफ के अलावा इंदिरा बनर्जी और विनीत सरन ने भी शपथ ग्रहण की। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य में 2016 में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के आदेश को रद्द कर दिया था। उत्तराखंड में तब कांग्रेस की सरकार थी। कॉलेजियम ने 10 जनवरी को न्यायमूर्ति जोसफ का नाम वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मलहोत्रा के साथ उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के लिये भेजा था। हालांकि सरकार ने पुर्निवचार के लिये न्यायमूर्ति जोसफ का नाम वापस भेज दिया था जबकि इंदू मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी। कॉलेजियम ने 16 मई को उच्चतम न्यायलय में पदोन्नति के लिये फिर से जोसफ के नाम पर जोर दिया और जुलाई में एक बार फिर उनके नाम की सिफारिश की गई जिसे सरकार ने मान लिया।
कॉलेजियम के सदस्यों समेत न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने न्यायमूर्ति के एम जोसफ की वरिष्ठता के मुद्दे पर अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिये प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि न्यायाधीशों का मत था कि इस मामले पर साथ बैठकर विचार करने की जरूरत है।
सरकार के सर्वोच्च सूत्रों ने रेखांकित किया कि कार्यपालिका ने न्यायमूर्ति जोसफ का नाम न्यायमूर्ति बनर्जी और सरन से नीचे रखने के लिये ‘‘पूरी तरह उच्च न्यायालय की वरिष्ठता सूची के जांचे परखे सिद्धांत का पालन किया’’। यह भी कहा गया कि तीनों न्यायाधीशों में से कोई भी न्यायाधीश प्रधान न्यायाधीश नहीं बनेगा क्योंकि न्यायालय में दूसरे न्यायाधीश हैं जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय में पहले पदोन्नत किया गया और वे बाद में सेवानिवृत्त होंगे।
अधिसूचना में मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी का नाम पहले स्थान पर है। उनके बाद उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति विनीत सरन का नाम है। यह सुविधाजनक है कि न्यायाधीशों की वरिष्ठता केंद्र द्वारा अधिसूचित नामों के क्रम के मुताबिक तय की जाए। राष्ट्रपति ने तीन अगस्त को तीनों न्यायाधीशों की नियुक्त के वारंट पर दस्तखत किये थे। न्यायमूर्ति जोसफ की पदोन्नति के साथ ही केंद्र और न्यायपालिका के बीच जारी गतिरोध का भी अंत हो गया।

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