उत्तराखंड समाचार

जौनसार में शुरू हुई माघ-मरोज की तैयारी

देश-दुनिया में अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान रखने वाले जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में पौषमाघ-मरोज की तैयारी चल रही है। जनवरी के शुरुआती चरण से मनाए जाने वाले इस पर्व को लेकर ग्रामीणों में बेहद उत्साह है। इस बार नौ जनवरी को सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल के पास कयलू मंदिर में चुराच चढ़ने के बाद समूचे इलाके में मेले का आगाज होगा। चुराच के लिए बकरों की खरीददारी शुरू हो गई है। लोक मान्यता के अनुसार नरभक्षी किरमीर नामक राक्षस के आतंक से छुटकारा मिलने की खुशी में क्षेत्रवासी हर साल इस पर्व को मनाते हैं।

पूरे एक माह तक चलने वाले माघ-मरोज की तैयारियों को लेकर सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल के पुरोहित एवं मंदिर समिति के सचिव मोहनलाल सेमवाल ने कहा कि, इस बार नौ जनवरी को चुराच का पहला बकरा चढ़ाया जाएगा। अगले दिन जौनसार-बावर की सभी 39 खतों से जुड़े ग्रामीण इलाकों में किसराट मनेगा। क्षेत्र में माघ-मरोज मेले का विशेष महत्व है। इसके पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक और डरवानी है।

लोक मान्यता के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले जौनसार-बावर में टोंस नदी को कर्मनाशा कहते थे। प्राचीन काल में इसी नदी में नरभक्षी किरमीर राक्षस का वास हुआ करता था, जिसे हर रोज एक नरबलि चाहिए होती थी। राक्षस के आतंक से क्षेत्र में मानव संख्या लगातार घटती चली गई। राक्षस के आतंक से मुक्ति पाने को मैंद्रथ गांव के हुणाभाट नामक पंडित ने कुल्लू-कश्मीर के सरोवर ताल के पास जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की। इसके बाद मानव कल्याण की रक्षा को चार भाई महासू देवता मैंद्रथ-हनोल में प्रकट हुए। महासू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। बताया जाता है कि, महासू देवता के आदेश पर उनके सबसे पराक्रमी वीर-सेनापति कयलू महाराज ने नरभक्षी किरमीर राक्षस का खात्मा किया। किरमीर राक्षस के अत्याचारों से हमेशा के लिए छुटकारा मिलने की खुशी में समूचे इलाके में बकरे की बलि देकर जश्न मनाया जाता है। लोक मान्यता के अनुसार 26 गते पौष मास के दिन नरभक्षी किरमीर राक्षस का अंत हुआ था। इसी दिन कयलू मंदिर में चुराच का बकरा चढ़ाया जाता है।

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किसराट को लाल चावल और उड़द की खिचड़ी

नौ जनवरी को कयलू मंदिर में चुराच का पहला बकरा चढ़ने से अगले दिन किसराट पर स्थानीय लोग पहाड़ी लाल चावल और उड़द की खिचड़ी बनाते हैं, जिसे दिन के भोजन में देसी घी, अखरोट, तिल और अन्य परपंरागत पहाड़ी मसाले के साथ बड़े चाव से खाया जाता है। रात के भोजन में किसराट के बकरे का मीट, लाल चावल और रोटी परोसी जाती है। लोक मान्यता के अनुसार कयलू मंदिर में चढ़ने वाले चुराच के बकरे के मांस का आधा हिस्सा किरमीर राक्षस के नाम से टोंस नदी में फेंका जाता है। इसके बाद समूचे इलाके में एक माह तक मेहमान नवाजी का दौर चलता है। ————–

मवेशी पालन घटने से बढ़ी बकरों की कीमत

एक समय था जब जौनसार-बावर में लोग घर-घर मवेशी पालन किया करते थे, लेकिन समय के साथ क्षेत्र में मवेशी पालन का दायरा सिमटता चला गया, जिससे बकरों की कीमत तेज हो गई। माघ-मरोज के जश्न को बकरों की डिमांड ज्यादा रहने से लोग कालसी, विकासनगर और देहरादून मंडी से ऊंचे दाम पर खरीददारी कर रहे हैं। बढ़ती मंहगाई के चलते स्थानीय ग्रामीण माघ-मरोज में सुडोल बकरा ले जाने को 12 से 25 हजार प्रति बकरे की कीमत देने को तैयार हैं। ऐसे में गरीब परिवार के लोग बकरे खरीदने की स्थिति में नहीं है। मेले के दौरान मीट व्यवसायी और मवेशी पालकों से बकरों की डिमांड बढ़ने से बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं।

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